हरियाणा के ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों के लिए खुशखबरी है। हाल ही में ग्रामीण क्षेत्रों में एक अच्छा रोजगार उपलब्ध कराने व आर्थिक तौर पर मदद करने के लिए हरियाणा सरकार ने बायोगैस प्लांट लगाने पर अनुदान देने का ऐलान किया है। जिसमें राज्य के अंदर कृषि उत्पादकों में बढ़ोतरी व खेती-किसानी की लागत को कम कर उपलब्ध संसाधनों का सही इस्तेमाल कर जैविक खेती को प्रोत्साहित करने के लिए बायोगैस प्लांट मिशन की शुरुआत कर दी गई है। इस मिशन के तहत डेयरी किसान तथा गौशाला संचालक 80 क्यूबिक बायोगैस प्लांट लगाकर हरियाणा सरकार से 40 प्रतिशत यानि 3 लाख 95 हजार 600 रुपये लगभग 4 लाख तक का अनुदान प्राप्त कर सकते हैं।
दरअसल हरियाणा सरकार द्वारा केन्द्र सरकार द्वारा संचालित नेचुरल फार्मिंग योजना को सफल बनाने के उद्देश्य से तैयारी शुरू कर दी गई है। हरियाणा सरकार राज्य रासायनिक कीटनाशक मुक्त फसलों की खेती करने, गोबर का निपटान कर जैविक खाद बनाने के उद्देश्य से बायोगैस प्लांट लगाने के लिए किसानों को प्रोत्साहित कर रही है। क्योंकि ऑर्गेनिक खेती के जरिये फसलों से बेहतर उत्पादन हासिल करने में ऑर्गेनिक खाद और जैव कीटनाशक अहम भूमिका अदा करते हैं। हरियाणा राज्य के किसान बायोगैस प्लांट स्थापित कर जैविक खाद, बिजली और कुकिंग गैस का उत्पादन करके अपनी आमदनी बढ़ा सकते हैं और अपने आसपास के पर्यावरण को शुद्ध कर सकते हैं। तो चलिए ट्रैक्टर गुरु के इस लेख में बायोगैस प्लांट से संबंधित जानकारियों के बारे में जानते हैं।
बायोगैस प्लांट में पशुओं के व्यर्थ पदार्थ या एनर्जी क्रॉप्स के उपयोग से बायोगैस बनाई जाती है। एनर्जी क्रॉप्स को भोजन के बजाय बायोफ्यूल्स के लिए उगाया जाता है। बायोफ्यूल बायोमास कहे जाने वाले मृत ऑर्गेनिक तत्वों से बनाया जाता है और यह तरल, गैसीय या ठोस रूप में हो सकता है। एक बायोगैस प्लांट में एक डाइजेस्टर और गैस होल्डर होता है जो ईंधन का निर्माण करता है। प्लांट का डाइजेस्टर एयरटाइट होता है जिसमें व्यर्थ पदार्थ डाला जाता है और गैस होल्डर में गैस का संग्रहण होता है। बायोगैस प्लांट का निर्माण गैस की जरूरत और व्यर्थ पदार्थ की उपलब्धता पर निर्भर करता है। साथ ही डाइजेस्टर के बैच फीडिंग या लगातार फीडिंग पर भी। बायोगैस प्लांट जमीन की सतह या उसके नीचे बनाया जाता है और दोनों मॉडलों के अपने फायदे-नुकसान हैं। सतह पर बना प्लांट रख-रखाव में आसान होता है और उसे सूरज की गर्मी से भी लाभ होता है, लेकिन इसके निर्माण में अधिक ध्यान देना होता है क्योंकि वहां डाइजेस्टर के अंदरूनी दबाव पर ध्यान देना होता है। इसके विपरीत सतह के नीचे स्थित प्लांट निर्माण में आसान लेकिन रख-रखाव में मुश्किल होता है।
आधिकरियों के अनुसार हरियाणा में बडे पैमाने पर डेयरी फार्मिंग करते हैं। राज्य में करीबन 7 लाख 60 हजार पालतू पशुधन है। लेकिन इनके गोबर को निपटाना एक चुनौतीपूर्ण विषय है। ऐसी स्थिति में बायोगैस प्लांट लगाकर ना सिर्फ गोबर का निपटारा होगा, बल्कि ऊर्जा उत्पादन के जरिये अतिरिक्त आमदनी भी कमा सकेंगे। इनके गोबर का इस्तेमाल करके 3.8 लाख क्यूबिक मीटर बायोगैस पैदा की जा सकती है। इस बायोगैस से रोजाना तीन सौ मेगावाट बिजली का उत्पादन हो सकता है। दूध डेयरी व गौशालाएं 25, 35, 45 व 85 क्यूबिक मीटर क्षमता तक के बायोगैस प्लांट लगाकर 40 प्रतिशत अनुदान का लाभ ले सकती हैं। ज्यादातर किसान बायोगैस प्लांट के जरिये वर्मी कंपोस्ट जैविक खाद बनाते हैं। खेती में जैव खाद-उर्वरकों पर ज्यादा खर्च नहीं होता। वहीं सरकार भी किसानों को जैविक खेती करने के लिये आर्थिक अनुदान प्रदान करती है।
सरकारी प्रवक्ता ने बताया कि राज्य में मवेशियों की संख्या सर्वाधिक है इसलिए बायोगैस के विकास की प्रचुर संभावना है। उन्होंने बताया कि बायोगैस प्लांट लगाकर हम पर्यावरण प्रदूषण की रोकथाम करते हैं तथा इससे प्राकृतिक खाद मिलती है, जो खेती के लिए बढ़िया उपजाऊ शक्ति का काम करती है। इसके अलावा बायोगैस (मिथेन या गोबर गैस) मवेशियों के उत्सर्जन पदार्थों को कम ताप पर डाइजेस्टर में चलाकर माइक्रोब उत्पन्न करके प्राप्त की जाती है। बायोगैस में 75 प्रतिशत मिथेन गैस होती है, जो बिना धुआं उत्पन्न किए जलती है। लकड़ी, चारकोल तथा कोयले के विपरीत यह जलने के पश्चात राख जैसे कोई अपशिष्ट भी नहीं छोड़ती है। ग्रामीण इलाकों में भोजन पकाने तथा ईंधन के रूप में प्रकाश की व्यवस्था करने में इसका उपयोग हो रहा है। बायोगैस प्लांट से बिजली बनाकर आसपास के क्षेत्र में इसकी आपूर्ति की जा सकती है। इससे लाभपात्र घरों की निर्भरता बिजली वितरण निगम की सप्लाई पर न्यूनतम रह जाती है और कोई पावर कट भी नहीं लगता। इस बिजली का बहुत कम खर्च आता है। इस तरह गोबर को रिसाइकिल कर हम ऊर्जा का बेहतर विकल्प इस्तेमाल में ला सकते हैं। इसलिए डेयरी और गौशालाओं को इस प्रकार के प्रोजेक्ट लगाने के लिए गंभीरता से विचार करना चाहिए।
हरियाणा राज्य में खेती-किसानी के साथ-साथ डेयरी फार्मिंग काफी बड़े पैमाने पर होती है। यहां अधिकतर जिलों में ज्यादातर किसान दूध उत्पादन के उद्देश्य से बड़े पैमाने पर डेयरी फार्मिंग करते हैं, लेकिन इन डेयरी फार्मिंग संचालक किसानों के सामने गाय और भैंस के गोबर को निपटाना एक चुनौतीपूर्ण काम बन जाता है। ऐसे में बायोगैस प्लांट डेयरी फार्मिंग संचालकों के लिए गोबर निपटारा एक अहम साधन बनेगा। डेयरी फार्मिंग संचालक एवं पशुपलक किसान 25 क्यूबिक मीटर क्षमता के बायोगैस प्लांट में 70 से 80, 35 क्यूबिक मीटर प्लांट में 100 से 110 और 45 क्यूबिक मीटर के लिए 125 से 140 पशुओं के गोबर का निपटारा आसानी से कर सकते है। इसी तरह 60 क्यूबिक मीटर के लिए 175 से 180 जबकि 85 क्यूबिक मीटर क्षमता का संयंत्र स्थापित करने के लिए 250 से 270 पशुओं के गोबर की जरूरत पड़ती है।
हरियाणा सरकार द्वारा बायोगैस प्लांट स्थापित करने के लिए चालीस प्रतिशत सब्सिडी दी जा रही है। ऐसे में दूध डेयरी और गौशालाएं बायो-गैस प्लांट लगाकर खाद गोबर से अपनी आमदनी बढ़ा सकते है। हरियाणा सरकार द्वारा जारी सूचना के मुताबिक, बायोगैस बनाने के लिए 3 लाख 95 हजार 600 रुपये यानी लगभग 4 लाख तक का अनुदान ले सकते हैं। बायोगैस प्लांट लगाने के लिए परियोजना अधिकारी के पास आवेदन जमा करवाए जा सकते हैं। अधिक जानकारी के लिये नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा विभाग एवं हरियाणा अक्षय ऊर्जा विकास एजेंसी की आधिकारिक वेबसाइट https://hareda.gov.in/ पर जाकर भी विजिट कर सकते हैं।
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