खेती-बाड़ी में सबसे महत्वपूर्ण संसाधन जल है। बिना जल के खेती करना संभव नहीं है। पिछले कुछ सालों से मौसम में हुए बदलाव के कारण गर्मी बढ़ रही है। जिसका परिणाम यह देखने को मिल रहा है कि देश के कई राज्य में भूजल स्तर तेजी से नीचे गिर रहा है। धरती के इस गिरते जल स्तर का असर आम जनजीवन के अलावा अब खेती पर भी दिखाई दे रहा है। वर्तमान समय में देश के कई राज्यों में आम लोगों के अलावा किसानों को भी पानी की समस्या से जुझना पड़ रहा है, पानी की यह समस्या विशेषकर गर्मियों में तो और भी जटिल हो गई है। इस समय देश में खरीफ फसलों की बुवाई का कार्य शुरू हो गया है। लेकिन गिरते जल स्तर से किसानों के सामने सिंचाई की सबसे बड़ी समस्या उभर कर सामने आ रही है। सिंचाई के लिए पानी की कमी के कारण आज कई किसान धान की खेती करना छोड़ रहे हैं, क्योंकि धान की खेती के लिए अधिक पानी की आवश्यकता होती है। इसी बीच देश के कई राज्य सरकारें किसानों को धान की खेती नहीं करने की सलाह दे रही है। साथ ही उन्हें इसकी खेती छोडने के लिए इनपुट सब्सिडी भी प्रदान कर रही है। इसी क्रम में हरियाणा सरकार ने राज्य के किसानों को धान की खेती नही करने की सलाह दी है। इसके लिए सरकार की ओर से किसानों को धान की खेती नहीं करने पर 7 हजार रुपए का इनपुट सब्सिडी राशि प्रदान किया जा रहा है। इसके अलावा राज्य के जिन किसानों ने पिछली बार धान की खेती की है और इस बार वे अपने खेत खाली छोड़ देते हैं, तो भी सरकार की ओर से उन्हें 7 हजार रुपए प्रति एकड़ के हिसाब से सब्सिडी दी जाएगी। इसके लिए हरियाणा सरकार द्वारा मेरा पानी मेरी विरासत योजना को शुरू किया गया है, तो आइए ट्रैक्टर गुरू की इस पोस्ट के माध्यम से जानते हैं कि धान की खेती छोड़ने पर किसी प्रकार सब्सिडी का लाभ मिलेगा?
राज्य में गिरते भूजल स्तर समस्या से निपटने के लिए राज्य सरकार किसानों को मेरा पानी मेरी विरासत योजना के तहत धान की खेती छोड़ने या अपने खेत खाली छोड़ने पर सात हजार रूपये प्रति एकड़ के हिसाब से इनपुट सब्सिडी मुहैया करवा रही है। इनपुट सब्सिडी की यह राशि किसानों को सीधा उनके बैंक खाते में दी जाएगी। इसके लिए किसानों को मेरी फसल मैरा ब्योरा पोर्टल पर अपना आवेदन करना होगा। साथ ही कृषि विभाग को यह बताना होगा की वे धान की खेती नहीं कर रहा है या इस बार उन्होंने अपने खेत खाली छोड़े है। कृषि विभाग द्वारा इस बात की पुष्टि होने के बाद किसानों को इनपुट सब्सिडी की राशि दी जाएगी। सरकार द्वारा सब्सिडी की अधिकतम सीमा को भी खत्म कर दिया गया है। जानकारी के लिए आपको बता दें कि पहले ये अनुदान अधिकतम 2 हैक्टेयर भूमि तक दिया जाता था। सरकार के इस प्रयास से राज्य में 20 से 25 प्रतिशत तक पानी की बचत हो सकती हैं। हरियाणा राज्य में धान की खेती का कुल क्षेत्रफल करीब 13 लाख हेक्टेयर है।
हरियाणा सरकार धान की खेती छोडने या खेत खाली छोडने पर किसानों को 7 हजार रुपए प्रति एकड़ सब्सिडी दे रही है। साथ ही किसानों को धान की खेती के स्थान पर अन्य फसलों की खेती करने के लिए भी प्रोत्साहन राशि दे रही है। कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार हरियाणा सरकार की ओर से राज्य में दलहन और तिलहन उत्पादन बढ़ाने की दिशा में भी काम किया जा रहा है। राज्य सरकार इन फसलों खेती करने के लिए किसानों को प्रोत्साहन कर रही है। इसके लिए किसानों को दलहन और तिलहन की खेती करने पर चार हजार रुपए प्रति एकड़ के हिसाब से सब्सिडी भी मुहैया करवा रही है। इन फसलों की खेती पर सब्सिडी के लिए हरियाणा सरकार ने ये शर्त रखी हैं कि राज्य के जिन जिलों में पहले बाजरे की खेती होती थी। इन जिलों के किसान यदि अब दलहन और तिलहन की खेती करते हैं, तो उन्हें सरकार कि ओर से चार हजार रुपए प्रति एकड़ की दर से इनपुट सब्सिडी दी जाएगी। बता दें कि हरियाणा के महेंद्रगढ़, रेवाड़ी, झज्जर, भिवानी, चरखी दादरी, हिसार और नूंह में बाजरे की खेती होती है। राज्य सरकार चाहती है कि यहां के किसान बाजरे की खेती को छोडकर दलहन और तिलहन फसल की खेती करें ताकि उन्हें अच्छा मुनाफा मिले और भूमि की सेहत में भी सुधार हो। इसके लिए कृषि विभाग की ओर से किसानों को दलहन और तिलहन उत्पादन की आधुनिक खेती तकनीक की जानकारी भी दी जाएगी। साथ ही इन फसलों के उन्नत किस्मों के बारे में भी बताया जाएगा, ताकि किसान इस खरीफ सीजन में अच्छा मुनाफा कमा सकें।
जानकारी के लिए बता दें कि दलहनी फसलों की जड़ ग्रंथियों में राइजोबियम बैक्टीरिया पाए जाते हैं, जो इन फसलों की जड़ों में सहजीवी संबंध बनाकर वायुमंडलीय नाइट्रोजन का मृदा में स्थिरीकरण करते हैं। इससे मृदा में नाइट्रोजन की मात्रा में वृद्धि होती है। इसलिए इन फसलों को कम नाइट्रोजन की आवश्यकता होती है। इन फसलों की कटाई के बाद इनके अवशेष को हरी खाद के रूप में प्रयोग किया जा सकता है। हरी खाद से मृदा में नाइट्रोजन की मात्रा बनाए रखने में सहायक होती हैं। मृदा में नाइट्रोजन की स्थिरीकरण से अगली फसल के उत्पादन में नाइट्रोजन उर्वरकों की आवश्यकता कम पड़ती है। ये दलहनी फसले भूमि की सेहत में काफी मदद गार साबित होती है। इन फसलों को हरी खाद के विकल्प के तौर पर उगाया जा सकता है। दलहनी फसलों के उत्पादन से मिट्टी की सेहत में सुधार होता है और मृदा उपजाऊ बनी रहती है।
दलहन फसलें बोने से मृदा की सेहत में सुधार होता है और मृदा उपजाऊ शक्ति भी बढ़ती है।
इन फसलों की जड़ ग्रंथियों में राइजोबियम बैक्टीरिया पाए जाते हैं, जो इन फसलों की जड़ों में सहजीवी संबंध बनाकर वायुमंडलीय नाइट्रोजन का मृदा में स्थिरीकरण करते हैं।
इन फसलों की खेती से मृदा में नाइट्रोजन बढ़ती है, जो अन्य फसलों के लिए आवश्यक है। इससे अन्य फसलों से अधिक उत्पादन प्राप्त करने में मदद मिलती है।
दलहन फसलों की खेती से मृदा में नाइट्रोजन की मात्रा में वृद्धि होती है। इसलिए इन फसलों को कम नाइट्रोजन की आवश्यकता होती है।
इन फसलों की कटाई के बाद इनके अवशेष मृदा में नाइट्रोजन की मात्रा बनाए रखने में सहायक होते हैं।
ये अग्रिम फसल के उत्पादन में नाइट्रोजन उर्वरकों की मात्रा के प्रयोग को कम कर देते हैं।
दलहन फसलों की खेती से मिट्टी की जल धारण शक्ति भी बढ़ती है जिससे सिंचाई के बाद अधिक समय तक भूमि में नमी बनी रहती है।
दलहन व तिलहन की फसल को धान और बाजरे की तुलना में अपेक्षाकृत कम पानी की आवश्यकता पड़ती है।
हरियाणा सरकार धान की खेती छोडने या खेत खाली छोड़ने पर किसानों को प्रोत्साहन राशि उपलब्ध करा रही है। राज्य में जो किसान धान की खेती छोड़ने पर इनपुट सब्सिडी राशि प्राप्त करना चाहते हैं, उन्हें इसके लिए आवेदन करना होगा। आवेदन के लिए ऑनलाइन आवेदन मेरी फसल मेरा ब्योरा पोर्टल की आधिकारिक वेबसाइट https://fasal.haryana.gov.in/farmer/farmerhome पर किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त किसान अपने क्षेत्र के कृषि विभाग कार्यालय में संपर्क करके मेरा पानी मेरी विरासत योजना के तहत अपने नाम को पंजीकृत करवा सकते हैं।
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