अदरक की खेती गर्म और आर्द्रता वाले स्थानों में की जाती हैं। इसके पौधों को कंद के रूप में उगाया जाता है। मध्यम वर्षा बुवाई के समय अदरक की गाँठों (राइजोम) के जमाने के लिये आवश्यक होती है। अदरक का वानस्पतिक नाम जिनजिबेर ओफिसिनेल हैं, अदरक‘ शब्द की उत्पत्ति संस्कृत भाषा के स्ट्रिंगावेरा से हुई, जिसका अर्थ होता है, एक ऐसा सींग या बारहा सिंधा के जैसा शरीर। अदरक मुख्य रूप से उष्ण क्षेत्र की फसल है। भारत की अन्य भाषाओं में अदरक को विभिन्न नामो से जाना जाता है जैसे- आदू (गुजराती), अले (मराठी), आल्लायु (तेलगू), आदा (बंगाली), इल्लाम (तमिल), अल्ला (कन्नड.) तथा अदरक (हिन्दी और पंजाबी) आदि। अदरक का प्रयोग प्राचीन काल से ही मसाले, ताजी सब्जी और औषधी के रूप में चला आ रहा है। भारत में अदरक की खेती का क्षेत्रफल 136 हजार हेक्टर है जो उत्पादित अन्य मसालों में प्रमुख हैं। भारत को विदेशी मुद्रा प्राप्त का एक प्रमुख स्त्रोत हैं। भारत विश्व में उत्पादित अदरक का आधा भाग को पूरा करता हैं। भारत में अदरक की खेती मुख्यतः केरल, उडीसा, उत्तराँचल, उत्तर प्रदेश, पश्चिमी बंगाल, आंध्रप्रदेश, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश तथा असम में मुख्य व्यवसायिक फसल के रूप में की जाती है। केरल देश में अदरक उत्पादन में प्रथम स्थान पर हैं। वर्तमान में अदरक की खेती कर कई किसान अधिक मुनाफा भी कमा रहे हैं। अगर आप भी अदरक की खेती से अधिक मुनाफा पाना चाहते हैं, तो ट्रैक्टर गुरू की आज की इस पोस्ट में आपको अदरक की उन्नत खेती की जानकारी दी जा रही है। इस जानकारी से आप अदरक की उन्नत खेती कर उचित पैदावार प्राप्त कर पाएंगे।
अदरक का प्रयोग मसाले, औषधी तथा सौंदर्य सामग्री के रूप में हमारे दैनिक जीवन में वैदिक काल से चला आ रहा हैं। इसका इस्तेमाल विशेषकर खाने में मसाले के तौर पर किया जाता है, इसके अलावा मुख्य रूप से इसे चाय बनाने, अचार बनाने तथा अनेक प्रकार के व्यंजनों में खुशबु लाने के लिए इस्तेमाल में लाते हैं। अदरक को सुखाकर उसे सोंठ के रूप में भी उपयोग में लाते हैं, इसके अलावा इसे अनेक प्रकार के रोगो पथरी, खांसी, सर्दी-जुकाम, पीलिया और पेट के कई रोगों के लिए भी लाभकारी माना जाता है। सूखी अदरक का उपयोग चटनी, जैली, सब्जियों शर्बत, लडडू, चाद आदि में किया जाता है। अदरक से तेल, पेस्ट, पाउडर तथा क्रीम आदि सौंदर्य प्रसाधन में लिया जाता हैं।
अदरक का सेवन स्वास्थ्य के लिए काफी फायदेमंद माना जाता है। क्योंकि अदरक में कई औषधीय गुण पाये जाते हैं, जो स्वास्थ्य को काफी लाभ पहुंचाते हैं। अदरक में प्रचूर मात्रा में विटामिन ए, विटामिन डी, विटामिन, आयरन जिंक और कैल्शियम जैसे पोषक तत्व पाये जाते हैं, जिसके सेवन से कई प्रकार की बीमारियां पेट दर्द, माइग्रेन दर्द, कोलेस्टॉल लेवल को कम करना एवं ब्लड प्रेशर को कंट्रोल करने में मदद करता हैं। वहीं कच्चे अदरक का सेवन करने से सर्दी-खांसी जैसे वायरल इंफेक्शन से काफी हद तक बचा जा सकता हैं।
जलवायु : अदरक की खेती गर्म और आर्द्रता वाले स्थानों में विस्तार रूप से की जाती है। अदरक की फसल के लिए उष्णकटिबंधीय और शीतोष्ण कटिबंध जलवायु की आवश्यकता होती है। गर्मियों का मौसम अदरक की फसल के लिए अधिक उपयुक्त होता है, क्योकि गर्मियों के मौसम में इसके कंद अच्छे से विकास करते हैं। इसकी सफल खेती 1500 से 1800 मि.मी. वार्षिक वर्षा वाले क्षत्रों में अच्छी उपज के साथ की जा सकती है। अदरक के पौधों को अंकुरित होने के लिए 20 से 25 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है, तथा कंदो को पकने के दौरान 30 से 35 डिग्री तापमान जरूरी होता है।
भूमि : अदरक की खेती के लिए बलुई दोमट जिसमें अधिक मात्रा में जीवांश या कार्बनिक पदार्थ की मात्रा हो वो भूमि सबसे ज्यादा उपयुक्त रहती है। इसके साथ ही भूमि जल निकासी वाली होनी चाहिए। उचित जल निकास ना होने से कन्दों का विकास अच्छे से नही होता। अदरक की खेती के लिए भूमि का पी.एच मान 5.6 से 6 के मध्य होना चाहिए।
खेती की तैयारी : अदरक की खेती करने से पहले खेत को तैयार किया जाता है। इसके खेत को करीब एक माह पहले तैयार करना होता है। इसके लिए पहले खेत की गहरी जुताई मिट्टी पलटने वाले देशी हल से करवा दे। जुताई के बाद खेत को कुछ समय के लिए ऐसे ही खुला छोड़ दे,जिससे खेत की मिट्टी में अच्छी तरह से धूप लग जाये। इसके बाद खेत में पानी लगा कर कुछ दिन बाद इसकी हिस्क हैरो या रोटावेटर लगा कर जुताई कर मिट्टी को भुरभुरी बना लेना चाहिए। इसके बाद खेत में उचित मात्रा में प्राकृतिक गोबर की सड़ी खाद या कम्पोस्ट खाद और नीम की खली को खेत में डालकर पुनः रोटावेटर के पीछे पाटा लगाकर 2 से 3 जुताई कर खेत को समतल बना लेना चाहिए। सिंचाई की सुविधा एवं बोने की विधि के अनुसार तैयार खेत को छोटी-छोटी क्यारियों में बाँट लेना चाहिये। अंतिम जुताई के समय उर्वरकों को अनुशंसित मात्रा का प्रयोग करना चाहिये। शेष उर्वरकों को खड़ी फसल में देने के लिये बचा लेना चाहिये।
बुआई का समय : अदरक की बुवाई दक्षिण भारत में मानसून फसल के रूप में अप्रैल से मई में की जाती हैं। जबकि मध्य एवं उत्तर भारत में अदरक एक शुष्क क्षेत्र फसल है, जिसे अप्रैल से जून माह तक बुवाई की जाती हैं। दक्षिण भारत में इसके खेत की बुवाई का सबसे उपयुक्त समय 15 मई से 30 मई हैं। तथा उत्तर भारत में 15 जून के बाद बुवाई करने पर कंद सड़ने लगते हैं और अंकुरण पर प्रभाव बुरा पड़ता हैं। केरल में इसकी बुवाई अप्रैल के प्रथम सप्ताह से ही प्रारम्भ कर दी जाती हैं। ऐसा करके केरल के किसान इसकी खेती से औसत उपज से कई गुणा अधिक उपज प्राप्त करते हैं। वहीं पहाड़ी क्षेत्रो में 15 मार्च के आस-पास बुवाई की जाने वाली अदरक में सबसे अच्छा उत्पादन प्राप्त होता हैं।
बीज की मात्रा : इसके खेत की बुवाई बीजों से नहीं बल्कि इसके कंद को ही बीज के रूप में उपयोग किया जाता हैं। इसके लिए अदरक के कन्दों का चयन बीज हेतु 6 से 8 माह की अवधि वाली फसल में पौधों को चिन्हित करके काट लेना चाहिये अच्छे प्रकन्द के 2.5 से 5 सेमी. लम्बे कन्द जिनका वजन 20 से 25 ग्राम तथा जिनमें कम से कम तीन गाँठे हो बुवाई हेतु लेनी चाहिये। अदरक में 20 से 25 क्विंटल प्रकन्द प्रति हेक्टेयर बीज दर पर्याप्त रहता हैं। तथा पौधों की संख्या 140000 प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होती हैं। मैदानी भागो में 15 से 18 क्विंटल प्रति हेक्टेयर बीजों की मात्रा पर्याप्त रहती है।
बीजोपचार : अदरक की लागत का 40 से 46 प्रतिशत भाग बीज में लग जाता इसलिए इसके बीजों का चुनाव, प्रजाति, क्षेत्र एवं प्रकन्दों के आकार के अनुसार ही करना चाहिये एवं इसके बीजों को उपचारित करने के बाद प्रर्वधन हेतु उपयोग करना चाहिये। प्रकन्द बीजों को खेत में बुवाई, रोपण एवं भण्डारण के समय उपचारित करना आवश्यक है। बीज उपचारित करने के लिये मैंकोजेब .मैटालैक्जिल या कार्बोन्डाजिम की 3 ग्राम मात्रा को प्रति लीटर के पानी के हिसाब से घोल बनाकर कन्दों को 30 मिनट तक डुवो कर रखना चाहिये। साथ ही स्ट्रप्टोसाइकिलन प्लान्टो माइसिन भी 5 ग्राम की मात्रा 20 लीटर पानी के हिसाब से मिला लेते है जिससे जीवाणु जनित रोगों की रोकथाम की जा सके। उपचारित करने के बाद बीज कों थोडी देर बाद बुवाई करें।
बोने की तरीका एवं बीज व क्यारी अंतराल : अदरक के बीजों की बुवाई इसके कंदों के रूप में की जाती हैं। इसके प्रकन्दों को 40 सेमी. के अन्तराल पर बोना चाहिये। मेड़ या नाली़ विधि से बुवाई करनी चाहिये। प्रकन्दों को 5 सेमी. की गहराई पर बोना चाहिये। बुवाई के बाद इन प्रकन्दों को सड़ी हुई गोबर की खाद या मिट्टी से ढक देना चाहिये। यदि रोपण करना है तो कतार से कतार 30 सेमी .और पौध से पौध 20 सेमी.पर करे। अदरक की रोपाई 15x15, 20x40 या 25x30 सेमी .पर भी कर सकते हैं। भूमि की दशा या जल वायु के प्रकार के अनुसार समतल कच्ची क्यारी, मेड-नाली आदि विधि से अदरक की वुवाई या रोपण किया जाता हैं।
रोपण हेतु नर्सरी तैयार करना : अगर आप अदरक की खेती ऐसे क्षेत्र में कर रहे है जहां पानी की उपलब्धता नहीं या कम हैं, तो ऐसे क्षेत्र में आप इसकी खेती नर्सरी तैयार कर के खेत की रोपाई कर सकते हैं। इसके लिए अदरक के प्रकन्दों को पौधशाला में एक माह अंकुरण के लिये रखा जाता। अदरक की नर्सरी तैयार करने हेतु उपस्थित बीजो या कन्दों को गोबर की सड़ी खाद और रेत (50:50) के मिश्रण से तैयार बीज शैया पर फैलाकर उसी मिश्रण से भाली प्रकार से ठक देना चाहिए तथा सुबह-शाम पानी का छिड़काव करते रहना चाहिये। कन्दों के अंकुरित होने एवं जड़ो से जमाव शुरू होने पर उसे मुख्य खेत में मानसून की बारिश के साथ रोपण कर देना चाहिये।
ताजा अदरक, ओरेजिन, तेल, जेल (जिन्जेरॉल) हेतु: आई.आई. एस. आर. (रजाता),महिमा, वर्धा (आई आई.एस.आर), सुप्रभा, सुरभि, सुरूचि, हिमिगिरी, रियो-डे-जिनेरियो, महिमा (आई.एस.आर.)
रेशा तथा सुखी अदरक हेतु : रियो-डे-जिनेरियो, चाइना, मारन, थिंगपुरी, नाडिया, नारास्सपट्टानम, वायनाड, कारकल, वेनगार, आर्नड मनजार, वारडावान
छाया का प्रभाव : अदरक की खेती को अगर हल्की छाया दी जाये तो खुला में बोई गयी अदरक से 25 प्रतिशत अधिक उपज प्राप्त हो सकती हैं साथ ही इसके कन्दों की गुणवत्ता में भी उचित वृद्धि पायी गयी हैं। अदरक की फसल को पुराने बागों में अन्तरवर्तीय फसल के रूप में उगा सकते हैं।
खरपतवार नियंत्रण : खरपतवार नियंत्रण के लिए अदरक की फसल में पलवार बिछाना बहुत ही लाभदायक होता हैं। रोपण के समय इससे भूमि का तापक्रम एवं नमी का संतुलन बना रहता है। जिससे अंकुरण अच्छा होता है। खरपतवार भी नही निकलते और वर्षा होने पर भूमि का क्षरण भी नही होने पाता है। अदरक की रोपाई के बाद हरी पत्तियाँ या लम्बी घास पलवार के लिये ढाक, आम, शीशम, केला या गन्ने के ट्रेस का भी उपयोग कर सकते हैं। पलवार के लिए काली पॉलीथीन को भी खेत में बिछा कर पलवार का काम लिया जा सकता हैं। पलवार से खेत में खरपतवार नहीं उगते अगर खरपतवार उग भी जाये तो निदाई, गुडाई कर खेत से निकाल दें। अदरक के खेत की दो बार निदाई गुडाई 3 से 4 माह बाद करनी चाहिये। निदाई-गुडाई के साथ ही इसके पौधों पर मिट्टी भी चढाना चाहिए। जब पौधे 20-25 सेमी. की ऊंचाई का हो जाये तो उनकी जड़ो पर मिट्टी चढाना आवश्यक होता हैं। मिट्टी चढाने इसके कंद बड़े आकार के हो पाते है जिससे इसकी उपज पर अच्छा असंर पडाता हैं। और उपज अधिक होती हैं।
खाद एवं उर्वरक की मात्रा : अदरक को अधिक खाद की आवश्यकता होती है। इसकी अच्छी पैदावार के लिए खेत तैयार करते समय 250 से 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के हिसाब से प्राकृतिक सड़ी हई गोबर या कम्पोस्ट की खाद खेत में सामन्य रूप से देना चाहिए। साथ ही 75 किलोग्राम नाइट्रोजन, 50 किलोग्राम फास्फोरस ओर 149 किलोग्राम पोटाश 149 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होती हैं। नाइट्रोजन की पहली मात्रा 40 दिनों बाद तथा दूसरी 90 दिनों बाद देना चाहिए। यदि प्राकृतिक गोबर की खाद को प्रारंभिक में डाला गया हैं, तो इन रसायनिक उर्वरकों की मात्रा को 20 प्रतिशत कम कर देना चाहिए। साथ ही उर्वरक की प्रत्येक मात्रा देने बाद उसके ऊपर से खेत में 30 किलोग्राम जिंक सल्फेट प्रति हेक्टेयर की दर से डालने से उपज अच्छी प्राप्त होती हैं। यदि प्राकृतिक गोबर की खाद या कम्पोस्ट डाला गया हैं, तो रसायनिक उर्वरकों की मात्रा को 20 कम कर देना चाहिए।
खुदाई : अदरक की फसल एक लम्बी अवधि वाली फसल हैं। इकसी फसल बुवाई के लगभग 8 से 9 महीने बाद खुदाई के लिए तैयार होती हैं। अदरक की पत्तियाँ धीरे-धीरे पीली होकर सूखने लगे। तब इसकी फसल की खुदाई करना प्रारम्भ कर देना चाहिए। खुदाई से देरी करने पर प्रकन्दों की गुणवत्ता और भण्डारण क्षमता में गिरावट आ जाती है, तथा भण्डारण के समय प्रकन्दों का अंकुरण होने लगता हैं। खुदाई करने के बाद प्रकन्दों से पत्तीयो, मिट्टी को साफ कर देना चाहिये। यदि अदरक की खेती सब्जी के लिए की गई है तो खुदाई रोपण के 6 महीने के अन्दर ही कर लेनी चाहिए।
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