Sugarcane Farming : गन्ना देश की सबसे महत्वपूर्ण व्यावसायिक फसलों में से एक है। गन्ना फसल से गुड, राब, शक्कर, खांड, बूरा, मिश्री और चीनी तैयार की जाती है, जिससे इसकी खेती से बड़ी संख्या में किसानों और आम लोगों को रोजगार मिलता है तथा यह विदेशी मुद्रा हासिल करने में भी महत्वपूर्ण रोल अदा करती है। ऐसे में गन्ने की खेती में लागत कम करने और पैदावार बढ़ाने के लिए कृषि विश्वविद्यालय और कृषि विभाग के अधिकारियों द्वारा समय-समय पर सलाह जारी की जाती है, जिससे किसान इन सलाह के माध्यम से कम लागत में गन्ने की खेती से अधिक पैदावार कर अपनी आमदनी बढ़ा सकें।
इस बीच उत्तर प्रदेश के पीलीभीत के जिला गन्ना अधिकारी खुशीराम भार्गव ने किसानों को गन्ने की पेड़ी से अधिक पैदावार हासिल करने के लिए कुछ महत्वपूर्ण टिप्स दिए हैं। किसान इन टिप्स को अपनाकर न केवल गन्ना उत्पादन (Sugarcane Production) बढ़ा सकते हैं, बल्कि कम लागत से अधिक पैदावार भी प्राप्त कर सकते हैं। बता दें कि एक बार बोये गए गन्ने को काट लेने के बाद उसी से दूसरी फसल लेने को पेड़ी या मोढ़ी कहते हैं। पेड़ी गन्ना (Paddy Sugarcane) फसल से पौधा गन्ना या नीलफ फसल की तुलना में कम लागत से भी अधिक पैदावार ली जा सकती है।
उत्तर प्रदेश के तराई क्षेत्रों के जनपदों में गन्ना फसल की पैदावार बढ़ाने की दिशा में लगातार प्रयास किए रहे हैं। खेतों में गन्ना की पेडी प्रबंधन के लिए काम तेज कर दिया गया है। गन्ना उत्पादकों को इसके उचित प्रबंधन के लिए जानकारी देकर जागरूक किया जा रहा है ताकि पेड़ी गन्ना में अधिक पैदावार प्राप्त की जा सकें।
गन्ना अधिकारी खुशीराम भार्गव ने बताया कि गन्ना किसान पौधा गन्ना में तो अधिक मेहनत और देखभाल करते हैं, परंतु पेड़ी गन्ना फसल की उचित देखभाल नहीं करते हैं, जिसके कारण पेड़ी गन्ना में प्रति हेक्टेयर कम पैदावार मिलती है। भार्गव ने कहा कि गन्ना किसानों के बीच आमतौर पर यह आमधारणा है कि गन्ना पेड़ी की फसल बिना लागत की फसल है। पेड़ी का रकबा करीब 50 प्रतिशत होता है, लेकिन ठीक से देखभाल न करने के कारण इसकी पैदावार कम होती है।
डीसीओ खुशीराम ने बताया कि अगर देखा जाए तो पेड़ी की फसल (padi crop) में ज्यादा पैदावार व चीनी परता पाया जाता है। पेड़ी गन्ना फसल की उत्पादकता बढ़ाने के लिए गन्ना की पेड़ी का उचित प्रबंधन पौधा गन्ना की कटाई के तुरंत बाद आवश्यक है। अगर समुचित प्रबंधन न किया जाए तो पैदावर में 25-30 प्रतिशत तक कमी आ सकती है। उन्होंने बताया कि पेड़ी गन्ना की अच्छी पैदावार लेने के लिए गन्ने की कटाई बिल्कुल खेत की मिट्टी की सतह से मिलाकर करना चाहिए। इस तरह से कटाई करने से कल्ले अधिक निकलते हैं। जिस खेत में लाल सड़न, उकठा, या कांडुवा बीमारी लगी हो, उस खेत से पेड़ी गन्ना की फसल नहीं लेनी चाहिए। इसके लिए पौधे गन्ने के ठूठ की छटाई आवश्यक है, इस कार्य के लिए गन्ना समितियों में आर.एम.डी. कृषि यंत्र उपलब्ध है, जो ट्रैक्टर चालित है। छोटे किसान फावड़े से भी ठूठ की छटाई कर सकते हैं तथा इथोफोन दवा की 50.00 मिली (MM) मात्रा 500 लीटर पानी में घोलकर ठूंठ पर छिड़काव करना चाहिए। इससे फुटाव अच्छा होता है तथा पौधे में वृद्धि जल्दी शुरू हो जाती है।
जिला गन्ना अधिकारी खुशीराम ने बताया कि अगर खेत में पौधे गन्ने की सूखी पत्तियों के अवशेष हों तो, इसे दोनों पंक्तियों के बीच में बिछाने के बाद सिंचाई करते हैं, जिससे मृदा में नमी बनी रहती है तथा खरपतवार कम पनपते हैं। कीटनाशक रसायन यूजो (क्लोरोपैरिफॉस 50 प्रतिशत और 5 प्रतिशत साईपर) की 400 मिली मात्रा को 400 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करने से काला चिकटा, दीमक सैनिक कीट व मिलीबग जैसे कीटों से पेड़ी फसल की रक्षा की जा सकती है। डीसीओ ने बताया कि पेड़ी गन्ने के लिए 20-25 प्रतिशत तक ज्यादा उर्वरक की आवश्यकता होती है। इसके लिए 220 किग्रा. नाइट्रोजन, 80 किग्रा. फ़ॉस्फ़ोरस और 80 किग्रा. पोटाश की जरूरत होती है, जिसे गोबर की सड़ी खाद, जैव उर्वरक और रासायनिक उर्वरकों से पूरी कर सकते हैं। 10 किग्रा एजोबेक्टर और 10 किग्रा पीएसबी को 5 क्विंटल पूरानी सड़ी गोबर की खाद के साथ मिलाकर दोनों लाइनों के बीच डालकर गुड़ाई कर देनी चाहिए।
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