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मछली पालन पर सब्सिडी : बायोफ्लॉक तकनीक अपनाने पर मिलेगा 60 प्रतिशत अनुदान

मछली पालन पर सब्सिडी : बायोफ्लॉक तकनीक अपनाने पर मिलेगा 60 प्रतिशत अनुदान
पोस्ट -07 सितम्बर 2022 शेयर पोस्ट

बायोफ्लॉक तकनीक से मछली पालन किफायती, ज्यादा कमाई के लिए पढ़ें पूरी खबर

भारत में पिछले कुछ सालों में मत्स्य पालन क्षेत्र में भारी बदलाव आया है। मत्स्य पालन क्षेत्र में विस्तार देखने को मिला हैं। भारत सरकार मछली पालन अर्थात जलीय कृषि करने वाले किसानों को बढ़ावा देने के लिए तमाम योजनाओं का संचालन कर रही है। इस योजना के अंतर्गत भारत सरकार द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में मछली पालन काे प्रोत्साहित करने के लिए किसानों को बैंक ऋण, सब्सिडी और बीमा आदि अनेक प्रकार की सुविधाएं दी जा रही है। मत्स्य पालन क्षेत्र के विस्तार के लिए ब्लू रिवॉल्यूशन (नीली क्रांति) योजना चलाई जा रही है।  ब्लू रिवॉल्यूशन (नीली क्रांति) को और अधिक मजबूती और आधुनिकता देने के लिए अब मछली पालन के लिए बायोफ्लॉक टेक्नोलॉजी अपनाई जाने लगी है। इस तकनीक में आपको मछली पालन के लिए तालाब बनाने की जरुरत नहीं पड़ेगी। यह तकनीक मछली पालन को और सुलभ और सरल बनाती है। जिसे अपनाकर किसान अधिक और अतिरिक्त आय अर्जित कर सकते हैं। केन्द्र सरकार छोटे और लघु सीमांत किसानों को आर्थिक तौर पर आत्मनिर्भर बनाने के लिए उन्हें इस योजना के तहत मछली पालन व्यवसाय के लिए लोन के साथ-साथ निःशुल्क ट्रेनिंग भी प्रदान करती है। तो आइए ट्रैक्टर गुरू के इस लेख के माध्यम से बायोफ्लॉक तकनीक संबंधित सभी जानकारी के बारे में जानते हैं।  

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बायोफ्लॉक तकनीक 

जानकारी के लिए बता दें कि बायोफ्लॉक एक बैक्टीरिया है, जो मछलियों के अपशिष्ट को प्रोटीन में बदल देता है। इस प्रोटीन का सेवन भी मछलियां ही करती हैं, जिससे संसाधनों की काफी हद तक बचत होती है। इस तकनीक में बड़े-बड़े टैंकों में मछली पाली जाती है। करीब 10-15 हजार लीटर पानी के टैंकों में मछलियां डाल दी जाती है। इन टैंकों में पानी भरने, गंदा पानी निकालने, पानी में ऑक्सीजन देने की व्यवस्था होती है। इस तकनीक में किसान चाहे तो मछली पालन के लिये अपनी सहूलियत के हिसाब से छोटे या बड़े टैंक बनवा सकते हैं। बायोफ्लॉक तकनीक से कम पानी और कम खर्च में अधिक मछली उत्पादन किया जा सकता है। इस तकनीक से किसान बिना तालाब की खुदाई किए एक टैंक में मछली पालन कर सकते हैं। 

मछली के अपशिष्ट को प्रोटीन में बदलना 

बायोफ्लॉक में मछली पालन करने के लिए किसान की आवश्यकता, मार्केट डिमांड और बजट को ध्यान में रखखर टैंक बनाए जाते हैं,  जिनमें पानी भरकर मछलियां पाली जाती हैं। यह तरीका तालाब में मछली पालन करने से काफी सस्ता पड़ता है। टैंक सिस्टम में बायोफ्लॉक बैक्टीरिया का इस्तेमाल किया जाता है। ये बैक्टीरिया मछलियों के मल और फालतू भोजन को प्रोटीन सेल में बदल देते हैं और ये प्रोटीन सेल मछलियों के भोजन का काम करते हैं। दअसल टैंक विधि से मछली पालन करने पर मछलियों को दाना डाला जाता है, जिसके बाद मछलियां इसका सेवन करके उसका 75 प्रतिशत अपशिष्ट छोड़ती हैं। यह अपशिष्ट पानी के अंदर दाने के साथ टैंक की तली में बैठ जाता है। उसी अपशिष्ट को शुद्व करने के लिए बायोफ्लॉक का इस्तेमाल किया जाता है। यह बैक्टीरिया मछली के अपशिष्ट को प्रोटीन में बदल देता है, जिसे मछली खाती है। इस तरह से एक-तिहाई फीड की बचत होती है। बायोफ्लॉक विटामिन और खनिजों का भी अच्छा माध्यम है, खासकर फॉस्फोरस। इस तकनीक में पानी की बचत के साथ मछलियों के खाने की भी बचत होती है।

बायोफ्लॉक तकनीकी से मछली पालन में लागत और मुनाफा

जानकारी के लिए बता दें कि बायोफ्लॉक तकनीक के माध्यम से तिलिपियां, मांगूर, केवो, कमनकार जैसी कई प्रजाति की मछलियों का उत्पादन किया जा सकता है। इस तकनीक से किसान महज एक लाख रुपये खर्च कर प्रति वर्ष एक से दो लाख रुपए की कमाई कर सकते हैं। बायोफ्लॉक तकनीक में सिर्फ एक बार टैंक को बनाने में 70 से 80 हजार रुपए खर्च आता है। एक टैंक की लाइफ करीब 5 साल होती है। एक टैंक में मछली पालन की लागत करीब 30 हजार रुपये आती है और इससे करीब 3 क्विंटल मछली का उत्पादन होता है। साल में दो बार मछली पालन किया जा सकता है। उसके बाद पालन करने पर मछली पालन करने के छह महीने के बाद अच्छा मुनाफा मिलना शुरू हो जाता है।

फ्री ट्रेनिंग, लोन, सब्सिडी और बीमा

दरअसल केन्द्र सरकार ने देश में मत्स्यपालन के विकास की व्यापक संभावना को देखते हुए मत्स्यपालन क्षेत्र में “ब्लू रेवोल्यूशन” यानी नीली क्रांति योजना को शुरु किया था। सरकार इस योजना के तहत मत्स्यपालन क्षेत्र मछली पालन करने वालें किसानों को सब्सिडी देने का प्रावधान किया गया था। इस योजना के अंतर्गत सरकार द्वारा मछली पालन के क्षेत्र में कार्य करनें वाले लोगो को 3 लाख रुपये का ऋण प्रदान किया जा रहा है। साथ ही किसानों को मछली पालन के लिए फ्री में ट्रेनिंग भी दी जाती है। पीएमएमएसवाई योजना के अंतर्गत अनूसूचित जाति और महिलाओं को इस क्षेत्र में 60 प्रतिशत तक अनुदान दिया जाता है। वही अन्य सभी को 40 प्रतिशत तक का अनुदान दिया जाता है। बायोफ्लॉक तकनीकी से मछली पालन के खर्च का बोझ कम करने के लिये आप इस योजना के तहत भारत सरकार की प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत बायोफ्लॉक सिस्टम पर होने वाले खर्च का 60 फीसदी सब्सिडी के रूप में प्राप्त कर सकते है। 

तालाब में मछली पालन के पारंपरिक तरीके के मुकाबले बायोफ्लॉक तकनीक के कई लाभों को देखते हुए और मछली पालकों को इसका ज्यादा उत्पादन दिखाने के लिए इसे में पेश किया जा रहा है। यह तकनीक पहले ही कई राज्यों में अपनाई जा चुकी है और इस तकनीक से कई यूनिट सफलतापूर्वक चल रही है।

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