भारत गन्ना उत्पादन में प्रमुख है ये पूरे विश्व में द्धित्तीय स्थान पर आता है। भारत में गन्ने की खेती काफी बड़े पैमाने पर की जाती है। गन्ना, भारत की महत्वपूर्ण वाणिज्यिक फसलों में से एक है और इसका नकदी फसल के रूप में एक प्रमुख स्थान है। भारत में लगभग 5 मिलियन हेक्टेयर से भी अधिक क्षेत्रफल में गन्ना की खेती होती है। इसमें सबसे ज्यादा गन्ना उत्तर प्रदेश में होता है। देश का लगभग 50 प्रतिशत से ज्यादा गन्ना उत्तर प्रदेश में ही होता है। हालांकि, पिछले कुछ सालों से गन्ना उत्पादक के सबसे बडे राज्य उत्तर प्रदेश में गन्ने की खेती में किसानों को लगातार नुकसान हो रहा है। जिससे गन्ना उत्पादन में कमी भी दर्ज की गई है। गन्ना उत्पादन में हो रही कमी की समस्या से निपटने और किसानों की आमदनी बढ़ाने के साथ उत्पादन में वृद्धि को लेकर कृषि विशेषज्ञों द्वारा किसानों को गन्ने की फसल के साथ ऐसी फसलों की बुवाई की सलाह दी जा रही है, जो कम समय में ज्यादा मुनाफा दे जाएं। कृषि विशेषज्ञों द्वारा पिछले कुछ वर्षों से किसानों को खेती की सहफसली तकनीक अपनाने की सलाह दी जा रही है। इस तकनीक के अनुसार, किसान एक मुख्य फसल के साथ खेतों में 4 से 5 ऐसी फसलों को लगा सकते हैं, जो कम समय में तैयारी होती हो और ज्यादा मुनाफा दे जाएं। ऐसा करने से किसानों की मुख्य फसल की लागत तो निकल ही आएगी, साथ ही अतिरिक्त मुनाफा भी होगा।
कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर दया श्रीवास्तव का कहना है कि गन्ने के साथ.साथ हम लहसुन, अदरक, अलसी और मेंथा की फसलों के अलावा अन्य सब्जियों को भी लगाया जा सकता है। गन्ने की फसल को तैयार होने में 13 से 14 महीने लगेंगे। वहीं, हम कुछ फसलों से महज 60 से 90 दिनों के बीच में लगा कर और कटाई कर मुनाफा हासिल कर लेंगे।
प्रति इकाई क्षेत्रफल से अधिक उत्पादन प्राप्त कर आमदनी को बढ़ाया जा सकता है. गन्ने में प्रारम्भिक अवस्था में लगने वाली लागत को मुख्य फसल के तैयार होने से पहले ही सहायक फसल से निकला जा सकता है। इस फसल प्रणाली में गन्ने के साथ दलहनी फसलों को उगाकर मृदा स्वास्थ्य को बनाये रखा जा सकता है। मृदा से नमी, पोषक तत्व, प्रकाश एवं खाली स्थान का समुचित उपयोग किया जा सकता है। श्रम, पूंजी, पानी, उर्वरक इत्यादि को बचाकर लागत को कम किया जा सकता है।
गन्ने एक लंबी अवधि की फसल है और इसकी प्रारम्भिक वृद्धि धीमी गति से होती है। गन्ने की फसल को तैयार होने में 13 से 14 महीने का समय लगता है। इस बीच आप गन्ने के खेत में खाली जगह में लहसुन की खेती कर 60 से 90 दिनों में अच्छी कमाई कर सकते हैं। गन्ने के साथ लहसुन की खेती सहायक फसल के रूप में करने के लिए लहसुन की प्रमुख प्रजाति यमुना सफेद 1, यमुना सफेद 2 तथा एग्रीफाउंड पार्वती लहसुन की कुछ उन्नत किस्म की बुवाई कर सकते हैं। बुवाई की प्रक्रिया में पहले लहसुन की एक-एक कली को अलग किया गया। लहसुन के लिए अलग से उवर्रक का इस्तेमाल किया गया। गन्ने की दो पंक्तियों के बीच सौ ग्राम एनपीएस तथा 50 ग्राम पोटाश को जोताई के जरिए मिट्टी में मिला ले इसके बाद भूमि को समतल कर लहसुन की बुवाई करें। लहसुन की पंक्ति से पंक्ति तथा कली से कली की दूरी भी 15 सेमी रखें। खरपतवार न हो इसके लिए बोआई के दूसरे दिन खरपतवार नाशक रसायन पेंडीमेथलिन का छिड़काव करें। इसके बाद गन्ने की दो पंक्तियों के बीच धान का पुआल बिछा दें। ताकि खेत में नमी सुरक्षित रहें और खतपतरवार नहीं निकले। इसका सीधा लाभ गन्ने की फसल को मिलता है क्योंकि खरपतरवार गन्ने की उपज को 40 प्रतिशत तक कम कर देते हैं। फिर हल्की सिंचाई करे | जिससे कुछ समय बाद धान का पुआल सड़कर जैविक खाद बन जाए।
गन्ने के साथ सहायक फसल के रूप में अदरक को लगाया जा सकता है। गन्ने के साथ सहायक फसल के रूप में अदरक लगाने के लिए क्यारियों को आधा फुट ऊंचाई की बनायें, जिनकी चौड़ाई लगभग 1 मीटर तथा लंबाई अपनी सुविधानुसार रखें। अनुशंसित उपलब्ध बीज का उपयोग करें। रोपाई करते समय रोपाई के गड्ढे में 25 ग्राम नीम की खली का पाउडर मिट्टी में मिला दें। रोपाई 25 से.मी. लाईन से लाईन की दूरी तथा 20 से 25 सेमी. कंद से कंद की दूरी पर करें। 20 से 30 ग्राम कंद का उपयोग बुवाई के लिये करें। कंद बोने के पूर्व उसे अच्छी सड़ी गोबर की खाद तथा ट्राइकोडर्मा फफूंद के मिश्रण से उपचारित कर लें।
गन्ने के साथ सहायक फसल के रूप में अलसी की खेती करने के लिए गन्ने के दोनो पंक्तियों के बीच खाली स्थान में गोबर, फास्फोरस, पोटाश, खाद की उचित मात्र डालकर जुताई कर अच्छी तरह मिला कर भूमि समतल कर ले। इसके बाद 5 से 7 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से बीजों की बुवाई करें। कतार से कतार के बीच की दूरी 30 सेमी तथा पौधे से पौधे की दूरी 5 से 7 सेमी रखे। बीज को भूमि में 2 से 3 सेमी की गहराई में बोना चाहिए। अलसी के बुवाई के लिए जे.एल.एस.-67, जे.एल.एस.-66, जे.एल.एस.-73, शीतल, रश्मि, शारदा, ईदिर, अलसी 32 आदि उन्नत किस्मों का प्रयोग करें।
गन्ने के खेत में दोनों पंक्तियों के बीच आप मेंथा की फसल को सहायक फसल के रूप में इसकी खेती कर सकते हैं। इसके लिए आप को सबसे पहले उचित प्रकार से भूमि को तैयार कर मेंथा की बुवाई करनी होती है। गन्ना के साथ मेंथा की फसल बोने के लिए भूमि की कोई विशेष तैयारी नही करनी पड़ती, फिर भी अगर गन्ने के साथ सहफसली की जा रही है, तो गन्ने की बुवाई की कूड विधि उचित रहती है। ऐसा करने से मेन्थॉल के लिए मेड़ विधि अपने आप ही मिल जाएगी, जो कि मेन्थॉल के लिए समतल विधि की अपेक्षा अधिक उत्तम है। मेन्थॉल की खेती के लिए 50 किलोग्राम नाइट्रोजन, 50 किलोग्राम फास्फोरस, 50 किलोग्राम पोटाश अतिरिक्त रूप से भूमि की ऊपरी सतह में मिला देना चाहिए। इसके बाद 50 किलोग्राम/हेक्टेयर के हिसाब से नाइट्रोजन की दो बार और आवश्यकता पड़ती है, जिसको मेन्थॉल मिन्ट लगाने के 35 से 40 और 50 से 60 दिन बाद छिड़काव द्वारा देना चाहिए।
इसके अलावा आप गन्ने के साथ अन्य सब्जिओं की फसल जैसे पालक, मूली, आलू, धनिया, मसूर और मटर की फसल सहायक फसल के रूप में लगा सकते हैं। इससे आपको गन्ने की फसल के तैयार होने तक सह-फसली खेती से अतिरिक्त आय प्राप्त हो जाएगी।
ट्रैक्टरगुरु आपको अपडेट रखने के लिए हर माह जॉन डीरे ट्रैक्टर व कुबोटा ट्रैक्टर कंपनियों सहित अन्य ट्रैक्टर कंपनियों की मासिक सेल्स रिपोर्ट प्रकाशित करता है। ट्रैक्टर्स सेल्स रिपोर्ट में ट्रैक्टर की थोक व खुदरा बिक्री की राज्यवार, जिलेवार, एचपी के अनुसार जानकारी दी जाती है। साथ ही ट्रैक्टरगुरु आपको सेल्स रिपोर्ट की मासिक सदस्यता भी प्रदान करता है। अगर आप मासिक सदस्यता प्राप्त करना चाहते हैं तो हमसे संपर्क करें।
Website - TractorGuru.in
Instagram - https://bit.ly/3wcqzqM
FaceBook - https://bit.ly/3KUyG0y