Black Wheat Farming : रबी फसलों की बुवाई का सीजन शुरू हो चुका है। इस सीजन में रबी की प्रमुख खाद्यान्न फसल गेहूं की खेती की जाती है। गेहूं इस सीजन की प्रमुख व्यापारिक फसल है, जिसका बड़ी मात्रा में निर्यात भी किया जाता है। देश के विभिन्न इलाकों में किसान गेहूं की परंपरागत किस्मों की बुवाई बड़े पैमाने पर करते हैं। गेहूं की खेती से अधिक लाभ हासिल करने के लिए इसकी सही किस्म का चयन करना बेहद जरूरी है। ऐसे में किसान इस रबी सीजन में काले गेहूं की खेती (Black Wheat Farming) करके बंपर मुनाफा कमा सकते हैं। काले गेहूं की खेती किसानों के लिए एक लाभदायक विकल्प साबित हो सकती है। इसकी उच्च मांग और सीमित उत्पादन के कारण सामान्य गेहूं से इसका बाजार मूल्य 4 गुना ज्यादा है। हालांकि इसकी खेती में लागत सामान्य गेहूं की खेती से अधिक आती है, लेकिन बाजार में अधिक डिमांड होने के कारण इसकी खेती करने वाले किसानों को ज्यादा मुनाफा मिल रहा है।
काला गेहूं का आकार सामान्य गेहूं की तरह ही होता है, लेकिन इसमें कई औषधीय गुण मौजूद है। सामान्य गेहूं की तुलना में काले गेहूं दिखने में काले या बैंगनी रंग के होते हैं, पर इसके गुण सामान्य गेहूं की तुलना में अधिक होते हैं। काले गेहूं में एन्थोसाइनीन पिगमेंट की मात्रा अधिक होती है, जिसके चलते यह काला दिखाई देता है। सफेद गेहूं में एंथोसाइनिन की मात्रा 5-15 पीपीएम होती है, जबकि काले गेहूं में इसकी मात्रा 40-140 पीपीएम होती है। काले गेहूं में एंथ्रोसाइनीन (एक नेचुरल एंटी ऑक्सीडेंट व एंटीबायोटिक) प्रचुर मात्रा में पाया जाता है और इसका ग्लाइसेमिक इंडेक्स भी कम होता है, जिसके करण यह मानसिक तनाव, घुटनों का दर्द, एनीमिया, हार्ट अटैक, कैंसर, डायबिटीज, रोगियों के लिए बहुत लाभदायक होता है। काला गेहूं में फाइबर, मैग्नीशियम, एंटीऑक्सिडेंट्स, फास्फोरस के साथ ही भरपूर मात्रा में प्रोटीन पाया जाता है।
साधारण गेहूं किस्म की तरह ही काले गेहूं की खेती भी रबी सीजन में की जाती है। हालांकि इसकी बुवाई के लिए नवंबर का महीना सबसे उपयुक्त माना गया है। लेकिन कई इलाकों के किसान दिसंबर महीने के शुरुआती हफ्ते तक काले गेहूं की बुवाई करते हैं। काले गेहूं की खेती के लिए नमी बेहद जरूरी होती है। नवंबर के बाद इसकी बुआई करने पर गेहूं का उत्पादन प्रभावित हो सकता है। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में काले गेहूं की खेती मुख्य रूप से होती है। एक बीघा जमीन में इसकी खेती से लगभग 1,000 से 1,200 किलोग्राम की पैदावार प्राप्त की जा सकती है। हालांकि यह पैदावार साधारण गेहूं किस्म की अपेक्षा कम है, लेकिन बाजार मूल्य सामान्य गेहूं के मूल्य से अधिक होने के कारण किसान को इससे अधिक लाभ होता है।
काले गेहूं की बुवाई करने से पहले किसान अपने खेत की मिट्टी की अच्छे से जांच करा लें। खेतों में अच्छी जल निकासी की सुविधा तैयार करें। बुवाई के लिए प्रमाणित संस्थानों से इसके बीज खरीदें। कई प्रमाणित संस्थानों से काले गेहूं के उन्नत किस्म के बीजों को ऑनलाइन ऑर्डर कर खरीदा जा सकता है। बीज की बुवाई करने के लिए सबसे पहले खेत में चार-पांच जुताई कर पाटा लगाएं और मिट्टी भुरभुरी बना लें। जमीन में नमी के लिए पहले पलेवा के रूप में सिंचाई कर दें। काले गेहूं की बुवाई के वक्त प्रति एकड़ खेत में 50 किलो डीएपी, 45 किलो यूरिया, 20 किलो म्यूरेट पोटाश और 10 किलो जिंक सल्फेट खाद का इस्तेमाल करें। इसके बाद फसल की पहली सिंचाई के समय 60 किलो यूरिया प्रति एकड़ की दर से डालना चाहिए।
साधारण गेहूं किस्म की भांति काले गेहूं की खेती में भी सिंचाई की कम आवश्यकता होती है। पहली सिंचाई बुवाई के 20 से 25 दिनों बाद करें। इसके बाद नमी व मौसम के अनुसार समय-समय पर सिंचाई करें। बालियां निकलने से पहले और दाना पकते समय सिंचाई अवश्य करें। काले गेहूं की खेती के लिए तीन से चार सिंचाई की आवश्यकता होती है।
काले गेहूं की इस नई किस्म को पंजाब के मोहाली स्थित नेशनल एग्री फूड बायोटेक्नॉलाजी इंस्टीट्यूट नाबी ने विकसित किया है। स्वास्थ्य संबंधी उत्पाद निर्माताओं और फूड प्रोसेसिंग कंपनियों द्वारा काले गेहूं की डिमांड की जाती है, जिसके कारण इसके उत्पादन को बेचना भी बहुत आसान है। सामान्य गेहूं के मुकाबले काला गेहूं चार गुना अधिक कीमत पर बिकता है।
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