करी पत्ता की खेती : भारत सहित पूरी दुनिया ने कोरोना काल के बाद आयुर्वेद और आयुष पद्धतियों को अपनाया है। जिससे आज देश-विदेश में औषधीय पौधे की मांग तेजी से बढ़ती जा रही है। ऐसे में हमारे देश के किसानों के पास जड़ी-बूटियों और औषधीय पौधों की खेती कर लाखों की आमदनी प्राप्त करने का सुनहरा मौका है, क्योंकि हमारा देश दुनिया के उन गिने-चुने देशों में से एक है। जहां हर प्रकार की जैव विविधता पाई जाती है। हमारे देश के करीब सभी हिस्सों की जलवायु और भूमि विभिन्न औषधीय पौधे और जड़ी-बूटियों की खेती के लिए अनुकूल है। यहां लोग पौराणिक काल से ही औषधीय पौधों और जड़ी-बूटियों का उत्पादन करते आ रहे हैं। भारत में औषधीय पौधे और जड़ी-बूटियों की कई किस्में मौजूद है, जो पूरी दुनिया में कहीं भी नहीं पाई जाती है। हालांकि, जलवायु परिवर्तन का असर इन वनस्पतियों व पौधों पर भी पड़ा है। आज कई औषधीय पौधे विलुप्ति की कगार पर पहुंच गए हैं। इन्हीं को देखते हुए केंद्र और राज्य सरकार आपसी सहयोग से विभिन्न योजनाओं पर काम कर रही है। इन योजनाओं के माध्यम से किसानों को औषधीय खेती के लिए प्रोत्साहित करने के लिये अलग-अलग जड़ी-बूटियां की खेती पर एमपी, राजस्थान सहित कई अन्य राज्यों ने भी 30 से लेकर 75 प्रतिशत तक सब्सिडी देने की व्यवस्था की है। ऐसे में औषधीय पौधे करी पत्ता यानी मीठी नीम की खेती कर सकते हैं। करी पत्ता यानी मीठी नीम की खेती से किसान न सिर्फ लाखों रूपए की कमाई कर सकते हैं, बल्कि इसकी खेती को अपनी कमाई का एक अच्छा माध्यम भी बना सकते हैं। आईये, इस पोस्ट की मदद से करी पत्ता यानी मीठी नीम की खेती के बारे में विस्तार से जानते हैं।
देश और दुनिया में औषधीय पौधे की मांग तेजी से बढ़ी है, जिससे केंद्र सरकार ने 1 साल में करीब 75 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में औषधीय खेती करने का लक्ष्य रखा है। सरकारी रिपोर्ट्स के मुताबिक, पिछले 2 सालों में जिस हिसाब से औषधीय पौधे की मांग बढ़ी है इसे देखते हुए अब औषधीय पौधों की खेती पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है। लक्ष्य की पूर्ति के लिए सरकार भी किसानों को प्रोत्साहित कर रही है। आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत औषधीय खेती को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय औषधीय पादप बोर्ड ने 140 प्रजातियों की लिस्ट तैयार की है। इन प्रजातियों की खेती पर किसानों को लागत खर्च का 75 प्रतिशत सब्सिडी देने का भी प्रावधान किया गया है।
भारत में जैव विविधता के तौर पर बहुत सी औषधीयों की किस्में मौजूद हैं। करीब 65 प्रतिशत लोग बहुत सी औषधीय पौधों की खेती से जुड़े हैं, जिनमें करी पत्ता यानी मीठी नीम औषधीय पौधे की खेती भी शामिल है। करी पत्ता की खेती मुख्य रूप से बिहार, बंगाल, केरल और कर्नाटक आदि राज्यों में की जाती है। भारत में इसे करी पत्ता या मीठी नीम के नाम से जाना जाता है। इसका पौधा दिखने में कड़वी नीम के पौधे के सामान ही होता है। लेकिन इसकी पत्तियां कड़वी नीम की पत्ती की तरह नहीं होती है। इसकी पत्तियों का किनारा कड़वी नीम की पत्तियों की भांति कटी हुई नहीं होती है। इसकी पत्तियां खुशबूदार होती हैं, जिस कारण इसका उपयोग थोरण, वड़ा, रसम और कढ़ी जैसे रसेदार व्यंजनों के छौंक में किया जाता है। इसके पौधे में फूल छोटे-छोटे, सफेद रंग के निकलते हैं और यह फूल बहुत ही खुशबूदार होते हैं। इसके फूलों में आने वाले बीज जहरीले होते हैं। मीठी नीम का पूर्ण रूप तैयार पौधा करीब 10 से 15 वर्ष तक उत्पादन देता हैं। मीठी नीम की खेती कर किसान न सिर्फ औषधियों की उपलब्धता बढ़ा सकते हैं बल्कि इसे अपनी कमाई का जरिया भी बना सकते हैं।
करी पत्ता या मीठी नीम का वनस्पतिक नाम ’मुराया कोएनिजी’ है। मीठी नीम की केवल पत्तियों को ही इस्तेमाल किया जाता है। इसकी पत्तियों में ऐंटी-डायबिटीक, ऐंटीऑक्सीडेंट, ऐंटीमाइक्रोबियल, ऐंटी-इन्फ्लेमेटरी, हिपैटोप्रोटेक्टिव, ऐंटी-हाइपरकोलेस्ट्रौलेमिक आदि औषधीय गुण पाये जाते हैं। इसके कारण इसकी पत्तियों का इस्तेमाल आयुर्वेद में औषधीय पौधों के रूप में भी किया जाता है। यही कारण है मीठी नीम को औषधीय पौधों की श्रेणी में शामिल किया गया है। आयुर्वेद में मीठी नीम के पत्तियों को लम्बे और स्वस्थ बालों के लिए भी बहुत फायदेमंद माना गया है।
कढ़ी (करी) पत्ता या मीठी नीम के पौधे को धूप की बेहद आवश्यकता होती है, जिसके कारण इसकी खेती छायादार इलकों में नहीं की जा सकती है। इसका पौधा उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय जलवायु का होता हैं, जिसके कारण इसके पौधो को सामान्य वर्षा की जरूरत होती है। इसकी खेती सामान्य या कम वर्षा वाले क्षेत्रों में आसानी से की जा सकती है। कढ़ी (करी) पत्ता या मीठी नीम का पौधा अधिक सर्दी सहन नहीं कर सकता है और सर्दियों में गिरने वाला पाला इसके पौधे को अधिक नुकसान पहुंचाता है। इसकी खेती के लिए न्यूनतम 10 से 15 डिग्री और अधिकतम 35 से 40 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है। उपजाऊ, चिकनी काली मिट्टी वाली भूमि जिसका पीएच मान 6 से 7 के बीच हो इसकी खेती के उपयुक्त है। इसकी खेती में विशेष ध्यान रखने वाली बात यह है कि जिस भूमि में इसकी खेती लगाई जा रही है वह भूमि अच्छे जल निकास वाली होनी चाहिए। अधिक जलभराव वाली भूमि में कढ़ी (करी) पत्ता की खेती के सही नहीं है।
कढ़ी (करी) पत्ता की खेती करने से पहले इसके खेत को अच्छे से तैयार करने की आवश्यकता है। इसके लिए जिस भूमि में इसकी खेती करनी है उस भूमि की सबसे पहले डिस्क हैरो या हैरो की मदद से पहली जुताई कर खेत में मौजूद खरपतवार एवं पुरानी फसल के अवशेष को मिट्टी में पूरी तरह मिला दें। इसके बाद खेत में पानी चलाकर खेत को कुछ दिनों तक सूखने के लिए छोड़ दें। कुछ दिनों के बाद जब खेत ऊपर से सूखा दिखाई देने लगे, तो इसके बाद खेत में 200 से 250 क्विंटल गोबर या वर्मी कंपोस्ट खाद डालकर देसी हल या कल्टीवेटर की मदद से दो से तीन गहरी जुताई कर लें। इसके बाद रोटावेटर लगाकर खेत की दो से तीन जुताई कर खेत की मिट्टी भुरभुरी बना खेत को समतल कर लें।
कढ़ी (करी) पत्ता की फसलों की बिजाई बीज एवं कलम दोनों तरीके से की जा सकती है। किंतु इसकी फसलों की बिजाई बीजों के माध्यम से करना ज्यादा उपयुक्त माना गया है। इसके बीजों की बिजाई करने का उपयुक्त समय मार्च से अप्रैल के प्रथम महीने को माना गया है। कढ़ी (करी) पत्ता की खेती एक एकड भूमि पर करने में करीब 70 किलोग्राम बीजों की आवश्यकता पड़ती है। इसके बीजों की बिजाई पहले से तैयार खेत में 3 से 4 मीटर की दूरी पर करनी चाहिए। इसके बीजों को तकरीबन 2 से 4 सेंमी गहराई में बोना चाहिए। बीजों को बोने से पहले 2 से 3 घंटे तक गोमूत्र में रखकर उपचारित करना न भूलें।
कढ़ी (करी) पत्ता की खेत में बिजाई अगर कलम द्वारा की गई है, तो पहली सिंचाई रोपाई के तुरंत बाद करें। यदि बिजाई बीजों के माध्यस से की गई है, तो पहली सिंचाई बीजों का अंकुरण होने के बाद करें। खेत में नमी बनाये रखने के लिए 3 से 4 दिन में सिंचाई कर लेनी चाहिए। इसके बाद 7 से 15 दिन में एक बार सिंचाई कर लेनी चाहिए। बारिश के मौसम में सामान्य सिंचाई की आवश्यकता होती है।
खरपतवार पर नियंत्रण के लिए खेत की समय-समय पर निराई -गुड़ाई कर लेनी चाहिए। इसकी खेती में 4 से 5 निराई-गुड़ाई की आवश्यकता होती है। पहली निराई-गुड़ाई बीज बोने के 7 से 10 दिनों बाद करें और दूसरी 20 से 35 दिनों बाद करना होता है। इसके बाद आवश्यकता पड़ने पर समय-समय पर गुड़ाई करें।
कढ़ी (करी) पत्ता के पौधे करीब 7 महीने में पैदावार देने के लिए पूर्ण रूप से तैयार हो जाते हैं। इसका एक पूर्ण रूप से विकसित पौधा तकरीबन 10 से 15 साल तक पैदावार देता है। इसके पौधे से पहली कटाई 7 महीने बाद की जाती है। इसके पौधों की पहली कटाई के पश्चात् प्रत्येक 3 महीने में बाद इसके पौधों की पत्तियों को फिर से कटाई कर सकतें है। इसके पौधों पर फूल आने से पहले पत्तियों की कटाई कर लेनी चाहिए, क्योंकि फूल आने के बाद इसके पौधे की वृद्धि रुक जाती है। इसके पौधे से साल में तकरीबन 3 से चार बार पैदावार मिल जाती है। इसके एक एकड़ खेत से लगभग 2 से 3 टन पत्तियों की पैदावार प्राप्त हो जाती है। इन पत्तियों को ठीक से सूखाकर बाजार में बेचने पर किसान भाईयों को लगभग 1 लाख तक की कमाई आसानी से हो जाती है।
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