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Pulse Farming : किसानों को मात्र 60 दिनों में लखपति बना सकती है यह दाल

Pulse Farming : किसानों को मात्र 60 दिनों में लखपति बना सकती है यह दाल
पोस्ट -09 अप्रैल 2024 शेयर पोस्ट

जानें, किसान कैसे इस दाल फसल की खेती से 60 दिनों में कमा सकेंगे लाखों रुपए का मुनाफा

Red Pulse Farming : प्रौद्योगिकी के इस दौर में कृषि के क्षेत्र में लगातार हो रहे बदलाव देखने को मिल रहे हैं। आज खेतीबाड़ी में नई-नई तकनीक की मदद से किसान नई-नई फसलों की खेती कर कम समय में बेहतर उत्पादन और अधिक कमाई  कर रहे हैं। आज कई क्षेत्रों के किसान अपने खेतों में कम समय में तैयार होने वाली दलहनी और तिलहनी फसलों की बुवाई कर अधिक पैदावार से अपनी आय बढ़ाने में लगे हुए हैं। ऐसे में किसानों के बीच दलहन फसलों की खेती खूब लोकप्रिय हो रही है। 

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आज की तारीख में कई राज्यों के किसान दलहनी फसलों की खेती कर खूब मुनाफा कमाने में लगे हुए हैं। इसमें मसूर की दाल (Red Pulse) की खेती किसानों को अमीर बनाने में सफल रही है। क्योंकि मसूर दाल में पोषक तत्व की मात्रा अधिक होती है और भारत के कुछ ही राज्यों में इसकी खेती होती है तथा देश में खपत और मांग भी उच्च स्तर पर रहती है। मसूर (lentils) व्यावसायिक स्तर पर अधिक मुनाफा देने वाली दलहनी फसल (pulse crop) है। इसकी खेती कर किसान मात्र 55 से 60 दिनों में पैदावार लेकर लाखों रुपए का मुनाफा कमा सकते हैं। आइए, इस पोस्ट की मदद से जानते हैं कि मसूर दाल की उचित खेती कैसे करें, इसकी बुवाई का सही समय क्या है और इसके उत्पादन से किसानों को प्रति एकड़ कितने रुपए का मुनाफा 60 दिनों के पश्चात मिलेगा। 

मसूर दाल की खेती कैसे करें? (How to cultivate lentils?)

भारत में मसूर दाल की खेती मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, झारखंड और पश्चिम बंगाल में किसानों द्वारा मुख्य रूप से की जाती है। देश में मसूर दाल का उत्पादन 611 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है। मध्यप्रदेश में लगभग 6.2 लाख हेक्टेयर के क्षेत्र में मसूर की खेती की जाती है, लेकिन उत्पादकता प्रति हेक्टेयर 371 किलोग्राम है। मध्यप्रदेश कूल उत्पादन में 39.56 प्रतिशत की हिस्सेदारी पेश करता है, जबकि उत्तर प्रदेश में 34.36 फीसदी और बिहार में मसूर की दाल का 12.40 प्रतिशत तक उत्पादन होता है। मसूर की दाल का उपयोग खाने के अलावा नमकीन व अन्य व्यंजन बनाने में भी किया जाता है, जिस वजह से इसे व्यावसायिक स्तर पर अधिक मुनाफा देने वाली दलहनी फसल माना जाता है। भारत में मसूर की खेती (Lentil cultivation) ठंड के समय यानी रबी मौसम में की जाती है। असिंचित इलाकों में इसकी खेती आसानी से की जा सकती है। क्योंकि यह सूखा, नमी और कम तापमान सहनशील फसल है। हालांकि बेहतर पैदावार, अधिक कीमत और कम समय में तैयार होने के कारण सिंचित क्षेत्रों के किसान भाई भी इसकी खेती करने में लगे हैं। इसकी खेती से बेहतर पैदावार प्राप्त करने के लिए किसान भाईयों को इसकी खेती उन्नत तरीके से करनी चाहिए। 

बुवाई के लिए भूमि कैसे तैयार करें? (How to prepare land for sowing?)

मसूर दलहन फसल होने के कारण इसकी खेती किसी भी प्रकार की भूमि में आसानी से की जा सकती है। हालांकि इसकी व्यापारिक खेती के लिए नमीयुक्त भारी दोमट मिट्टी वाली भूमि को सबसे उपयुक्त माना गया है, लेकिन भूमि अधिक क्षारीय व अम्लीय न हो। अधिक उपज के लिए खेत में उचित जल निकासी की व्यवस्था का होना बेहद जरूरी है। मसूर की खेती रबी सीजन में की जाती है। क्योंकि इसके पौधों के लिए ठंडी जलवायु सही रहती है, लेकिन जब इसके पौधे अच्छे से विकास करने लगते हैं, तो उस दौरान पौधों को उच्च तापमान की आवश्यकता होती है। मसूर की बुवाई करने से पहले खेत को अच्छे से तैयार करना होता है। इसके लिए मिट्टी पलटने वाले देसी हल, कल्टीवेटर, एमबी प्लाऊ या डिस्क हैरो जैसे कृषि यंत्रों से खेत की 2 से 3 गहरी जुताई करनी चाहिए। इसके बाद रोटावेटर या जायरोवेटर की मदद से मिट्टी को भूरभूरी बनाकर पाटा लगाकर खेत को समतल बनाए। समतल खेत में ही मसूर के बीजों की बुवाई/रोपाई सीड ड्रिल या केरा या पोरा (देशी हल) विधि से करें।

प्रति हेक्टेयर कितनी बीज मात्रा की होगी आवश्यकता? (How much seed quantity will be required per hectare?)

सीड ड्रिल विधि से मसूर की बुवाई करते समय पौधे से पौधे की दूरी 30 सेमी रखते हुए पंक्तियां तैयार  करना चाहिए। वहीं, पिछेती फसल के लिए मसूर की बुवाई करते समय पौधों को 20-25 सेमी की दूरी पर रखना चाहिए। मसूर की बुवाई के लिए इसके बीजों की मात्रा इसकी बुवाई के क्षेत्र और समय पर निर्भर करती है। अगर आप खेती में बुवाई समय से और उन्नत किस्म के प्रमाणित बीजों से करते हैं, तो आपको 25-30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज की आवश्यकता होगी, जबकि पछेती खेती के लिए मसूर के बीज की मात्रा प्रति हेक्टेयर 35- 45 किग्रा होगी। बीजों को खेत में बोने से पहले 2 ग्राम थाइरम या बाविस्टिन दवा या 5 ग्राम ट्राइकोडर्मा विरडी की उचित मात्रा से प्रति किलोग्राम उपचारित कर लें।  इसके बाद स्फुर घोलक जीवाणु पीएसबी कल्चर 10 ग्राम तथा राइजोबियम कल्चर 5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें और उपचारित बीजों को छाया में सुखाकर उनकी बुवाई करें। 

खाद-उर्वरक एवं खरपतवार प्रबंधन कैसे करें? (How to manage fertilizers and weeds?)

वैसे तो मसूर के पौधों की जड़ों में पाई जाने वाली ग्रंथियों में नाइट्रोजन स्थिरीकरण करने वाले जीवाणु पाए जाते हैं, जो वायुमंडल की स्वतंत्र नाइट्रोजन को अवशोषित कर भूमि में नत्रजन का मात्रा बढ़ाते हैं। लेकिन बेहतर उत्पादन के लिए 20 किग्रा नाइट्रोजन, 40 किग्रा फास्फोरस, 20 किग्रा पोटाश और 20 किलोग्राम सल्फर को प्रति हेक्टेयर देने की सिफारिश की जाती है तथा जिंक सल्फेट के लिए 25 किग्रा प्रति हेक्टेयर का छिड़काव करना लाभकारी होता है। मसूर फसल को खरपतवार मुक्त रखने के लिए बीज बुवाई के 25 से 30 दिन बाद खुरपी या डोरा का उपयोग करते हुए खरपतवार नियंत्रण करें। रासायनिक खरपतवार नियंत्रण के लिए बुवाई के बाद अंकुरण के पूर्व पेंडामिथली 30 ई.सी. दवा का 0.75 – 1.00 किग्रा सक्रिय तत्व का प्रति हेक्टेयर 500 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।

मसूर फसल कटाई और गहराई (Lentil Harvesting and Depth)

मसूर की दाल की खेती में अगर सर्दियों के मौसम में एक बारिश हो जाती है, तो सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। हालांकि हल्की प्रथम सिंचाई बुवाई के 40 से 45 दिन बाद तथा दूसरी सिंचाई फलियों में दाने बनते समय कर लेनी चाहिए। मसूर बीज की बुवाई के 2 महीने या 55 से 60 दिनों में जब फसल पीली पड़कर सूख जाए और दानों का रंग हरे से भूरे रंग का होने लगे तो फसल पूरी तरह से पक कर कटाई के लिए तैयार हो जाती है। कटाई के उपरान्त फसल को साफ खलिहान में सुखाकर गहाई करनी चाहिए। 9 से 11 प्रतिशत आद्रता रहने तक उपज को सुखाकर भण्डारण करें। उन्नत किस्म के प्रमाणित बीज से और उन्नत तरीके से खेती करने पर इसके एक हेक्टेयर खेत से 15-20 क्विंटल तथा सिंचित क्षेत्र में 25-30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज आसानी से हो सकती है। मसूर को अलसी-मसूर, जौ-मसूर, सरसों-मसूर के साथ बोना लाभकारी माना गया है। 

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