फ्रूट राइपनिंग तकनीक (Fruit Ripening Technique) : दरअसल तेजी से बढ़ती जनसंख्या की वजह से देश-विदेश में फल-सब्जी की डिमांड बढ़ी है। इस वजह से बागवानी किसानों के लिए काफी हद तक फायदेमंद भी साबित हो रही है। लोग बागवानी की ओर अपना रूख तेजी से करते नजर आ रहे है। बागवानी के क्षेत्र को विस्तृत करने के लिए केंद्र और राज्य सरकारें भी तमाम योजनाओं के माध्यम से किसानों को आर्थिक मदद पहुंचा रही है। फल-सब्जियों की बागवानी के साथ-साथ उनकी पैकेजिंग और मार्केटिंग जैसे चुनौती पूर्ण काम के लिए कृषि वैज्ञानिक नई-नई तकनीकों को इजाद कर रहे है। देश के हर राज्य में कोल्ड स्टोरेज और पैक हाउसेस बनाए जा रहे हैं, जिससे की फल-सब्जियों को स्टोर किया जा सके। ऐसे में फसल उत्पादन के बाद किसानों की सबसे बड़ी समस्या होती है कि उत्पाद को कैसे सड़ने गलने से बचाया जाए। क्योंकि फल व सब्जियों की लाइफ बहुत ही कम होती है। लंबी दूरी वाली जगहों पर इनके खराब होने की संभावना अधिक रहती है। इन्हीं को ध्यान में रखते हुए देश के वैज्ञानिकों ने एक ऐसी तकनीक को विकसित किया है, जिसके माध्यम से कच्चे फलों की तुड़ाई के बाद स्टोरेज में ही पकाया जा सकता है। वैज्ञानिकों ने इस तकनीक को फ्रूट राइपनिंग नाम दिया है। इस तकनीक से किसानों को फल-सब्जियों में तुडाई या कटाई के उपरांत सड़ने-गलने की समस्या से होने वाले बड़े नुकसान से राहत मिलेंगी। फलों की तुड़ाई के बाद उनकी पैकेजिंग और मार्केटिंग के लिए लंबे समय तक स्टोरेज कर सकते है। आइए ट्रैक्टरगुरू के इस लेख के माध्यम से इस तकनीक और इस पर सरकार से मिलने वाली आर्थिक मदद के बारे में विस्तार से जानते है।
सरकार ने बागवानी मे फल- सब्जियों के नुकसान को कम करने के लिए एक योजना बनाई है, जिसके तहत अब लगभग हर राज्य में कोल्ड स्टोरेज और पैक हाउस की सुविधा दी जा रही है, ताकि फल- सब्जियों की फसलों को सही तापमान मिलता रहे। इसके अलावा बागवानी में कीड़े और बीमारियों की रोकथाम के उपाय के लिए भी लगातार योजना बनाती है। इसके बावजूद भी किसानों को बागवानी में काफी बड़े नुकसान का समान करना पड़ता है। क्योंकि बागवानी में फल और सब्जियों के नुकसान की संभावना काफी ज्यादा होती है। तुड़ाई के बाद फल-सब्जियों को सही समय में बाजार में न भेजा जाए तो सड़ने-गलने की समस्या पैदा हो जाती है। ऐसे में किसानों को सबसे ज्यादा नुकसान कटाई या तुड़ाई उपरांत सही प्रबंधन न करने के कारण होता है। ऐसे में फलों को पकाने वाली कृत्रिम तकनीक फ्रूट राइपनिंग व्यापारियों और किसानों के लिए लिए किसी वरदान से कम नहीं है। फलों को पकाने वाली यह नई तकनीक किसानों का नुकसान कम करने में काफी फायदेमंद साबित हो रही है। इस नई तकनीक से व्यापारियों और किसानों का नुकसान कम हुआ है।
अक्सर किसानों को फलों ट्रांसपोर्टेशन के जरिए मंडी पहुंचाने में भी काफी समय बर्बाद होता है, जिसका खामियाजा किसान को उठाना पड़ता है। फलों के ग्रेडिंग और पैकजिंग के दौरान फल में दाग धब्बे लगे होते हैं, तो उसका सही दाम किसानों को नहीं मिल पाता है। क्योंकि फलों की सेल्फ लाइफ की कम होती है, जिसकी वजह से फलों सुरक्षित रखना ही मुश्किल हो जाता है। लेकिन अब फ्रूट राइपनिंग तकनीक के जरिए फलों पर दाग भी नहीं आते हैं और बिना सड़े- गले लंबे वक्त तक स्टोर किए जा सकते हैं। और बढ़ती फल-सब्जी डिमांड के दौरान इन्हें बाजार में बेच सकते है, जो व्यापारियों और किसानों को लिए फायदेमंद भी साबित होगी।
फलों की बागवानी करने वाले अधिकतर किसान ट्रांसपोर्टेशन और भंडारण के दौरान फलों की कटाई या तुडाई के उपरांत उन्हें पकाने के लिए पारंपरिक व जैविक तकनीक का उपायोग करते है। जिसमें फलों को जूट की बोरी में भूसे व कागज के साथ दबाकर रखा जाता है। फल पकाने का पुराना तरीका बेशक सस्ता है, लेकिन इस तकनीक में फलों के खराब होने का जोखिम भी बना रहता है। इस तकनीक में फलों की सेल्फ लाइफ बहुत ही कम हो जाती है। जिससें पुरानी फलों को पकाने वाली तकनीकों से किसानों को भारी नुकसान हो रहा है।
आज के इस आधुनिक दौर में कृषि क्षेत्र में नई कृषि तकनीक और आधुनिकीकरण को बढ़ावा देने के लिए केंद्र एवं राज्य सरकारें विभिन्न सब्सिडी योजनाएं चला रही है, जिसमें फुड प्रोसेसिंग यूनिट लगाने के लिए 30 से 50 फीसदी तक सब्सिडी का प्रावधान है। ये आर्थिक अनुदान कोल्ड स्टोरेज के निर्माण और कटाई-तुड़ाई उपरांत फसलों का प्रबंधन करने के लिये दिये जाते हैं। इसके अलावा किसान एग्रीकल्चर इंफ्रास्ट्रक्चर फंड स्कीम और एग्री बिजनेस के माध्यम से कोल्ड स्टोरेज खोल सकते हैं, और खुद का कोल्ड स्टोरेज का बिजनेस भी कर सकते हैं।
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