गन्ना, भारत की महत्वपूर्ण वाणिज्यिक फसलों में से एक है। नगदी फसलों में इसका स्थान प्रमुख है। गन्ने की खेती बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार देती है और विदेशी मुद्रा प्राप्त करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसका इस्तेमाल चीनी, गुड़, आदि के निर्माण में होता हैं। भारत में गन्ने की खेती काफी बडे पैमाने पर प्राचानी काल से ही होते आ रही है। देश की केंद्र और कई राज्य सरकारें गन्ने का उत्पादन बढ़ाने के लिए किसानों को प्रोत्साहित कर रहे है। इसके लिए राज्य सरकारें अपने-अपने स्तर पर योजनाएं भी चला रही है। इस क्रम में हरियाणा सरकार राज्य में गन्ना उत्पादन को बढ़ने के लिए एक योजना लेकर आई है, जिसके तहत टपका सिंचाई से गन्ने की खेती करने पर सब्सिडी दी जा रही है और साथ ही राज्य में गन्ना की खोई से एथेनॉल बनाने के लिए प्लांट का कार्य भी चल रहा है। क्योंकि भारत गन्ना उत्पादन का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। जिस वजह से देश में गन्ने की मांग भी काफी अधिक रहती है। हरियाणा राज्य के कई क्षेत्रों में इसकी खेती मुख्य फसल के तौर पर की जाती है। जिसके लिए सरकार भी किसानों को बढ़ावा देती हैं।
गन्ना कृषि विशेषज्ञ बताते हैं कि गन्ने की पारंपरिक खेती में सिंचाई पुरानी तकनीक से की जाती है, जिस वजह से गन्ने की खेती में लागत अधिक होती है और उत्पादन कम आता है। लेकिन आज के इस आधुनिक दौर में नई सिंचाई तकनीक एवं मशीनों से इसकी खेती की लागत में कमी हुई है। किसानों को कम समय में क्वालिटी उत्पादन के लिए इसकी खेती में टपक सिंचाई यानि ड्रिप सिंचाई तकनीक का इस्तेमाल करना चाहिए। इसके लिए प्रदेश सरकार ने गन्ना की खेती में टपक सिंचाई तकनीक का इस्तेमाल करने के लिए ’प्रति बूंद अधिक फसल स्कीम’ चलाई है, जिसके तहत किसानों को 85 प्रतिशत तक सब्सिडी दी जा रही है। इसके अलाव किसानों को वाटर टैंक बनाने के लिए 75 से 85 प्रतिशत तक सब्सिडी और सोलर पंप लगाने के लिए 75 फीसदी की सब्सिडी भी सरकार की तरफ से दी जा रही है। यदि आप भी ’प्रति बूंद अधिक फसल स्कीम’ का लाभ लेने चाहते हैं, तो योजना की आधिकारिक वेबसाइट https://micada.haryana.gov.in/home पर जाकर आवेदन कर लाभ उठा सकते हैं।
गन्ने के अच्छे उत्पादन के लिए किसानों को इसकी खेती करने में कई तरह के चुनौती पूर्ण कार्य करने होते है, जिनमें गन्ने की बुुवाई से लेकर फसल निगरानी, उर्वरक, सिंचाई एवं कटाई तक में किसानों को कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। कई बार तो गन्ने के खेत में जलभराव होने से फसल भी खराब हो जाती है। इसलिए कृषि विशेषज्ञ गन्ने की खेती में सिंचाई के लिए टपका सिंचाई (ड्रिप सिंचाई) करने की सुझाव देते है। क्योंकि रिसर्च में सामने आया है कि गन्ने की फसलों में ड्रिप सिंचाई (टपका सिंचाई) करने से उनकी उत्पादकता और उत्पादन काफी बेहतर हो जाता है।
प्रदेश सरकार राज्य में सिंचाई की परंपरागत पद्धति के कारण भूमिगत जल के स्तर पर पड़ रहे प्रभाव को लेकर किसानों को जारूक करने एवं कृषि के क्षेत्र में भूमिगत जल के दोहन को कम करने के लिए ’प्रति बूंद अधिक फसल स्कीम की शुरूआत की है। इस योजना के तहत किसानों को ड्रिप के सही इस्तेमाल से जल की एक-एक बूंद को सिंचाई के काम में लेने के लिए जागरूक किया जाएंगा। किसानों को इसे अपनाने के लिए राज्य सरकार की ओर से 85 प्रतिशत सब्सिडी भी दी जाएंगी। ड्रिप पद्धति से कम पानी में अधिक पैदावार लेना।
राज्य कृषि विभाग के कृषि विशेषज्ञ का कहना है कि ड्रिप इरिगेशन सिंचाई पद्धति के इस्तेमाल से समय और मजदूरी में होने वाला खर्च में कमी होती है। पौधों के जड़ क्षेत्र में पानी सदैव पर्याप्त मात्र में रहता है। इस सिंचाई विधि से जमीन में जल की मात्र उचित क्षमता स्थिति पर बनी रहने से पौधों में वृद्धि तेजी से और एक समान रूप से होती है। इस सिंचाई प्रणाली में अनुपजाऊ भूमि को उपजाऊ भूमि में परिवर्तित करने की क्षमता होती है। कृषि विशेषज्ञ का कहना है कि इस विधि से गन्ना फसलों में उतने ही जल एवं उर्वरक की आपूर्ति की जाती है। जितनी फसल के लिए आवश्यक होती है।
ड्रिप सिंचाई से ऊबड़-खाबड़ जमीन पर गन्नें खेती हेतु उपयोग में लाई जा सकती है। उत्पादकता और गुणवत्तारू इस सिंचाई पद्धति में पेड़-पौधों को प्रतिदिन जरूरी मात्रा में पानी मिलता है। फलस्वरूप फसलों की बढ़ोतरी व उत्पादन दोनों में वृद्धि होती है। इस सिंचाई विधि में कीटनाशकों एवं कवकनाशकों के धुलने की संभावना न के बराबर होती है। जिससे फसलों की पैदावार 50 प्रतिशत बढ़ जाती है। पारम्परिक सिंचाई की तुलना में इस सिंचाई पद्धति से 70 प्रतिशत तक जल की बचत की जा सकती है। एवं यह सिंचाई पद्धति खरपतवार नियंत्रण में अत्यन्त ही सहायक होती है। क्योंकि सीमित सतह नमी के कारण खरपतवार कम उगते हैं। जल की कमी वाले क्षेत्रों के लिए यह सिंचाई विधि अत्यन्त ही लाभकर होती है। टपका सिंचाई से जल के साथ-साथ उर्वरकों को अनावश्यक बर्बादी से रोका जा सकता है। एवं गन्ने की फसल की तीव्र वृद्धि होती है, फलस्वरूप फसल शीघ्र परिपक्व होती है।
राज्य के कृषि एक्सपर्ट्स का कहना हैं कि टपका सिंचाई के लिए राज्य एवं केंद्र कृषि विभाग दोनों मिलकर किसानों को टपका सिंचाई के लिए 50 से 80 प्रतिशत सब्सिडी देती है। यह सब्सिडी केंद्र सरकार की पीएम सिंचाई योजना के तहत दी जाती है। इसमे केन्द्र सरकार का हिस्सा 60 प्रतिशत और राज्य सरकार का 40 प्रतिशत होता है। बता दें कि केन्द्र सरकार अपनी इस योजना में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और महिला किसानों को 55 प्रतिशत तथा अन्य काश्तकारों के लिए 45 प्रतिशत अनुदान देती है।
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