Summer Peanut Farming : देश में प्री-मॉनसून की बारिश की शुरुआत हो चुकी है। प्री-मॉनसून के चलते देश के मध्य भागों में बारिश की अधिक गतिविधियां देखी जा रही है। एक ओर जहां प्री-मानसून (Pre - Monsoon) की गतिविधि किसानों की चिंता बढ़ा रही है, तो दूसरी ओर जायद फसलों की खेती करने वाले किसानों के लिए यह बारिश वरदान साबित हो रही है। इन सब के बीच देश के कई राज्यों में किसान जायद सीजन में ग्रीष्मकालीन मूंगफली की खेती कर रहे हैं और इसके उत्पादन से अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं।
कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर किसान मूंगफली (Peanut) की जायद खेती वैज्ञानिक तरीके और गुणवत्ता वाली उन्नत किस्मों से करते हैं, तो केवल चार महीनों में इसकी खेती से कम लागत पर अधिक उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं। किसान गर्मी के मौसम में सिंचाई की सुविधा उपलब्ध होने पर खाली पड़े खेतों में ग्रीष्मकालीन फसलों की खेती करके कम लागत पर अच्छा मुनाफा कमा सकते है। किसान गर्मी के सीजन में ग्रीष्मकालीन मूंग, उड़द, सूरजमुखी के साथ ही मूंगफली की जायद खेती भी कर सकते हैं। मूंगफली की खेती के लिए दोमट बलुई या हल्की दोमट मिट्टी उपयुक्त रहती है। ग्रीष्मकालीन मूंगफली की बुआई गेहूं की कटाई के बाद खाली खेतों में सफलतापूर्वक की जा सकती है। बता दें कि मूंगफली एक तिलहनी फसल है, जिसकी खेती खरीफ और जायद दोनों मौसम में की जाती है। आइए, इसकी खेती और ग्रीष्मकालीन मूंगफली की नई उन्नत किस्मों के बारे में जानते हैं।
मूंगफली भारत की एक मुख्य महत्त्वपूर्ण तिलहनी फसल है, जिसकी खेती देश के तमिलनाडू, गुजरात, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, राजस्थान तथा पंजाब जैसे राज्य में खरीफ और जायद दोनों मौसम में की जाती है। राजस्थान में मूंगफली का उत्पादन क्षेत्र लगभग 3.47 लाख हैक्टर है, जिससे लगभग 6.81 लाख टन पैदावार होती है। वहीं, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अधीनस्थ अनुसंधान संस्थानों तथा कृषि विश्वविद्यालयों ने मूंगफली की उन्नत किस्में और तकनीक विकसित की हैं, जिसकी मदद से किसान इसकी खेती से अधिक उत्पादन कर लाखों की कमाई कर सकते हैं। उत्तर प्रदेश के झांसी, सीतापुर, उन्नाव, बरेली, हरदोई, बदायूं, एटा, मैनपुरी, फर्रुखाबाद, मुरादाबाद, खीरी, और सहारनपुर आदि जिलों में मूंगफली की खेती मुख्य रूप से की जा रही है।
किसान भाई अगर आलू, मटर, सरसों और गेहूं की कटाई के बाद अपने खाली खेतों में जायद मौसम की मूंगफली फसल की बुवाई करना चाहते हैं, तो इसकी बोनी शुरू कर सकते हैं। गर्मी के दिनों में ग्रीष्मकालीन मूंगफली खेती के लिए कृषि वैज्ञानिकों ने कुछ टॉप उन्नत किस्में विकसित की है, जिनका चयन किसान अपने क्षेत्र की जलवायु एवं भूमि के हिसाब से कर सकते हैं और कम लागत और समय पर अच्छी पैदावार प्राप्त कर सकते हैं। जायद मौसम मूंगफली की जिन टॉप उन्नत किस्मों की बात की जा रही है। इनमें अवतार (आईसीजीवी 93468), टीजी-26, टीजी-37, डी.एच. 86, टीपीजी-1, सजी-99, टाइप-64, टाईप-28, चंद्रा, उत्कर्ष, एम-13, अम्बर, चित्रा, कौशल एवं प्रकाश, एसजी-84, और एम-522 ग्रीष्मकालीन मूंगफली किस्मों की बुआई सिंचाई की उचित व्यवस्था होने पर अप्रैल के अंत तक कर सकते हैं। यह टॉप उन्नत किस्में बीज रोपाई/बुवाई के लगभग 120 से 125 दिन बाद पैदावार देने के लिए तैयार हो जाती है। इन किस्मों की बुवाई कर किसान एक हेक्टेयर के खेत से लगभग 20 से 36 क्विंटल की औसत पैदावार प्राप्त कर सकते हैं।
किसान गर्मियों में ग्रीष्मकालीन मूंगफली की बुवाई करना चाहते है, तो इसकी बोनी अभी शुरू कर सकते हैं,क्योंकि ग्रीष्मकालीन मूंगफली की खेती के लिए समय अनुकूल है। अगर किसान इसकी खेती अधिक उत्पादन लेना चाहते है, तो इसकी बुवाई के लिए उचित जल निवासी वाली हल्की पीली दोमट मिट्टी वाली भूमि का चयन करें। मूंगफली की फसल बुवाई के लिए पहले इसके खेत को अच्छी तरह से तैयार करें। इसके लिए खेत की 2 से 3 तीन आड़ी-तिरछी गहरी जुताई कर 3 से 4 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से गोबर की खाद डालकर रोटावेटर की मदद से खेत को पूरी तरह से समतल बना लें। मूंगफली की बुवाई रेज्ड बेड पद्धति से किया जाना लाभप्रद रहता है। इस पद्धति में मूंगफली की 5 कतारों के बाद एक कतार खाली छोड़ देते हैं। इससे भूमि में नमीं का संचय, जलनिकास, खरपतवारों का नियंत्रण व फसल की देखरेख सही हो जाने के कारण उपज अच्छी प्राप्त हो जाती है।
गुच्छेदार किस्म के लिए कतार से कतार की दूरी 30 से.मी. और पौधे से पौधे की दूरी 10 से.मी. दूरी रखते हुए बीज की बुवाई करनी चाहिए। वहीं, फैलाव और अर्धफैलाव वाली किस्मों के लिए कतार से कतार की दूरी 45 सेमी एवं पौधे से पौधे की दूरी 15 सेमी रखना चाहिए। बीज की गहराई 3 से 5 सेमी रखनी चाहिए। मूंगफली की गुच्छेदार प्रजातियों के लिए 60-80 किलोग्राम और फैलने व अर्द्ध फैलने वाली किस्मों के लिए 50-65 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें।
मूंगफली फसल में मुख्यतः सफेद लट एंव दीमक का आक्रमण देखने को मिलता है। इसलिए इनके प्रकोप से फसल बचाव के लिए फोरेट 10 जी या कार्बोफ्यूरान 3 जी से 20-25 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर की दर से उपचारित करते हैं। जिन क्षेत्रों में उकठा रोग की समस्या हो वहां 50 कि.ग्रा. सड़े गोबर में 2 कि.ग्रा. ट्राइकोडर्मा जैविक फफूंदनाशी को मिलाकर अंतिम जुताई के समय प्रति हैक्टेयर की दर से भूमि में मिला देना चाहिए। वहीं, बुवाई से पहले बीजों के थाइरम 37.5 प्रतिशत एवं कार्बोक्सिन 37.5 प्रतिशत की 2.5 ग्राम/कि.ग्रा. बीज की दर से या 1 ग्रा. कार्बेन्डाजिम एवं ट्राइकाडर्मा विरिडी 4 ग्रा./ कि.ग्रा. बीज को उपचार करना चाहिए। बुवाई पहले राइजोबियम और पी.एस.बी. से 5-10 ग्रा./कि.ग्रा. बीज के मान से उपचार करें।
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