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धान की खेती : खरीफ फसलों की बुवाई करते समय किसान बरते ये सावधानियां

धान की खेती : खरीफ फसलों की बुवाई करते समय किसान बरते ये सावधानियां
पोस्ट -12 जुलाई 2024 शेयर पोस्ट

धान की खेती : किसानों को मिलेगा बंपर फसल उत्पादन, बुवाई/रोपाई करते समय रखें यह सावधानियां

Paddy Farming : दक्षिण-पश्चिम मानसून के सक्रिय दौर के कारण सामान्य से अधिक बारिश के चलते भारत में खरीफ फसल की बुआई में तेजी आई है। किसान धान, सोयाबीन और कपास समेत अन्य प्रमुख फसलों की बुआई करने में जुटे हुए है। पूर्वी एवं दक्षिणी राज्यों में अधिकांश किसानों ने अच्छी बारिश के साथ ही खरीफ की प्रमुख फसल धान की बुवाई या रोपाई करना शुरू भी कर दिया है। देश के कई क्षेत्रों में किसान धान की खेती नर्सरी में तैयार पौधों की रोपाई की पारंपरिक विधि से कर रहे हैं, तो वहीं, कुछ एक इलाकों के किसान सीड ड्रिल मशीन की मदद से अपने सूखे खेतों में धान की बिजाई सीधी बुवाई विधि (DRS) से कर रहे हैं। इन सब के बीच किसान धान की फसल से बंपर उत्पादन हासिल कर सके, इसके लिए कृषि विभाग द्वारा धान की खेती के समय रखी जाने वाली विभिन्न सावधानियां के लिए विशेष सलाह भी जारी की गई है, ताकि किसानों को खेती में चुनौतियों का सामना न करना पड़े और फसल की सेहत तथा उपज को प्रभावित होने से बचाया जा सके। आइए, इन सलाहों के बारे में विस्तार से जानते हैं।

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रोपाई के समय इन बातों का ध्यान रखें किसान (Farmers should keep these things in mind while transplanting)

किसान कल्याण तथा कृषि विकास जबलपुर के उपसंचालक रवि आम्रवंशी के मुताबिक, जिन किसानों ने अपने खेतों में धान की नर्सरी तैयार कर ली है, वे किसान सावधानी पूर्वक पौधों की रोपाई करने पर धान की अधिकतम पैदावार प्राप्त कर सकते हैं। खेतों की रोपाई के लिए धान की 20-25 दिनों की पौध सबसे अच्छी होती है। रोपाई से एक दिन पहले तैयार धान नर्सरी की अच्छी तरह से सिंचाई करनी चाहिए, जिससे दूसरे दिन पौधों को निकालते समय उनकी जड़ न टूटें और पौधे भी आसानी से निकल जाएं। पौधों की जड़ों में लगी मिट्टी को पानी से अच्छी तरह धोना चाहिए।

इस तरह करनी चाहिए धान के पौधों की रोपाई (This is how paddy plants should be planted)

कृषि विकास विभाग के उपसंचालक के अनुसार, किसानों को नर्सरी से निकाले गए पौधों की जड़ों का उपचार करना चाहिए। इससे फसलों में उर्वरक की आंशिक पूर्ति की जा सकती है। कार्बेंडाजिम 75 प्रतिशत डब्ल्यूपी की 2 ग्राम मात्रा और स्ट्रेप्टोसाइक्लिन की 0.5 ग्राम मात्रा को प्रति 1 लीटर पानी में घोल बनाकर पौधे की जड़ों को करीब 20 मिनट तक डुबोकर रखें। उपचारित धान के पौधे को एक बोतल नैनो लिक्विड डीएपी के 100 लीटर पानी में बने घोल में दोबारा 20 मिनट तक डुबाकर रखें। इसके बाद उपचारित पौधों की खेत में परस्पर 20 सेमी. दूरी पर कतारों में पौधों की दूरी 10 सेमी रखते हुए रोपाई करनी चाहिए। पौध की रोपाई करते समय ध्यान रखें कि एक स्थान पर दो-तीन पौध से अधिक नहीं लगाना चाहिए। रोपाई के दौरान पौधों की गहराई करीब 2 से 3 सेमी से अधिक नहीं होनी चाहिए।

जल जमाव से बचने के लिए खेतों से निकाले अतिरिक्त पानी (Excess water should be removed from the fields to avoid waterlogging)

कृषि विशेषज्ञों एवं मौसम विज्ञान विभाग के अनुसार, लंबे समय से जारी बारिश के सक्रिय दौर से असम, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश और नागालैंड जैसे पूर्वोत्तर राज्यों के साथ-साथ उप-हिमालयी पश्चिम बंगाल, सिक्किम, ओडिशा, बिहार, उत्तराखंड और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में जल जमाव से बचने के लिए किसान अपने खेतों से अतिरिक्त पानी की निकासी की उचित व्यवस्था सुनिश्चित करें। वहीं, पूर्वी राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, गुजरात, केरल, कर्नाटक, तटीय आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के किसानों को भी खेतों में जमा अतिरिक्त पानी की निकासी के लिए प्रावधान करना महत्वपूर्ण है। प्रभावी जल निकासी से पौधों की जड़ों के सड़ने और अन्य जलजनित बीमारियों को रोकने में मदद मिलेगी।

इन क्षेत्रों में धान की रोपाई एवं बुवाई में देरी की सलाह (It is advisable to delay transplanting and sowing of paddy in these areas)

मौसम विज्ञान विभाग ने किसानों को कोंकण जैसे क्षेत्रों में धान (चावल) और रागी फसल की रोपाई को फिलहाल टाल देने की सलाह दी है, जबकि मध्य महाराष्ट्र के घाट क्षेत्रों में धान की रोपाई, सोयाबीन, मक्का और मूंगफली समेत अन्य सभी खरीफ फसलों की बुवाई देरी से करने की सलाह जारी की है। किसानों द्वारा उठाए गए ये कदम फसल विकास के शुरुआती चरणों को अत्यधिक गीली परिस्थितियों से बचने में मदद करेंगे, जो  बीज अंकुरण और विकास में बाधा डाल सकते हैं। भारी बारिश तथा तेज हवाओं के कारण फसलों में होने वाले नुकसान को रोकने के लिए फसलों और सब्जियों को यांत्रिक सहायता प्रदान करना आवश्यक है। स्टेकिंग विधि पौधों को सीधा रखने, टूटने से बचाने और बेहतर वायु परिसंचरण सुनिश्चित करने में मदद करती है। किसान इन सक्रिय उपायों को अपनाकर अपनी फसलों को लंबे समय तक बारिश के प्रतिकूल प्रभावों से बचा सकते हैं। किसानों को समय पर प्रभावी रणनीतियों को अपनाने के लिए कृषि एडवाइजरी का पालन करना चाहिए।

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