Maize Insect Management : देश में मक्का की खेती खरीफ मौसम में की जाती है। इसकी बुवाई जून से जुलाई महीने के अंत तक होती है। अभी देश के अधिकांश क्षेत्रों में खरीफ सीजन में मक्के की फसल की बुवाई काम किसानों द्वारा पूरा कर लिया गया है। साथ ही फसल में वृद्धि भी देखी जा रही है। लेकिन मानसून के इस मौसम में मक्के की फसल में फॉल आर्मी वर्म का प्रकोप होने की संभावना सबसे अधिक होती है, जिसको ध्यान में रखते हुए छत्तीसगढ़ के सुकुमा जिले के कृषि विभाग के अधिकारियों द्वारा फील्ड भ्रमण कर किसानों के खेतों का निरीक्षण किया गया।
कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों ने सुकमा विकासखंड के गांव मुरतोंडा, रामपुरम, मुयापारा, पेरमापारा, सोनाकुकानार का फील्ड भ्रमण के दौरान मक्का के खेतों का निरीक्षण किया और पाया कि फॉल आर्मी वर्म कीट की इल्ली का आक्रमण सर्वाधिक था। मक्के की फसल में यह कीट भारी क्षति पहुंचा रही है। वैज्ञानिकों ने कहा कि मक्का फसल नहीं होने पर यह कीट अन्य फसलों को भी नुकसान पहुंचा सकता है। इसलिए किसानों को इसके नियंत्रण के लिए तुरंत उपाय कर लेना चाहिए।
वैज्ञानिकों ने कहा कि स्पोडोपटेर फ्रूजीपर्डा उत्तरी अमेरिका से लेकर कनाड़ा, चिली और अर्जेंटीना के विभिन्न हिस्सों में आमतौर पर पाया जाने वाला कीट है। मिथिमना सेपराटा एवं स्पोडोप्टेरा लिटुरा आर्मी वर्म की ये प्रजातियां पहले से हमारे क्षेत्रों में कहीं-कहीं देखी जाती रही है, लेकिन पिछले कई सालों से फौजी कीट की प्रजाति स्पोडोप्टेरा फ्रूजीपर्डा (फॉल आर्मी वर्म ) दक्षिण भारत (तेलंगाना, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक आदि) में मक्के की फसल को गंभीर क्षति पहुंचा रहा है। मक्का इस कीट के लिए पसंदीदा फसल है। इसलिए इस फसल में इसका सर्वाधिक प्रकोप संभव है।
उन्होंने बताया कि मक्के में 25-30 दिन की अवस्था इस कीट का प्रकोप दिखाई देता है। 30-45 दिन की अवस्था मे इस कीट का अधिक आक्रमण दिखाई देता है। इसकी 6 अवस्थाएं होती है। इस इल्ली के सिर पर उल्टे वाई आकार का सफेद चिन्ह एवं शरीर पर काले धब्बे होते हैं। फॉल आर्मी वर्म तम्बाकू की इल्ली के शलभ से काफी समानता लिए हुए धब्बेदार धूसर से गहरे-भूरे रंग के होते हैं। इनके पंखों का विस्तार लगभग 40 मि.मी. होता है। फॉल आर्मी वर्म के अंडों का आकार ‘‘डोम शेप’’ में होता है।
कृषि विशेषज्ञों ने कहा कि आरंभिक अवस्था में इस कीट की इल्ली भूमि की सतह के पास की पत्तियों का भक्षण करती है। प्रगत अवस्था में पूरे पौधे (मक्के की पत्तियां, भुट्टे, नर पुष्प) पर आक्रमण कर पौधों में सिर्फ डंठल एवं पत्तियों में मध्य शिरा छोड़कर शेष भाग को गंभीर क्षति पहुंचाती है। फॉल आर्मी वर्म कीट के वयस्क कीट लंबी उड़ान भरकर अपने जीवनकाल में सैकड़ों किलोमीटर तक उड़ सकते हैं। अत: अनुकूल मौसम रहने पर यह कीट बड़े भूभाग को अपनी चपेट में ले सकता है। ऐसे में किसान इस कीट नियंत्रण के लिए प्रति हेक्टेयर 100 फेरोमोन फंदा का इस्तेमाल करें। बीज बुआई से पहले बीजों को रासायनिक कीटनाशक साइट्रानिलिप्रोल 19.8 प्रतिशत एवं थियामेथोक्साम 19.8 प्रतिशत एफ.एस. का 6 मिली. प्रति किलोग्राम बीज को उपचारित करें।
सर्वेक्षण में ये भी पाया गया है कि किसान बिना किसी विशेषज्ञ की सलाह से ही कीटनाशक का अंधाधुंध प्रयोग कर रहे हैं। उन्हें सलाह दी गई है कि किसान कृषि विशेषज्ञ की सलाह से ही कीटनाशक का प्रयोग करें। इल्ली के प्रभावी नियंत्रण के लिए क्लोरेट्रांनिलिप्रोएल 18.5 एस.सी., 0.4 मिली प्रति लीटर पानी या स्पिाईनटोरम 11.7 प्रतिशत एस.सी. 0.5 मिली प्रति लीटर पानी या इमामेक्टिन बेंजोएट 5 प्रतिशत एस जी 0.4 ग्राम प्रति लीटर पानी़ की सिफारिश की जाती है। फसल में लगभग 5 प्रतिशत प्रकोप होने पर रसायनिक कीटनाशक के रूप में फ्लूबेन्डामाइट 20, डब्ल्यू. डी.जी. 250 ग्राम प्रति हेक्टेयर, एमिमामेक्टिन बेंजोएट 5 एस.जी. का 200 ग्राम प्रति हेक्टेयर में कीट प्रकोप की स्थिति अनुसार 15-20 दिन के अंतराल पर 2-3 बार छिडक़ाव करें।
वैज्ञानिकों ने कहा, मक्का में बाली आने की अवस्था में रासायनिक कीटनाशकों को बदल-बदल कर छिड़काव किया जा सकता है। इससे फसल में फॉल आर्मी वर्म कीट प्रकोप का नियंत्रण किया जा सकता है। इस कीट की शंखी अवस्था को नष्ट करने के लिए किसान भाई को खेतों की ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई करनी चाहिए। फसल की समय पर बुआई करें, मानसून पूर्व शुष्क बोनी ज्यादा प्रभावी है। मानसून वर्षा के साथ ही बुआई करें, विलंब न करें। देर से बोई गई फसल में इस कीट का प्रकोप ज्यादा गंभीर होता है। अनुशंसित पौध अंतरण (60-75 से.मी. कतार से कतार एवं 30 से.मी. पौध से पौध) पर बुआई करें।
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