फर्ब तकनीक से गेहूं और गन्ने जैसी फसलों की करें बुवाई, मिलेगी बंपर पैदावार

पोस्ट -24 नवम्बर 2024 शेयर पोस्ट

गेहूं और गन्ने की बंपर पैदावार के लिए इस तकनीक से करें बुवाई, 7-8 हजार रुपए की होगी बचत

Furrow Irrigated Raised Bed System : खेती से अधिक उत्पादन लेने के लिए सबसे अहम हो जाता है कि फसलों की बुवाई समय पर हो। खासकर गेहूं और गन्ने जैसी फसलों की। गेहूं की कटाई के बाद गन्ने की बुवाई में देरी होने से गन्ने के उत्पादन में 35-50 फीसदी की कमी हो सकती है। वहीं चालू रबी सीजन में देर से चल रही गेहूं की बुवाई ने किसानों की परेशानी बढ़ा दी है। बुवाई में देरी होने से गेहूं के उत्पाद में गिरावट होने की चिंता किसानों को सता रही है। हालांकि किसान फर्ब तकनीक (फरो इरिगेशन रेज्ड बेड सिस्टम) से अभी भी गेहूं और गन्ना दोनों की बुवाई समय से कर सकते हैं और लागत बचाते हुए खेती बंपर पैदावार भी प्राप्त कर सकते हैं। आइए फरो इरिगेशन रेज्ड बेड सिस्टम (फर्ब तकनीक) से बुवाई कैसे होती है और इससे खेती की लागत में कितनी बचत होती के बारें में जानते हैं?

समय से की जा सकती है बुवाई (Sowing can be done on time)

दरअसल, गेहूं और गन्ने की खेती करने वाले किसानों को अप्रैल महीने में गेहूं की फसल कटाई के बाद गन्ने की खेती लगाने में देरी हो जाती है, जिसके चलते गन्ने की पैदावार प्रभावित होती है। लेकिन, अब फरो इरिगेशन रेज्ड बेड प्रणाली (FIRB – Furrow Irrigated Raised Bed System) के माध्यम से गेहूं और गन्ना दोनों फसल की बुवाई समय से की जा सकती है, जिससे लागत बचाते हुए दोनों फसलों को एक साथ उगाकर अधिक पैदावार ले सकते हैं। फर्ब तकनीक में पहले उठे हुए मेड़ (रेज्ड बेड) पर गेहूं की बुवाई की जाती है, फिर गन्ने की बुवाई की जाती है। इस तकनीक से पानी की बचत होती है, भारी बारिश की स्थिति में फसलों को बचाव भी मिलता है, क्योंकि उठी हुई क्यारियों में जल निकास बेहतर होता है। इस सिस्टम में बुवाई के लिए फरो इरीगेटेड रेज्ड बेड प्लांट कृषि मशीन से खेत में बेड (उठी हुई क्यारियां) तैयार किया जाता है, जिसके पश्चात नवंबर में पहले गेहूं की बुवाई और फिर गन्ने की बुवाई की जाती है।

किसान इस तकनीक से कर रहे हैं इंटरक्रॉपिंग (Farmers are doing intercropping with this technique)

उत्तर प्रदेश के लखीमपुर जिले के किसान गुरु सेवक सिंह कई साल से फर्ब तकनीक का इस्तेमाल खेती में कर रहे हैं। उनका कहना है कि वे इस तकनीक से अपने 4 एकड़ क्षेत्र की जमीन में गेहूं और गन्ने की इंटरक्रॉपिंग करते हैं। गुरू सेवक सिंह का कहना है कि पहले गेहूं की कटाई के बाद उन्हें गन्ने की बुवाई में देरी हो जाती थी, जिससे पैदावार में कम होती थी। लेकिन अब इस फरो इरिगेशन रेज्ड बेड (FIRB – Furrow Irrigated Raised Bed System) तकनीक से उन्हें गेहूं की खेती से प्रति एकड़ 17 क्विंटल और गन्ने से 60 टन पैदावार मिल रही है। उन्होंने कहा, इस तकनीक से न केवल उन्हें अतिरिक्त आय मिल रही है, बल्कि गन्ने की खेती के लिए जरूरी लागत में भी कमी हुई है। 

किसानों के लिए फायदेमंद साबित हो रही फर्ब तकनीक (Firb technology is proving beneficial for farmers)

फर्ब तकनीक से गेहूं और गन्ने दोनों की एक साथ खेती किसानों के लिए बहुत फायदेमंद साबित हो रही है। इस प्रणाली से खेती करने से न केवल पैदावार में वृद्धि होती है, बल्कि लगाने वाले लागत में भी कमी आती है, जिससे किसानों को मुनाफा बढ़ाता और खेती से अधिक लाभ मिलता है। इस तकनीक से बुवाई करने पर लगभग 25 प्रतिशत तक बीज की बचत होती है। इस पद्धति एक एकड़ क्षेत्र में बुवाई के लिए 30 से 32 किलोग्राम बीज मात्रा ही पर्याप्त होता है। यह विधि पानी के उपयोग को कम करती है। साथ ही वर्षा जल को संरक्षित करती है। इस पद्धति से गेहूं और गन्ने की एक साथ बुवाई से दोनों फसलों का उत्पादन बढ़ता है और फसल की तैयारी में लगने वाली लागत पर 7 से 8 हजार रुपए तक की बचत होती है, जिससे किसानों को अतिरिक्त लाभ मिलता है। 

फर्ब तकनीक कैसे करें गेहूं और गन्ने की बुवाई? (How to do sowing of wheat and sugarcane using firb technique?)

फरो इरिगेशन रेज्ड बेड यानि फर्ब तकनीक के लिए ट्रैक्टर से चलने वाले कृषि यंत्र रेज्ड बेड मेकर का इस्तेमाल किया जाता है। यह कृषि यंत्र खेत में उठी हुई क्यारियां और नालियां का  एक बेड तैयार करता है। इसके बाद तैयार इन क्यारियों पर 2 से 3 कतारों में गेहूं के बीजों की बिजाई की जाती है। क्यारियों (बेड) पर बुवाई की गहराई 4 से 5 सेंमी. रखी जाती है, जिससे बीज अच्छे से अंकुरित हो सकें। फर्ब तकनीक में गन्ने की बिजाई/रोपाई गेहूं के बाद की जाती है, जिसके लिए बेड के बीच बनी नाली में हल्की सिंचाई कर दी जाती है, जब इन नालियों में हल्का पानी रहता है, तब गन्ने के 2 या 2 आंखों वाले टुकड़े (गन्ने की पेड़ी) डालकर उन्हें पैरों से कीचडय़ुक्त नालियों में दबाते हुए चलकर या बड़े चिप से तैयार गन्ने की पौध की रोपाई की जाती है। दिसंबर महीने में बोई गई गेहूं की फसल के बीच में गन्ने की बुवाई की जाती है। फरवरी में गेहूं की खड़ी फसल की नालियों में गन्ने की बुवाई की जाती है। गन्ने की बुवाई गेहूं फसल की सिंचाई के साथ शाम के समय की जाती है।

देरी से बुआई के लिए गेहूं की किस्में (Wheat varieties for late sowing)

धान की देर से कटाई और चीनी मिलों में गन्ने की देर से पेराई शुरू होने के कारण गेहूं की बुवाई में देरी देखी जा रही है। इस वर्ष नवंबर के प्रथम सप्ताह तक पिछले वर्ष की तुलना में लगभग 93 प्रतिशत बुवाई पूरी हो चुकी है। अब तापमान गेहूं की समय पर बुआई के लिए उपयुक्त हो गया है। देश के प्रमुख गेहूं उत्पादक राज्यों में अब  बुआई तेज़ी से हो रही है। किसान समय, श्रम, तथा बीज बचाने के लिए मशीन से बुआई को प्राथमिकता दे रहे हैं। अधिक उपज प्राप्त करने के लिए बुवाई के समय और स्थिति के आधार पर सावधानी से किस्मों का चयन करने की सलाह किसानों को दी जा रही है। 

उत्तरी, पूर्वी और मध्य भारत में समय पर, देर से, बहुत देरी से बुआई के लिए गेहूं की निम्नलिखित किस्मों के चयन करने की सलाह किसानों को दी गई। समय पर बोई जाने वाली किस्मे डीबीडब्ल्यू 187, डीबीडब्ल्यू 222, एचडी 3406, पीबीडब्ल्यू 826, पीबीडब्ल्यू 3226, एचडी 3086, डब्ल्यूएच 1105, डीबीडब्ल्यू 187, पीबीडब्ल्यू 826, एचडी 3411, डीबीडब्ल्यू 222, एचडी 3086, के 1006, डीबीडब्ल्यू 303, डीबीडब्ल्यू 187, एचआई 1636, एमएसीएस 6768, जीडब्ल्यू 366, डीबीडब्ल्यू 168, एमएसीएस 6478, यूएएस 304, एमएसीएस 6222 गेहूं किस्म, देर से बोई जाने वाली किस्में - 261, पीबीडब्ल्यू 752, एचडी 3407, एचआई 1634, सीजी 1029, एमपी 3336 और बहुत देर से बुवाई जानें वाली गेहूं किस्म एचडी 3271, एचआई 1621, डब्ल्यूआर 544 शामिल है। 

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