Subsidy on Direct Sowing of Paddy : भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के मुताबिक, दक्षिण-पश्चिम मानसून देश के 80 फीसदी हिस्से में पहुंच चुका है। साथ ही शेष अन्य हिस्सों में मानसून निर्धारित समय से पहले ही बहुत तेजी से पहुंच रहा है। मानसून के आगमन के साथ ही देश में खरीफ मौसम फसलों की बुवाई का समय भी शुरू हो चुका है। उत्तर भारत के कई राज्यों में किसानों ने खरीफ की प्रमुख फसल धान समेत कपास, मूंगफली, बाजरा, मक्का, सोयाबीन आदि की खेती के लिए तैयारियां भी शुरू कर दी है। हालांकि, अत्यधिक जल दोहन के कारण पिछले कुछ वर्षों में कई राज्यों में भूजल स्तर काफी नीचे चला गया है, जिससे कृषि क्षेत्र में सिंचाई की समस्या चिंता का विषय बन गया है। इन्हीं परिस्थितियों को देखते हुए हरियाणा में किसानों को धान की सीधी बिजाई करने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। इसके लिए राज्य सरकार ने धान की डीएसआर पर प्रति एकड़ 4 हजार रुपए की सब्सिडी देने का फैसला किया है। राज्य में कृषि एवं किसान कल्याण विभाग ने 3.02 लाख एकड़ में धान की सीधी बुवाई करने का लक्ष्य रखा है, जबकि पिछले साल 2.25 लाख एकड़ में धान की सीधी बिजाई (डीएसआर तकनीक) से बुवाई करने का लक्ष्य रखा गया था। आइए इसके बारे में विस्तार से जानते हैं।
हरियाणा में कृषि एवं किसान कल्याण विभाग की ओर से पिछले वर्ष की भांति इस साल भी धान की सीधी बिजाई तकनीक (DSR) से धान की बिजाई करने वाले किसानों को 4 हजार रुपए प्रति एकड़ की प्रोत्साहन राशि दी जाएगी। इसके लिए विभाग द्वारा 120.80 करोड़ रुपए का बजट जारी किया गया है। राज्य के लक्षित जिलों में धान की सीधी बुवाई करने पर किसानों को अनुदान देने के लिए इस राशि को खर्च किया जाएगा। राज्य कृषि विभाग इस योजना के माध्यम से धान की रोपाई करने वाले किसानों को पारंपरिक विधि से डीएसआर तकनीक (डायरेक्ट सिडेड राइस) की ओर स्थानांतरित करने का लक्ष्य लेकर चल रहा है। घटते भूमिगत जल स्तर को देखते हुए धान की सीधी बिजाई विधि (डीएसआर) को बेहतर विकल्प माना जा रहा है। इस साल लक्ष्य तय करने में देरी हुई है, आमतौर पर अप्रैल माह में ही विभाग द्वारा लक्ष्य जारी कर दिए जाते हैं। राज्य में किसानों ने 15 जून से ही धान की रोपाई/बुवाई शुरू कर दी है।
द ट्रिब्यून की रिपोर्ट के अनुसार, किसान कल्याण विभाग ने राज्य के सिरसा जिले में सबसे अधिक 85 हजार एकड़ पर धान की खेती सीधी बिजाई के आधार पर कराने का लक्ष्य रखा है, जबकि करनाल में 30 हजार एकड़, फतेहाबाद और हिसार में 25 हजार एकड़, कुरुक्षेत्र में 22 हजार एकड़ में डीएसआर तकनीक से धान की सीधी बुवाई पर कृषि विभाग द्वारा प्रोत्साहन राशि दी जाएगी। इसके अलावा, जींद और सोनीपत को 20-20 हजार एकड़, कैथल को 18 हजार एकड़, जबकि पानीपत, रोहतक और यमुनानगर को क्रमश: 15-15 हजार एकड़ का लक्ष्य रखा गया है। अंबाला जिले में इस योजना के तहत 12 हजार एकड़ पर किसान धान की सीधी बुवाई डीएसआर मशीन की मदद से करेंगे।
इच्छुक किसानों को इस स्कीम का लाभ लेने के लिए मेरी फसल मेरा ब्यौरा पोर्टल पर धान की सीधी बिजाई के लिए अपना पंजीकरण कराना होगा। पंजीकरण की अंतिम तिथि 10 जुलाई तक किसान पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन करा सकते हैं। कृषि एवं किसान कल्याण विभाग हरियाणा सरकार द्वारा गठित कमेटी तथा संबंधित किसान द्वारा धान की सीधी बिजाई का सत्यापन करके पोर्टल पर अपलोड किया जाएगा। इसके उपरांत प्रोत्साहन राशि सीधे लाभार्थी किसान के बैंक खाता में डीबीटी के माध्यम से भेज दी जाएगी। इस योजना का लाभ पहले आओ पहले पाओ के आधार पर दिया जाएगा। विभाग के उपनिदेशक डॉ. कर्मचंद के अनुसार, धान की सीधी बिजाई मशीन (डीएसआर मशीन) पर भी कृषि विभाग द्वारा 50 प्रतिशत अनुदान दिया जा रहा है।
कृषि एवं किसान कल्याण विभाग कुरुक्षेत्र के उपमंडल अधिकारी जितेंद्र मेहता ने कहा कि डीएसआर तकनीक धीरे-धीरे लोकप्रिय हो रही है। कई किसान इस योजना और प्रोत्साहन के बारे में विभाग से संपर्क कर रहे हैं। पारंपरिक तरीकों से डीएसआर पद्धति अपनाने के लिए किसानों को प्रोत्साहित किया जा रहा है। उन्हें खरपतवार प्रबंधन के माध्यम से खरपतवारों को प्रबंधित करने के लिए उचित मार्गदर्शन भी प्रदान किया जा रहा है। हालांकि, डीएसआर तकनीक (DSR) में खरपतवार की अधिकता और कम उपज किसानों और कृषि विभाग के लिए कुछ चिंता का विषय रही है, जिसके कारण किसान धान की सीधी बुवाई (डीएसआर) तकनीक को अपनाने में अनिच्छा दिखा रहे हैं।
कृषि विभाग के अधिकारी के अनुसार, डीएसआर विधि से धान की सीधी बुवाई करने पर परंपरागत विधि की अपेक्षा खर्च काफी कम आता है। बता दें कि धान की सीधी बुवाई तकनीक में कृषि यंत्र सीड ड्रिल की मदद से सीधे खेतों में बीज की बुवाई करते हैं। इस पद्धति में खेत की जुताई तथा बीज की बुवाई दोनों कार्य साथ-साथ संपन्न किया जाता है। डीएसआर मशीन से धान की बुवाई करने पर खेती लागत कम आती है और 20 से 25 प्रतिशत तक कम पानी खर्च में ज्यादा उपज होती है, जबकि पारंपरिक तरीकों से धान की खेती में धान के पौधों की रोपाई के लिए पहले खेत की जुताई कर पलेवा किया जाता है, जिसमें कई गुना अधिक पानी खर्च होता है। उप निदेशक कृषि (डीडीए) अंबाला डॉ. जसविंदर सैनी ने कहा कि विभाग किसानों को डीएसआर तकनीक अपनाने के लिए प्रेरित करने के लिए जल्द ही शिविर लगाना शुरू करेगा। उन खेतों का दौरा भी आयोजित करेगा जहां डीएसआर तकनीक से धान की बुआई की गई है। लक्ष्य प्राप्त करने के लिए सभी उचित प्रयास किए जा रहे हैं।
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