सूखे इलाकों के लिए वरदान रोजेल फार्मिंग, हर साल कमाएं 2 लाख रुपए

पोस्ट -02 दिसम्बर 2022 शेयर पोस्ट

रोजेल फॉर्मिग से किसानों को कम लागत में मिलेगा ज्यादा  मुनाफा

महंगाई के इस युग में परंपरागत तरीकों से ही खेती करना किसानों के लिए काफी चुनौतीपूर्ण है। इस तरह की खेती में कुल पैदावार की तुलना में आधी से अधिक तो लागत में ही चली जाती है। भारत के अनेक किसान इसी तरह से खेती करते चले आ रहे हैं लेकिन वे यदि आधुनिक संसाधनों और नई सोच के साथ खेती करें तो लाभ ही लाभ होगा। केंद्र और राज्य सरकारें भी समय-समय पर किसानों के हित में कई स्कीम लेकर आती हैं। इनमें किसानों को सब्सिडी का लाभ भी मिलता है, साथ ही कम लागत और अधिक मुनाफा कमाया जा सकता है। रोजेल की खेती भी इसी तरह की है। यह कम से कम सिंचाई और अन्य प्रकार की कम लागत के साथ की जा सकती है। रोजेल फॉर्मिंग से एक एकड़ में 2,00,000 लाख रुपये की सालाना आमदनी हो सकती है। यहां ट्रैक्टरगुरु पर इस ऑर्टिकल में आपको मध्यप्रदेश और यूपी की सीमा पर बसे बुंदेलखंड के एक जागरूक किसान की सफलता की कहानी बता रहे हैं जिसने पानी की कमी से खेती नहीं कर पाने के कारण पलायन करने को मजबूर सैकड़ों किसानों को रोजेल फॉर्मिंग से नई रोशनी दिखाई है।

जानें, किसान रघुवीरसिंह ने कैसे शुरू की रोजेल की खेती 

बता दें कि किसान रघुवीरसिंह ऐसे इलाके में रहते थे जहां पानी की कमी के कारण उस दौरान खेती करना भी मुश्किल था। यह बात कई वर्ष पहले की है। पानी के अभाव में खेती नहीं कर पाने के कारण उनके गांव के कई किसानों ने कहीं और जाकर बसने की तैयारी कर ली थी। ऐसे में रघुवीसिंह ने हौंसला नहीं खोया। उन्होंने उद्यान विभाग से औषधीय पौधों के बारे में  जानकारी ली। इसके बाद उड़द, मूंग, तिलहन आदि की फसलों को छोड़कर वे रोजेल की खेती करने लगे। बता दें कि रोजेल की खेती के साथ उड़द की खेती भी की जा सकती है। जब तक रोजेल का पौधा बड़ा होता है तब तक उड़द की कटाई हो जाती है। इस तरह एक ही सीजन में दो फसलों का लाभ ले सकते हैं।

रोजेल के तने से लेकर पत्ते और फूल हैं कीमती

बता दें कि रोजेल एक ऐसा औषधीय पौधा है जिसकी हर चीज कीमती है। इसका तना, पत्ते, फूल सभी की बाजार में खासी डिमांड रहती है।

एक पौधे से मिलेगी 600 केजी फसल

रोजेल का एक पौधा ही कितनी फसल दे सकता है यह सुनकर आप हैरान रह जाएंगे। करीब 5 महीने बाद एक पौधे से 4 से 6 क्विंटल फसल पैदा होती है। बुंदेलखंड के हमीरपुर के रहने वाले किसान रघुवीरसिंह बताते हैं कि रोजेल की खेती संबंधी जानकारी देन के लिए उन्होंने अपने अन्य कई साथियों के साथ मिलकर फार्मर प्रोड्यूसर ऑर्गेनाइजेशन बनाया है। इसमें किसानों को अलग-अलग ट्रेनिंग दी जा रही है। रघुवीरसिंह के प्रयासों से अब बुंदेलखंड क्षेत्र के किसानों को अपने घर के पास ही इसका मार्केट मिल जाता है। जिले में जल्द ही प्रोसेंसिंग यूनिट भी उपलब्ध होगी।

जानिएं, रोजेल के बारे में पूरी जानकारी

रोजेल को रोसेले के नाम से भी जाना जाता है। यह भारत और मलेशिया के मूल निवासी हैं। रोसेले पौधे के फूल जिन्हें बिहार और झारखंड के स्थानीय भाषा में कुदरुम कहा जाता है | यह मल्लो परिवार का सदस्य है और उष्णकटिबंधीय जंगली बारहमासी है। रोजेल की झाड़ी सामान्यत: एक से दो मीटर ऊंची होती है। तने आमतौर पर लाल और बैंगनी रंग के होते हैं। इसके फूल तुरही के आकार होते हैं और इसमें पांच मलाईदार पीले रंग की पंखुड़ियां होती है। यह एक बंद ट्यूलिप के आकार जैसा दिखाई देता है।

रोजेल के फायदे / रोजेल का उपयोग

रोजेल एक अद्भुत जड़ी-बूटी है। इसका उपयोग सीरप, पाउडर, साग-सब्जी, चटनी, जैली, जैम, पेय पदार्थ, सॉस और शराब आदि बनाने में उपयोग किया जाता है। इसे खट्‌टा फल भी कहा जाता है। रोजेल का उपयोग शराब के नशे को कम करने में किया जाता है। ग्वालेमाटा जैसे देश में इसे हैंगओवर का प्रमुख उपाय माना जाता है। इसे अफ्रीका में  'सूडान चाय' के रूप में जाना जाता है, जहां इसका उपयोग खांसी और पाचन संबंधी बीमारियों के इलाज में किया जाता है। भारत और ब्राजील में इसकी कड़वी जड़ों और बीजों का उपयोग खराब पेट को सही करने के लिए किया जाता है। इसके फूलों  के पंखुरियों को लहसुन, मिर्च ,अदरक और कुछ मसालों के साथ मिलाकर चटनी बनाया जाता है |

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