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गन्ने की खेती : किसान गन्ने की खेती में अपनाए ये टिप्स, मिलेगी ज्यादा उपज

गन्ने की खेती : किसान गन्ने की खेती में अपनाए ये टिप्स, मिलेगी ज्यादा उपज
पोस्ट -14 फ़रवरी 2024 शेयर पोस्ट

किसान गन्ने की खेती में अपनाए ये टिप्स, दो से तीन गुना ज्यादा मिलेगा प्रोडक्शन

Correct method of sugarcane cultivation : भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा गन्ना उत्पादक देश है। भारत में गन्ने की खेती नगदी फसल के तौर पर की जाती है । उत्तर-प्रदेश, महाराष्ट और कर्नाटक सहित कई अन्य राज्य देश के प्रमुख गन्ना उत्पादक राज्य है। देश में संपूर्ण गन्ने की औसत उत्पादकता करीब 720 क्विटल / हेक्टेयर है, जिसमें अकेले उत्तर प्रदेश 50 प्रतिशत की हिस्सेदारी पेश करता है। गन्ना उत्पादन इन राज्यों में किसानों द्वारा गन्ने की खेती बड़े स्तर पर की जाती है, क्योंकि गन्ना बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार देने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। हालांकि गन्ना के अच्छे उत्पादन के लिए किसानों को गन्ने की बुवाई से लेकर इसकी कटाई तक में कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। लेकिन कई बार इसके बावजूद भी किसानों को लागत और मेहनत के अनुरूप गन्ने की खेती (Sugarcane Farming) से उचित मात्रा में प्रोडक्शन नहीं मिलता है। हालांकि किसान अब गन्ने की खेती में कुछ तकनीकी बदलाव एवं बुवाई के वक्त कुछ खास टिप्स को अपनाकर गन्ने का उत्पादन (Production) बढ़ा सकते हैं। किसान नीचे बताए जा रहे इन उपायों को गन्ने की बुवाई के अपना सकते हैं। इससे गन्ने की खेती में दो से तीन गुना ज्यादा प्रोडक्शन प्राप्त किया जा सकता है। आईए गन्ने का उत्पादन बढ़ाने के लिए उन खास टिप्स के बारे में जानते हैं। 

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गन्ने की बुवाई करने का सही समय

गन्ने की बुवाई उपयुक्त मिट्टी, जलवायु, तापमान तथा सही समय पर की जाए, तो गन्ने की खेती से अच्छी पैदावार किसान भाई प्राप्त कर सकते हैं। मध्य और पश्चिम भारत में गन्ने की बुवाई करने का सही समय 15 फरवरी-मार्च अंत तक का होता है। वहीं उत्तर भारत में फरवरी-मार्च में बसंत कालीन गन्ने की बुवाई की जाती है। गन्ने की खेती से अधिक पैदावार लेने के लिए सर्वोत्तम समय अक्टूबर से नवम्बर है। बसंत कालीन गन्ना की बुवाई 15 फरवरी से मार्च महीने के अंत तक करनी चाहिए। गन्ने की बुवाई का विलम्बित समय अप्रैल से 16 मई तक का है।

देर से पकने वाली किस्मों का करें चयन

मध्य, पश्चिम और उत्तर भारत में इस समय बसंत कालीन गन्ने की बुवाई की जाएगी। इन क्षेत्रों में किसान गन्ने की खेती के लिए देर से पकने वाली किस्मों का चयन करें। यदि किसान शीघ्र और जल्दी पकने वाली  गन्ने की किस्सों की बुवाई करना चाहते हैं, तो वे गन्ने की कोशा 88230, 8436, 96268 और कोसे 98231 तथा कोसे 94536 किस्म का चयन कर सकते हैं। जलभराव क्षेत्रों के लिए किसानों को गन्ने की खेती के लिए यूपी 9529, 9530 और कोसे 96436 किस्मों का चयन करना चाहिए। गन्ने की ये किस्में जलभरवा की स्थिति को अच्छी तरह से सहन करती हैं। साथ ही जलभरवा वाले क्षेत्र में गन्ने की बुवाई मार्च-अप्रैल के महीने में करनी चाहिए। 

गन्ने की बुवाई के लिए इस तरह तैयार करें खेत

गन्ने की खेती के लिए उचित जल निकासी वाली भूमि की आवश्यकता होती है। अधिक जलभराव वाली भूमि में गन्ने की फसल के ख़राब होने की संभावना अधिक होती है। सामान्य P.H. मान वाली भूमि खेती के लिए सबसे उपयुक्त होती है। गन्ने के बीजो को अंकुरित होने के लिए 20 डिग्री और इसके पौधे को विकास करने के लिए 25 से 35 डिग्री तापमान की आवयकता होती है। गन्ने की बुवाई करने के लिए सबसे पहले खेत को अच्छी तरह से तैयार कर लिया जाता है। इसके लिए किसान सबसे पहले खेत की 2 से 3 गहरी जुताई कर लें। इसके बाद 10 से  12 गाड़ी प्रति हेक्टेयर के हिसाब पुरानी गोबर की खाद को खेत में डालकर दो से तीन तिरछी गहरी जुताई करें।  इसके बाद रोटावेटर की मदद से खेत की मिट्टी को भुरभुरी बनाकर खेत को समतल करें। गन्ने के बुवाई या रोपाई से पहले 250 किलोग्राम एन. पी. के. (12 32 16) की मात्रा का छिड़काव कर लें। वहीं, 3 किलोग्राम सल्फर WDG की मात्रा को 100 किलो पानी में मिलाकर डेढ़ से दो महीने के तैयार पौधों पर छिड़काव करना चाहिए। 

गन्ने की रोपाई या बुवाई करने विधि

गन्ने की बुवाई या रोपाई पंक्ति से पंक्ति की दूरी 90 सेंटीमीटर से लेकर 60 सेमी. (देरी से गन्ना बोवाई की  दशा में और कम सिंचाई की उपलब्धता) की स्थिति में रखें। पंक्ति से पंक्ति के मध्य 90 सेमी. दूरी रखने  की दशा में तीन आंख वाले टुकड़े बोने के लिए लगभग 15 हजार टुकड़ें या गन्ने की मोटाई अनुसार 25-30 कुन्तल प्रति एकड़ की दर से गन्ने के बीज तथा पंक्तियों के मध्य की दूरी 60 सेमी की दूरी रखने और तीन आंख वाले टुकड़े बोने पर लगभग 30 से 40 कुन्तल गन्ना बीज या 2200 से लेकर 2500 टुकड़ों की प्रति एकड़ आवश्यकता होती है। गन्ने की रोपाई के लिए नालियों को तैयार कर इन नालियों में बीजो को एक फ़ीट की दूरी पर बुवाई करनी चाहिए। नालियों की दोनों औऱ अंत में आड़ी रोपाई कर की जाती है। नालियों को दो से ढाई फ़ीट की दूरी पर तैयार करना चाहिए।  

बुवाई से पहले बीज के टुकडो को करें उपचारित

नाली में बीज को सिरे से सिरा मिलाकर बुवाई की जाती है।  गन्ने की आंखे नाली की बगल की तरफ रहनी चाहिए। बुवाई के समय कूँड़ में पहले उर्वरक डालें उसके ऊपर गन्ने के बीज के टुकडें की बुवाई करें। बीज क टुकडों के लिए कम से कम 9-10 महीने की उम्र के गन्ना का ही उपयोग करें।  गन्ना बीज उन्नत जाति, मोटा, ठोस, शुद्ध व रोग रहित हो,गन्ना की ऑख पूर्ण विकसित तथा फूली हुई हो उसी गन्ने का बीज के लिए उपयोग करें। गन्ने की छोटी पोर हो फूल आ गये हो,ऑख अंकुरित हो या जड़े निकली हो इस प्रकार के गन्ने का उपयोग बीज के लिए न करें। बीज के टुकडों को बोने से पूर्व कार्बनडाईजिम 100 ग्राम, क्लोरोपयरीफास 300 मि.लि. या तदुपरान्त एरीटान 250 ग्राम 100 लीटर पानी में घोल बनाकर बीज के टुकडो को 10 से 15 मिनिट तक घोल में डूबाकर उपचारित करे। इससे  गन्ने के टुक्डे में अंकुरण के समय रोग लगने का खतरा कम हो जाता है। 

फसल की इस प्रकार करें देखभाल

किसान गन्ने के उत्पादन को दो से तीन गुना बढ़ाना चाहते है, तो किसान गन्ने की बीजों की बुवाई के 20 से 25  दिन बाद नमी के हिसाब से हल्की सिंचाई करनी चाहिए इससे अपेक्षाकृत अच्छा जमाव होता है। ग्रीष्म ऋतु में 15 से 20 दिनों के अन्तर पर सिंचाई करनी चाहिए। सिंचाई के लिए टपका सिंचाई (ड्रिप सिंचाई) विधि का उपयोग करना चाहिए। शरदकालीन और बसंत कालीन गन्ने की खेती में शीघ्र पकने वाली किस्मों की कटाई में विलंब होने की दशा में नालियों की मेड़ों को गिराते हुए ठूटों की छटाई करनी चाहिए। खरपतवार नियंत्रण  के लिए सिमैजीन (50 डब्लू) 1 किग्रा./एकड़ की दर से जमाव पूर्व या जमाव के उपरान्त प्रयोग करना चाहिए। बसंत कालीन गन्ने में दो पंक्तियों के बीच में मूंग, उर्द, लोबिया, भिंडी, लोकी तोरई, खीरा और ककड़ी आदि सह फसल की खेती की  जा सकती है। इससे किसान भाईयों को अतिरिक्त आय भी हो जाती है।

गन्ने के थानो की जड़ पर मिट्‌टी चढने से जड़ों का सघन विकास होता है। थानों पर मिट्‌टी चढाने से देर से निकले कल्लों का विकास रूक जाता है साथ ही वर्षा ऋतु में फसल गिरने से बच जाती है। मिट्‌टी चढने से स्वतः निर्मति नालिया वर्षा में जल निकास का कार्य करती है और जलभराव होने की स्थिति से खेत को बचाती है। 

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