खरीफ सीजन में चावल की खेती करने वाले किसान धान की किस्म को लेकर इन दिनों ज्यादा उत्सुक है। देश के अलग-अलग राज्यों में धान की अलग-अलग किस्म बोई जाती है। पेयजल संकट को देखते हुए किसान धान की उन किस्मों को अधिक पसंद कर रहे हैं जो कम पानी में विकसित होती है और कम समय में ज्यादा पैदावार से अधिक मुनाफा देती है। इन सबके बीच सांभा मंसूरी चावल की खेती इन दिनों चर्चा में बनी हुई है। सीएसआईआर-केंद्रीय औषधीय एवं संगध पौधा संस्थान धान की सांभा मंसूरी वैरायटी की खेती को बढ़ावा देने का प्रयास कर रहा है। इसी क्रम में किसानों को इस किस्म की धान के बीज भी वितरित किए गए हैं। सांभा मंसूरी किस्म के चावल पतले और छोटे होते हैं। आइए, ट्रैक्टर गुरु की इस पोस्ट से जाने कि सांभा मंसूरी चावल की खेती कैसे किसानों के लिए फायदेमंद है।
धान की सांभा मंसूरी किस्म की खेती उत्तरप्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडू, छत्तीसगढ़, झारखंड, तेलंगाना, महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश आदि राज्यों में की जाती है। यह किस्म प्रति हेक्टेयर 5 से 6 टन की पैदावार देती है। किसान खरीफ सीजन में सांभा मंसूरी चावल की खेती करके ज्यादा मुनाफा कमा सकते हैं। कृषि वैज्ञानिक इस किस्म की खेती को प्रोत्साहित कर रहे हैं। पिछले दिनों लखनऊ में 25वां राष्ट्रीय प्रौद्योगिक दिवस मनाया गया। कार्यक्रम का आयोजन सीएसआईआर-केंद्रीय औषधीय एवं सगंध पौधा संस्थान की ओर से किया गया। इस अवसर पर सीएसआईआर—सीमैप के निदेशक डा. प्रबोध कुमार त्रिवेदी ने कहा कि हम सभी को किसान की आय बढ़ाने के लिए काम करना चाहिए। धान किसानों की आय बढ़ाने में सांभा मंसूरी चावल किस्म उपयोगी साबित हो सकती है, बशर्ते किसान कृषि वैज्ञानिकों के मार्गदर्शन में इस किस्म की खेती करें।
सामान्यत मधुमेह के रोगियों को चावल खाने की मनाही होती है। लेकिन चावल की यह किस्म मधुमेह के रोगी भी खा सकते हैं। किसानों को सांभा मंसूरी चावल की उन्नत किस्म की ही खेती करनी चाहिए। सीएसआईआर-सीसीएमबी के वरिष्ठ प्रधान वैज्ञानिक डॉ. हितेंद्र पटेल सांभा मंसूरी चावल की उन्नत किस्म के बारे में बताते हैं कि यह प्रजाति बैक्टीरियल ब्लाइट रोग के लिए प्रतिरोधी है। इसका ग्लाइसेमिक इंडेक्स भी काफी कम है, जो कि मधुमेह के मरीजों के लिए फायदेमंद है। आज विभिन्न राज्यों में 1.5 लाख हेक्टेयर से अधिक भूमि मे इसकी खेती की जा रही है।
सांभा मंसूरी धान की खेती दक्षिण भारत के राज्यों में प्रमुखता से की जाती है। यह उन राज्यों की उन्नत प्रजाति है। इस वैरायटी का चावल खाने में स्वादिष्ट होता है तथा यह फसल कम दिनों में पक जाती है जिससे किसानों को अधिक लागत नहीं लगानी पड़ती है। पहले जब सांभा मसूरी धान की उन्नत प्रजाति नहीं थी तब सभी किसान सांभा मंसूरी में लगने वाले रोग बैक्टीरियल ब्लाइट से परेशान थे। ये रोग एक बैक्टीरिया की वजह से होता है, जिसकी वजह से इन्हें काफी नुकसान उठाना पड़ता था। बैक्टीरियल ब्लाइस्ट रोग में धान की पत्तियां पीली पड़ जाती है और उत्पादन 50 प्रतिशत तक घट जाता है। लेकिन अब उन्नत सांभा मंसूरी किस्म विकसित हो चुकी है। वरिष्ठ प्रधान वैज्ञानिक डॉ. हितेंद्र पटेल के अनुसार उन्नत सांभा मंसूरी बैक्ट्रीरियल ब्लाइट प्रतिरोधी धान की इस किस्म को विकसित किया है। उन्नत सांभा मंसूरी किस्म में ग्लासेनिक इंडेक्स (जीआई) 55 फीसदी कम है जिससे यह किस्म मधुमेह के मरीजों के लिए भी फायदेमंद है। साथ ही यह किस्म प्रगतिशील किसानों की आय बढाने में काफी मददगार साबित होगी।
उन्नत सांभा मंसूरी नस्ल की खास बात यह है कि इसके पौधों की लंबाई कम होती है जिसके कारण यह तेज हवा व बारिश के कारण गिरता नहीं है। यह किस्म दूसरी किस्मों के मुकाबले 5 से 7 दिन पहले तैयार हो जाती है और ज्यादा उत्पादन मिलता है। इस किस्म को कम मात्रा में उर्वरक की जरूरत होती है। दक्षिण भारत की इस लोकप्रिय किस्म की खेती को उत्तरप्रदेश में भी प्रोत्साहित किया जा रहा है। सीएसआईआर-सीसीएमबी द्वारा विकसित चावल की उन्नत सांभा मंसूरी प्रजाति के बीजों को बाराबंकी, सीतापुर, प्रतापगढ़, दिल्ली से आए किसानों को वितरित किया जा रहा है। डॉ. हितेंद्र पटेल के अनुसार सीएआईआर के एक प्रोजेक्ट के तहत यूपी के करीब 500-600 किसानों को उन्नत सांभा मंसूरी किस्म का बीज वितरित किया गया है।
लखनऊ में 25वें राष्ट्रीय प्रौद्योगिक दिवस के अवसर पर आईसीएआर-आईआईआरआर के निदेशक डॉ. आरएम सुंदरम ने सांभा मंसूरी, डीआरआर धान-58, डीआरआर धान-60, डीआरआर धान-62 सहित संस्था द्वारा विकसित चावल की किस्मों के बारे पर विस्तार से चर्चा की।
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