DIRECT SEEDED RICE METHOD (DSR) : खरीफ मौसम में धान समेत अन्य की फसलों की खेती करने की तैयारी किसानों ने शुरू कर दी है। मानसून आते ही किसान धान की बिजाई करने में जुट जाएंगे। वहीं, पानी वाले क्षेत्रों में किसानों द्वारा धान की खेती के लिए इसके बिचड़ा (नर्सरी) डाल दिया गया है। ऐसे में किसान अगर वैज्ञानिक विधि व कुछ खास बातों को ध्यान में रखते हुए धान की खेती करते हैं, तो उन्हें इससे बंपर उत्पादन भी मिल सकता है। प्रदेश में धान की खेती लगाने का मौसम भी शुरू हो चुका है। बांदा के कृषि विभाग ने कम लागत और कम पानी में बेहतर उत्पादन हासिल करने के लिए किसानों को धान की बिजाई सीधी बुवाई विधि (DSR) से करने की अपील की है। विभागीय अधिकारियों का कहना है कि इस तकनीक से बिजाई करने पर कम खर्च, कम पानी में अच्छा उत्पादन फसल से प्राप्त किया जा सकता है। इसलिए किसानों से कहा गया है कि वह इस विधि का उपयोग करके ही धान की खेती करें। खास बात यह है कि इस तकनीक से खेती करने पर फसल जल्दी तैयार हो जाती है, जिससे अगली फसल की बुवाई के लिए किसान को पर्याप्त समय भी मिल जाता है।
पूर्वी और दक्षिणी राज्यों में अधिकांश किसान खरीफ सीजन में धान की खेती करते हैं। मानसून सीजन (जून मध्यम से जुलाई अंत तक) में धान की खेती लगाते हैं। हालांकि, धान की खेती के लिए आज भी अधिकतर किसान पहले इसकी नर्सरी तैयार करते हैं। इसके लिए किसान 20 से 25 दिन पहले अपने खाली खेतों में धान का बिचड़ा डालते हैं। इसके बाद तैयार धान के पौधे की रोपाई मुख्य खेतों में करते हैं। इस विधि में किसानों का समय, श्रम, लागत और पानी काफी अधिक खर्च होता है। लेकिन डीएसआर विधि से धान की सीधी बुवाई करने पर परंपरागत विधि की अपेक्षा दो गुना खर्च कम आता है। यह विधि धान की सीधी बिजाई तकनीक है, जिसे डायरेक्ट सिडेड राइस (DSR) विधि भी कहते हैं। इस तकनीक में किसान सीड ड्रील मशीन की मदद से सीधे खेतों में बुवाई करते हैं। इसमें खेत की जुताई और बीज की बुवाई दोनों काम साथ-साथ सुनिश्चित हो जाता है। वहीं परंपारिक विधि में पहले खेतों में धान के पौधों की रोपाई करने के लिए खेत की जुताई कर पलेवा किया जाता है। इसके बाद धान की रोपाई की जाती है। लेकिन डीएसआर विधि में केवल खेत की नमी या कम पानी में भी फसल की अच्छी पैदावार प्राप्त कर सकते हैं।
धान की सीधी बिजाई विधि के लिए कम अवधि वाले प्रमाणित बीज का चयन करना चाहिए, जो 100-110 दिनों में पककर कटाई के लिए तैयार हो जाए। किसान अपने क्षेत्र की जलवायु और मिट्टी की सहूलियत के अनुसार बीज की व्यवस्था कर सकते हैं। धान की सीधी बुवाई करने के लिए किसानों को मध्यम आकार की धान किस्म के लिए 40-45 किलोग्राम और मोटे धान किस्मों के लिए 45-50 किलोग्राम धान बीज की आवश्यकता होगी। सीड ड्रील कृषि यंत्र की मदद से धान की सीधी बुवाई कर सकते हैं। इस विधि से धान की बुवाई 25 सेमी की दूरी पर एक लाइन में करनी चाहिए। बीज की बुवाई करने से पहले 4 ग्राम ट्राइकोडर्मा या 2.5 ग्राम कार्बेंडाजिम या थीरम से बीज को उपचारित कर लेना चाहिए। झुलसा या जीवाणुधारी रोग के लिए 25 किलो धान बीज को 4 ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लीन या 40 ग्राम प्लांटोंमाइसीन को मिलाकर पानी में रातभर भिगोकर रखें। बता दें कि राजकीय कृषि बीज गोदाम से किसानों को उन्नत और प्रमाणित किस्मों के बीज बाजार से कम दरों पर उपलब्ध कराया जाता है। साथ ही बीज की खरीदारी पर कृषि विभाग द्वारा अनुदान लाभ भी दिया जाता है।
बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, उत्तरप्रदेश, पंजाब, हरियाणा, आंध्रप्रदेश और तमिलनाडु देश के प्रमुख धान उत्पादक राज्य है। यहां की अधिकांश आबादी खरीफ सीजन में धान (चावल) खेती करती है। बारिश के मौसम की शुरूआत होते ही अपने क्षेत्र की जलवायु और मिट्टी के अनुसार धान की विभिन्न किस्में की रोपाई या बुवाई करते हैं। हालांकि, बीते कुछ सालों से कई राज्यों में गिरते भूजल स्तर को ध्यान में रखते हुए राज्य सरकारें किसानों को धान की सीधी बुवाई के लिए प्रोत्साहित भी कर रही है। इसके लिए सरकार खास योजना लागू कर किसानों को धान की सीधी बुवाई करने पर 7 हजार रुपए प्रति एकड़ की आर्थिक सहायता भी प्रदान करती है। इस विधि से धान की खेती पर 20 से 25 प्रतिशत तक पानी की बचत करने में सफलता भी प्राप्त हो रही है।
बांदा के जिला कृषि अधिकारी के अनुसार, इन दिनों खरीफ की बुवाई का समय चल रहा है। इसलिए किसानों को सलाह है कि बुन्देलखण्ड क्षेत्र में किसान धान की खेती सीधी बुवाई विधि (डीएसआर) से करें। धान की खेती करने के लिए मजदूरों के साथ-साथ पानी तथा ट्रैक्टर या अन्य मशीनरी में डीजल की बड़ी खपत होती है और वातावरण भी प्रभावित होता है। लेकिन DSR विधि से कम खर्च में ज्यादा फायदा और कम पानी में ज्यादा पैदावार हासिल कर सकते हैं।
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