Kharif Crops : पिछले साल के मुकाबले इस साल धान की खेती का रकबा 4.28 प्रतिशत बढ़ा

पोस्ट -13 अगस्त 2024 शेयर पोस्ट

Paddy Procurement : किसानों ने इस बार जमकर की धान की बुवाई, रकबा बढ़कर 331.8 लाख हेक्टेयर पहुंचा

Kharif Crops Sowing : भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (Indian Meteorological Department) द्वारा कई क्षेत्रों में व्यापक वर्षा के पूर्वानुमान के बीच पिछले वर्ष के मुकाबले इस साल खरीफ फसल की अधिक बुवाई हुई है। इस साल सभी खरीफ फसलों के अंतर्गत कुल क्षेत्रफल 979.9 लाख हेक्टेयर तक पहुंच गया, जबकि पिछले वर्ष यह एरिया 966.4 लाख हेक्टेयर था। मंत्रालय के अनुसार देश में खरीफ फसलों का कुल क्षेत्र 1095.84 लाख हेक्टेयर का है, जिसमें अब तक 89.4 प्रतिशत क्षेत्र कवरेज किया जा चुका है। चालू खरीफ सत्र  2024-25 में धान की खेती का रकबा 4.28 प्रतिशत बढ़ाकर 331.78 लाख हेक्टेयर क्षेत्र का हो गया है, जो पिछले साल इसी अवधि के दौरान 318.16 लाख हेक्टेयर क्षेत्र था। इस तरह पिछले वर्ष के मुकाबले इस साल 13.61 लाख हेक्टेयर अधिक क्षेत्र में धान की खेती की गई है, जबकि कपास के रकबे में गिरावट देखी गई है। धान की खेती के रकबे में यह वृद्धि अब तक के मजबूत मानसून के चलते हुई है। उत्तर भारत को छोड़कर देश के ज्यादातर राज्यों में अब तक के मजबूत मानसून से नदी, नालों में जल स्तर सामान्य से अधिक है। इसके कारण किसानों ने इस साल जमकर धान की बुवाई और रोपाई की है। वहीं, प‍िछले वर्ष की तुलना में इस साल बाकी सभी खरीफ फसलों का रकबा भी बढ़ा है।

अरहर की बुवाई में वृद्धि (Increase in sowing of Pigeon pea)

कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के अनुसार, चालू खरीफ सीजन में दलहन (Pulses) के अंतर्गत 117.43 लाख हेक्टेयर क्षेत्र कवर किया गया है, जो पिछले वर्ष इसी अवधि के दौरान 110.08 लाख हेक्टेयर का था। मंत्रालय ने बताया कि दलहन में अरहर की बुवाई में वृद्धि देखी गई, जबकि उड़द के रकबे में गिरावट आई। इस साल 44.57 लाख हेक्टेयर में अरहर की बुवाई हो चुकी है, जो प‍िछले साल की इसी अवधि के मुकाबले 6.08 लाख हेक्टेयर अधिक है। पिछले वर्ष की तुलना में इस साल  उड़द की बुवाई 27.76 लाख हेक्टेयर में हुई है, जो प‍िछले साल के मुकाबले 1.07 लाख हेक्टेयर कम है। वहीं, मूंग के अंतर्गत 32.78 लाख हेक्टेयर क्षेत्र कवरेज की सूचना है, जो एक साल पहले इसी अवधि में 29.89 लाख हेक्टेयर था।

श्री अन्न (मोटे अनाज) का रकबा (Area of ​​Shree Anna (coarse grain))

कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, खरीफ फसल सत्र 2024-25 में 12 अगस्त तक श्री अन्न (मोटे अनाज) के अंतर्गत कुल 173.13 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में बुवाई हो चुकी है, जबकि पिछले साल इसी अवधि के दौरान यह रकबा 171.36 लाख हेक्टेयर था। अब तक ज्वार 14.23 लाख हेक्टेयर में बोया गया है, जबकि पिछले वर्ष इस अवधि के दौरान 13.29 लाख हेक्टेयर में बुवाई हुई। रागी की बुवाई अब तक 3.61 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है, जबकि प‍िछले वर्ष की इसी अवध‍ि के दौरान यह रकबा 5.91 लाख हेक्टेयर था। बाजरा की बुवाई 65.69 लाख हेक्टेयर में हुई है, जो प‍िछले वर्ष से 13.29 लाख हेक्टेयर अधिक है। मक्का की बुवाई 85.17 लाख हेक्टेयर में हुई है जो कि प‍िछले साल 79.17 लाख हेक्टेयर थी।

तिलहन (Oilseeds) का रकबा स्थिर (Oilseeds acreage remains stable)

मंत्रालय ने बताया कि तिलहन का रकबा (Oilseeds) पिछले साल के 1 करोड़ 82.2 लाख हेक्टेयर के मुकाबले 1 करोड़ 83.7 लाख हेक्टेयर पर अपेक्षाकृत स्थिर रहा। इस साल तिलहन फसल में 124.69 लाख हेक्टेयर में सोयाबीन बोया गया है, जबकि मूंगफली की बुवाई 45.42 लाख हेक्टेयर में हुई है। त‍िल की बुवाई 10.14 लाख हेक्टेयर, सूरजमुखी की 0.69 लाख हेक्टेयर, नाइजर 0.26 लाख हेक्टेयर, रेंड़ी 2.44 लाख हेक्टेयर और अन्य तिलहन में 0.04 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में बुवाई हुई है।

कपास (Cotton) बुवाई में गिरावट (Decline in cotton sowing)

कृषि मंत्रालय के अनुसार, कपास बुवाई (Cotton) 12 अगस्त तक घटकर एक करोड़ 10.5 लाख हेक्टेयर रह गई, जबकि पिछले सत्र की इस समान अवधि में यह रकबा एक करोड़ 21.2 लाख हेक्टेयर था। उद्योग विशेषज्ञों का मानना है कि लाभ में गिरावट के कारण किसान कपास की खेती के रकबे का लगभग 10-12 प्रतिशत हिस्सा अन्य फसलों की खेती में स्थानांतरित कर रहे हैं।  देश में 57.68 लाख हेक्टेयर में गन्ना बोया गया है, जो पिछले साल 57.11 लाख हेक्टेयर औसत एर‍िया था। जूट और मेस्टा की बुवाई 5.70 लाख हेक्टेयर में हुई है, जो प‍िछले वर्ष इस दौरान 6.28 लाख हेक्टेयर का था। आईएमडी के अनुसार 12 अगस्त 2024 तक मानसून सामान्य से 6 प्रतिशत अधिक रहा, जिसमें दक्षिण भारत औसत से 22 प्रतिशत अधिक वर्षा के साथ अग्रणी रहा। आईएमडी ने अगस्त के प्रारंभ में पूर्वोत्तर भारत और पश्चिमी हिमालयी क्षेत्र में मजूबत वर्षा का अनुमान लगाया है, जिससे देर से बुवाई के निर्णय प्रभावित हो सकते हैं।

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