Banana farming : कम समय की नकदी फसल और बाजार में पूरे साल मांग में बनी रहने के कारण उत्तर प्रदेश के किसानों को केले की खेती (Banana farming) खूब रास आ रही है। प्रदेश के पूर्वांचल, अवध आदि क्षेत्रों के कुशीनगर, गोरखपुर, देवरिया, बस्ती, महाराजगंज, अयोध्या, गोंडा, बहराइच, अंबेडकर नगर, बाराबंकी, प्रतापगढ़, अमेठी, कौशाम्बी, सीतापुर और लखीमपुर जिलों में केले की खेती होती है। खास बात यह है कि किसानों को केले की खेती के लिए प्रोत्साहित करने हेतु सरकार द्वारा अच्छी खासी सब्सिडी भी दी जा रही है। केले की खेती से क्षेत्र के किसानों की आय बढ़ाने में मदद भी मिल रही है। किसान इसकी खेत कर साल में लाखों की आय अर्जित रहे हैं। आइए, योगी सरकार द्वारा केले की खेती पर किसानों को दी रही सब्सिडी की पूरी डिटेल्स जानते हैं।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सरकार (Yogi Government) द्वारा केले की प्रति हेक्टेयर खेती पर करीब 31,000 रुपए की दर से अनुदान दिया जाता है। पारदर्शी तरीके से अनुदान पर मिलने वाले कृषि उपकरणों का वितरण और सिंचाई के लिए अपेक्षाकृत प्रभावी ड्रिप (Drip) और स्प्रिंकलर (Sprinkler) और कृषि सोलर पंप (Solar Pump) पर मिलने वाले अनुदान के नाते किसानों का क्रेज केले जैसी नकदी फसलों की ओर तेजी से बढ़ा है। उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग, उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा केले की खेती पर अनुदान लाभ प्राप्त करने के लिए योजना का लाभ प्राप्त करने के लिए वेबसाइट upagriculture.com पर ऑनलाइन पंजीकरण कराना होता है। किसान जनसुविधा केन्द्र, कृषक लोकवाणी, साइबर कैफे आदि के माध्यम से यह पंजीकरण करा सकते हैं।
केले की खेती पर मिलने वाली सब्सिडी हेतु सभी वर्ग के किसान पात्र होंगे। हालांकि, इस अनुदान के लाभ हेतु सरकार द्वारा अनुसूचित जाति/जनजाति, पिछड़ी जाति एवं महिला लाभार्थियों को वरीयता दी जाती है। अनुदान योजना का लाभ लेने वाले पात्र लाभार्थी के पास स्वयं का सिंचाई साधन होना अनिवार्य होता है। आवेदन पत्र के साथ भू-अभिलेख संलग्न करना अनिवार्य होगा। लाभार्थी कृषक के पास स्वयं का बैंक खाता होना अनिवार्य है। लाभार्थी के पास पहचान हेतु वोटर कार्ड/राशन कार्ड/आधार कार्ड/पासपोर्ट में से कोई एक उपलब्ध होना चाहिए।
परंपरागत रूप से केला दक्षिण भारत की फसल है। हालांकि, कुछ दशक पूर्व महाराष्ट्र के भुसावल और इसके आसपास के कुछ क्षेत्रों में इसकी खेती शुरू हुई, तो भुसावल और केला (चित्तीदार) एक दूसरे के पर्याय बन गए। देखते-देखते भुसावल का हरी छाल केला (Green Bark Banana) पूरे उत्तर भारत के बाजार में छा गया। लगभग दो दशक पहले बिहार के नवगछिया के केले (banana) ने भुसावल के हरी छाल वाले केले को करीब-करीब बाजार से बाहर कर दिया। बिहार से सटे कुशीनगर के किसान बड़े पैमाने पर इसकी खेती कर रहे हैं। केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान रहमानखेड़ा, लखनऊ से मिले आंकड़ों के मुताबिक पूरे भारत में लगभग 3.5 करोड़ मीट्रिक टन केले का उत्पादन होता है। देश में केले की फसल का रकबा करीब 9,61,000 हेक्टेयर है। उत्तर प्रदेश में करीब 70 हजार हेक्टेयर रकबे में केले की खेती हो रही है, जिससे कुल उत्पादन 3.172 लाख मीट्रिक टन और प्रति हेक्टेयर पैदावार 45.73 मीट्रिक टन है।
केला आर्थिक दृष्टिकोण के साथ धार्मिक और पोषण के लिहाज से भी बेहद महत्वपूर्ण है. कोई भी धार्मिक अनुष्ठान केले और इसके पत्ते के बिना पूरा नहीं होता। केला रोज के नाश्ते के अलावा व्रत में भी खाया जाता है। केले के कच्चे, पके फल और तने से निकलने वाले रेशे से ढेर सारे सह उत्पाद बनने लगे हैं। बाजार में मौसमी फलों की उपलब्धता सीजन के कुछ महीनों तक रहती है, लेकिन केला उन चुनिंदा फलों में से है जो लगभग पूरे वर्ष उपलब्ध रहता है। अधिकांश फलों को खाने के लिए धोने, काटने की जरूरत होती है, लेकिन केले को बिना किसी समस्या के छीलकर खा सकते हैं।
केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान के निदेशक डॉ. दामोदरन तुकाराम के मुताबिक, केला पोषण के लिहाज से भी खासा महत्त्वपूर्ण है। केले में अन्य पोषक तत्वों के अलावा भरपूर मात्रा में पोटेशियम, कार्बोहाइड्रेट, फाइबर, एंटीऑक्सीडेंट होता है। यह विटामिन B-6 का भी अच्छा स्रोत है। पोटेशियम हृदय की सेहत, विशेष रूप से रक्तचाप (ब्लड प्रेशर) प्रबंधन के लिए महत्वपूर्ण है। पोटेशियम युक्त आहार ब्लड प्रेशर को प्रबंधित करने और उच्च रक्तचाप की जोखिम को कम करने में सहायक हो सकता है। यह हृदय रोग का जोखिम 27 प्रतिशत तक कम कर सकता है।
आईसीएआर-सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ फॉर सबट्रॉपिकल हॉर्टिकल्चर के प्रधान वैज्ञानिक प्रभात कुमार शुक्ला के अनुसार केले से प्राप्त विटामिन बी-6 आसानी से शरीर में अवशोषित हो जाता है। एक मीडियम साईज का केला दैनिक विटामिन B-6 की जरूरतों का लगभग एक चौथाई प्रदान कर सकता है। यह विटामिन लाल रक्त कोशिकाओं के उत्पादन, कार्बोहाइड्रेट और वसा के चयापचय के लिए आवश्यक है। यह उन्हें ऊर्जा में बदलता है, यकृत और गुर्दे से अवांछित रसायनों को हटाता है और एक स्वस्थ तंत्रिका तंत्र को बनाए रखता है।
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