भारतीय आहार में खाद्य तेल अपनी महत्वपूर्ण भूमिका रखता है। खाद्य तेल खाने को स्वादिष्ट बनाता है। लेकिन देशभर में बीते कुछ दशकों के अंदर खाद्य तेल की मांग में तेजी आई है। इसके परिणाम स्वरूप किसानों का रूझान भी तिलहन फसलों की तरफ होने लगा है। देश में तिलहन फसलों उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए सरकार द्वारा कई प्रकार की योजनाओं का संचालन भी किया जा रहा है। इन योजनाओं के माध्यम से किसानों को दलहन-तिलहन की खेती करने पर आर्थिक सहायता भी दी जा रही है। यहीं नही इन फसलों की खेती पर दी जाने वाली सहायता राशि किसानों के खातों में ट्रांसफर की जाती है। यही वजह है कि वर्तमान समय में देश के कई हिस्सों में किसान भाई अधिक मुनाफा कमाने के लिए तिलहन फसलों की खेती की तरफ तेजी से बढ़ रहे हैं। देखा जाए तो तिलहन फसलों की मांग बाजार में काफी उच्चे स्तर पर है। क्योंकि तिलहन फसल से केवल तेल ही नहीं अन्य कई तरह के उत्पादों को भी तैयार किया जाता है। यदि आप भी तिलहन फसलों की खेती कर मोटी आय हासिल करना चाहते हैं और आपके पास पर्याप्त जानकारी नहीं है, तो ट्रैक्टरगुरु के इस लेख में हम आपको ऐसी तिलहनी फसलों की जानकारी देंगे जिससे आप भी इनकी खेती कर सरलता से मोटी कमाई कर सकते हैं।
भारत के कई हिस्सों में खरीफ, रबी और जायद तीनों ही कृषि मौसम में अलग-अलग तिलहन फसलों की खेती की जाती है। देश में तिलहन की मुख्य फसलों में मूंगफली, सोयाबीन, सरसों, तोरिया, सूरजमुखी, तिल, कुसुम, अलसी, नाइजरसीड्स आदि शामिल है। देश के विभिन्न राज्यों में उत्पादन और क्षेत्रफल के दृष्टिकोण से देखा जाये तो देश में खाद्य तेल के रूप में प्रयोग होने वाली फसलों में मूंगफली, सोयाबीन और सरसों प्रमुख तिलहन फसलें हैं। देश में तिलहन के उत्पादन पर नजर डाली जाये तो सोयाबीन का 1.098 करोड़ टन, सरसों का 0.912 करोड़ टन और मूंगफली का 0.085 करोड़ टन के लगभग उत्पादन होता है। जिसमें सरसों का उत्पादन देश में दूसरे नंबर पर आता है। उत्तर भारत में सबसे ज्यादा तिलहन फसलों की खेती होती है। यहां सरसों एक प्रमुख तिलहन फसल है। लेकिन यहां के किसान तिल और मूंगफली की खेती भी करते है। उत्तर भारत के किसान इसकी खेती खरीफ, रबी और जायद तीनों ही सीजन में कर रहे है और इसकी खेती से अच्छी कमाई भी कर रहे हैं।
देश के विभिन्न राज्यों में उत्पादन और क्षेत्रफल के दृष्टिकोण से देखा जाए तो खाद्य तेल के रूप में सरसों प्रमुख तिलहन फसल है। राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब आदि राज्यों में बड़े पैमाने पर किसान रबी मौसम में अन्य खाद्यान्न और दलहन फसलों की तुलना में सरसों की खेती को अधिक प्राथमिकता देते हैं। सरसों की खेती की तरफ किसानों के रूझान के पीछे प्रमुख कारण विगत वर्ष सरसों का अच्छा भाव मिलना है। पिछले साल भारत सरकार द्वारा सरसों फसल के निर्धारित न्यूनतम समर्थन मूल्य से लगभग डेढ़ से दोगुनी कीमतों पर की सरसों की बिक्री हो गई थी। वर्तमान में भी सरसों, सरसों तेल और सरसों खली की कीमतें काफी अच्छी चल रही हैं। देश के पांच प्रमुख सरसों उत्पादक राज्यों में राजस्थान का स्थान प्रथम हैं, जिसकी देश के कुल सरसों उत्पादन में 46.06 प्रतिशत भागीदारी है। इसके बाद हरियाणा 12.60 प्रतिशत, मध्य प्रदेश 11.38 प्रतिशत, उत्तरप्रदेश 10.49 प्रतिशत और पश्चिम बंगाल 7.81 प्रतिशत भागीदारी के साथ क्रमशः द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ और पंचम स्थान पर अपना योगदान दे रहे हैं।
भारत सरकार द्वारा रबी मार्केटिंग सीजन 2022-23 के लिए सरसों का एमएसपी 5050 रुपए प्रति क्विंटल निर्धारित किया गया है। शुरुआती सीजन में जब फसल तैयार होकर बिक्री के लिए बाजार में आयी तो किसानों तय समर्थन मूल्य से डेढ़ से दो गुना ज्यादा बाजार भाव मिला। आगामी रबी मार्केटिंग सीजन 2023-24 के लिए भी भारत सरकार द्वारा सरसों का न्यूनतम समर्थन मूल्य तय किया जाएगा। जिसमें पिछले वर्ष की तुलना में 400 रुपए प्रति क्विंटल की बढ़ोत्तरी की संभावना जताई जा रही है। किसानों और कृषि बाजार के जानकारों को पूरी उम्मीद है इस वर्ष भी बाजार में सरसों की कीमतें एमएसपी से ज्यादा ही रहेंगी।
उत्तर भारत में ज्यादातर किसान खेत में मूंगफली और तिल की भी खेती करते है। इसे किसान खरीफ और रबी दोनों सीजन में उगाते हैं, लेकिन अब किसान गर्मी में तिल भी उगा रहे हैं और इसकी खेती कर अच्छी कमाई भी करते हैं। नतीजतन तिल की खेती का रकबा उत्तर भारत में बढ़ा हैं। जानकारी के मुताबिक तिल का बीज करीब 300 रुपए प्रतिकिलो में आता है। एक बीघे में दो किलो बीज लगता है। इससे 4 क्विंटल तक उत्पादन होता है। बाजार में तिल के भाव करीब 6-7 हजार रुपए प्रति क्विंटल तक होता है। प्रति बीघा औसत लागत तीन हजार रुपए तक आती है। अच्छा उत्पादन होने पर काफी अच्छा मुनाफा होता है।
मूंगफली खरीफ और जायद दोनों मौसम में ही उगाई जाने वाली फसल है। मूंगफली भारत की मुख्य महत्त्वपूर्ण तिलहनी फसल है। यह तमिलनाडू, गुजरात, आन्ध्र प्रदेश तथा कर्नाटक राज्यों में सबसे अधिक उगाई जाती है। इसके अलावा इसकी खेती मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, राजस्थान तथा पंजाब में भी विशेष रूप से की जाती है। राजस्थान में इसकी खेती लगभग 3.47 लाख हैक्टर क्षेत्र में की जाती है, जिससे लगभग 6.81 लाख टन उत्पादन होता है। इसकी औसत उपज 1963 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर है। मूंगफली की फसल बुवाई के 120 से 130 दिन पश्चात खुदाई के लिए तैयार हो जाती है। मूंगफली के एक हेक्टेयर के खेत से 20 से 25 क्विंटल की पैदावार प्राप्त हो जाती है, जिसका बाजार भाव गुणवत्ता के हिसाब से 60 रुपए से 80 रुपए प्रति किलो तक होता है, जिससे मूंगफली की एक बार की फसल से 1,20,000 से 1,60,000 तक की कमाई आसानी से कर सकते हैं।
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