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गरमा धान से किसान कम समय में करें ज्यादा कमाई, 90 से 120 दिनों में मिलेगा उत्पादन

गरमा धान से किसान कम समय में करें ज्यादा कमाई, 90 से 120 दिनों में मिलेगा उत्पादन
पोस्ट -25 अप्रैल 2024 शेयर पोस्ट

किसान इस वक्त करें गरमा धान की खेती, जानें कैसे करते हैं फसल बुवाई की तैयारी

Hot Paddy Cultivation : धान (चावल) खरीफ सीजन की मुख्य खाद्यान्न फसल है, जिसकी खेती देश के पूर्वी और दक्षिणी राज्यों में मुख्य तौर पर बरसात के समय (जून महीने के मध्य से जुलाई प्रथम सप्ताह) में की जाती है। वहीं, देश के नदियों, जलाशयों, पानी वाले कई इलाकों में गरमा धान की खेती (hot paddy cultivation) किसानों द्वारा की जाती है। खास बात यह है कि सरकार राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के तहत किसानों को गरमा धान की खेती के लिए प्रेरित करती है। इसके लिए किसानों के बीच निशुल्क धान का बीज वितरण सहित अन्य सुविधाएं भी मुहैया करवाई जाती है। गरमा धान की खेती करने के बहुत फायदे हैं। इससे कम समय में अच्छी पैदावार होती है, जिससे किसानों की आय में वृद्धि होगी। ऐसे में रबी की फसल गेहूं की कटाई के बाद किसानों के खेत चार महीने के लिए खाली पड़े रहते हैं। किसान अपने खाली पड़े खेतों में गरमा धान की फसल लगा सकते हैं और कम समय में ज्यादा कमाई कर सकते हैं। क्योंकि 90 से 120 दिनों यानी 4 माह के अंदर गरमा धान की फसल पककर कटाई के लिए तैयार हो जाती है। ऐसे में जहां पानी की पर्याप्त व्यवस्था है उन इलाकों में रबी सीजन की फसल कटाई के बाद किसानों ने गरमा धान की खेती की बुवाई/रोपाई शुरू कर दी है। आइए जानते हैं कि गरमा धान क्या है और इसकी खेती किस तरह से की जाती है तथा इसकी फसल कितने दिनों में तैयार हो जाती है?

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धान उत्पादक मुख्य राज्य (Major paddy producing states)

भारत में सबसे अधिक धान की खेती पश्चिम बंगाल राज्य में किसानों द्वारा की जाती है। राज्य में लगभग 54.34 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में धान की बुवाई होती है, जिससे करीब 146.06 लाख टन धान की पैदावार होती है। वहीं, उत्तर प्रदेश, आन्ध्र प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़ और तमिलनाडु जैसे अन्य राज्य भी धान उत्पादक मुख्य राज्यों में शामिल है। यहां की अधिकांश किसान आबादी खरीफ मौसम यानी बरसात का सीजन आने से पहले चावल (धान) की रोपाई और बुवाई के लिए नर्सरी लगाने की तैयारी शुरू कर देती है।  इन राज्यों में करोड़ों किसान परिवार मौसम के दौरान अपने क्षेत्र की मिट्टी और जलवायु के अनुसार धान की विभिन्न प्रजातियों की खेती करते हैं। लेकिन देश के कई प्रमुख चावल उत्पादक प्रांतों में किसान इस वक्त रबी कालीन धान-चावल की फसलें काट रहे हैं। वहीं, नदियों, जलाशयों और नदी के तलहटी वाले क्षेत्रों बसे गावों में किसान बड़े पैमाने पर गरमा धान की खेती कर रोपाई कर रहे हैं। धान की खेती मानसून के अलावा शीत कालीन सीजन में भी की जा सकती है।  जहां पानी के पर्याप्त संसाधन उपलब्ध हो। जिले में गरमा धान की खेती के लिए मौसम अभी भी अनुकूल है। गरमा धान की रोपाई मार्च के अंतिम सप्ताह शुरू होकर अप्रैल अंत तक की जा सकती है। 

90 दिनों में पककर तैयार हो जाती है गरमा धान की फसल (Hot paddy crop gets ripe in 90 days)

विलुप्त हो रहे गरमा धान की खेती को पुनर्जीवित करने का प्रयास सरकार द्वारा किया जा  रहा है। इसकी खेती में बढ़ोतरी करने के लिए किसानों को तकनीकी रूप में दक्ष करने के लिए निशुल्क बीज वितरण के साथ साथ प्रशिक्षण दिया जाता है। जहां पानी की पर्याप्त व्यवस्था है वहां किसान बोरबेल के सहारे गरमा धान की खेती मानसून के अलावा अन्य मौसम में भी कर सकते हैं। फिलहाल, गर्मा धान की खेती के लिए मौसम उपयुक्त है। इस दौरान गर्मी अधिक पड़ती है, जिसके कारण धान के खरीफ सीजन के अनुपात में गरमा धान की उपज ज्यादा होती है। गर्मा धान के उत्पादन में सबसे बड़ी परेशानी सिंचाई की होती है, लेकिन पानी वाले क्षेत्रों में किसान गरमा धान की खेती कर कम समय में अच्छी कमाई कर सकते हैं। गरमा धान की फसल केवल 90 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। 

अधिक उत्पादन के लिए उपयोग करें गुणवत्ता वाले बीज (Use quality seeds for more production)

किसी भी फसलों से बेहतर उत्पादन प्राप्त करने में उसके बीज सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। अगर अच्छे गुणवत्ता वाले बीजों का प्रयोग खेती के लिए किया जाए तो फसल से अधिक उत्पादन हासिल किया जा सकता है।  ऐसे में गरमा धान से अधिक उत्पादन लेने के लिए इसकी खेत की रोपाई में उन्नत किस्मों के गुणवत्ता वाले बीजों का ही उपयोग करना चाहिए। वहीं, कई राज्यों में कृषि विभाग द्वारा गरमा धान की खेती के लिए राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन की ओर से किसानों के बीच DRRH 2 हाइब्रिड धान के बीज निशुल्क उपलब्ध कराया जाता है। गरमा धान के 1 एकड़ क्षेत्र में मात्र 6 किलो बीज की आवश्यकता होती है। इस बीज से अधिक पैदावार मिलती है और मात्र 110 से 115 दिन में पककर तैयार हो जाता है। इसके अलावा, इस किस्म के बीज से उत्पन्न पौधे में कीट और बीमारियों का प्रकोप ना के बराबर होता है, जो किसानों के लिए काफी हितकर है। किसान इससे कम समय में अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं और फिर धान के सीजन में बासमती एवं गैर-बासमती धान किस्मों की खेती शुरू कर सकते हैं। 

आय में कर सकते हैं वृद्धि (can increase income)

कृषि विभाग के अधिकारियों के अनुसार, रबी फसल की कटाई के बाद किसानों के खेत चार माह के लिए परती पड़े रहते है। फिर चार महीने बाद किसान बरसात के सीजन में खरीफ फसल की बुवाई करते हैं। इन चार महीनों के दौरान किसान खाली पड़े खेतों में गरमा धान की खेती कर कम समय में अच्छी पैदावार से अपनी आय में वृद्धि कर सकते हैं। गरमा धान गर्मी के दिनों में उगाई जाने वाली फसल है और इसकी फसल जुलाई माह में पककर कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसलिए जिन किसानों के पास पानी के पर्याप्त संसाधन उपलब्ध हो वे खाली खेतों में गरमा धान की बुवाई शुरू कर सकते हैं।  खेती के लिए मौसम अभी भी अनुकूल है। 

नदियों, जलाशयों, पानी वाले क्षेत्रों में किसान जीरो टिल सीड़ ड्रिल मशीन की मदद से धान की सीधी बुवाई कर सकते हैं। सीधी बुवाई तकनीक में 25-30 प्रतिशत तक कम पानी लगता है, जबकि रोपई विधि में खेत में चार से पांच सेमी. पानी भरा होना चाहिए। बता दें कि धान की सीधी बुवाई एक ऐसी तकनीक है, जिसमें बिना धान की नर्सरी तैयार किए सीधे बीज की बुवाई करते हैं। वहीं नर्सरी विधि में पहले इसके बीज से नर्सरी तैयार की जाती है, उसके 25 से 30 दिन बाद तैयार नर्सरी से पौधों को उखाड़कर रोपाई की जाती है।

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