Kharif season sesame farming : उत्तर पश्चिम भारत के मैदानी इलाकों में किसानों द्वारा खरीफ फसलों में धान, मक्का, बाजरा, ज्वार, मूंग समेत तिल की बुवाई प्रमुखता से की जाती है। लेकिन, गत वर्ष से बिहार राज्य के किसानों की रूची भी तिल की खेती की ओर बढ़ रही है। इसके पीछे की वजह यह है कि धान-गेहूं जैसी पारंपरिक फसलों की तुलना में तिल कम लागत पर तगड़ा मुनाफा देने वाली एक तिहलन फसल है। साथ ही इसका एमएसपी भी अन्य फसलों से कहीं अधिक होता है। इसके अलावा बिहार सरकार राज्य में तिल उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए तिल की खेती करने के लिए किसानों को प्रोत्साहित भी कर रही है। इसके लिए राज्य सरकार किसानों को तिल के विभिन्न प्रभेदों के बीज अनुदान पर उपलब्ध करा रही है। ऐसे में अगर आप राज्य के निवासी है, तो तिल की खेती से तगड़ी कमाई कर सकते हैं। इसकी खेती से तगड़ा उत्पादन लेने के लिए आप नीचे बताए जा रहे तरीके से तिल की खेती कर सकते हैं।
बता दें कि बिहार के गया जिले का तिलकुट पूरे देश में प्रसिद्ध है। यहां के कुशल कारीगरों द्वारा तैयार तिलकुट की मांग भारत ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी अधिक है। हालांकि, बिहार में तिल का उत्पादन कम होने के कारण तिलकुट बनाने के लिए राज्य का गया जिला तिल आपूर्ति के लिए राजस्थान, गुजरात जैसे अन्य दूसरे तिल उत्पादक राज्यों पर निर्भर रहता है। इसी को देखते हुए अब बिहार सरकार द्वारा राज्य में ही तिल की खेती को प्रोत्साहन दिया जा रहा है, जिससे तिल का उत्पादन और उत्पादकता को बढ़ाया जा सके।
कृषि सचिव ने बताया कि दूसरे राज्यों पर निर्भरता को दूर करने के लिए कृषि विभाग द्वारा गरमा वर्ष 2023 में गया जिले में बड़े पैमाने पर तिल उत्पादन का लक्ष्य रखा गया था। इसके लिए राज्य सरकार द्वारा किसानों को खाद्य एवं पोषण सुरक्षा-कृषोन्नति योजना (एन.एफ.एस.एम.) और राज्य योजना के अंतर्गत तिल प्रभेद जी.टी.-5 के 50 क्विंटल बीज अनुदानित दर पर किसानों को उपलब्ध कराया गया।
कृषि सचिव ने कहा कि खाद्य एवं पोषण सुरक्षा- कृषोन्नति योजना (एन.एफ.एस.एम.) के तहत गत गरमा मौसम में 24 क्विंटल गरमा तिल के बीज का वितरण किसानों के बीच किया गया है। लगभग 600 हेक्टेयर क्षेत्र में गरमा तिल की खेती की गई थी। औसतन 10 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज प्राप्त किया गया। तिलकुट व्यवसाय से जुड़े व्यापारियों ने किसानों से संपर्क कर औसतन 140-180 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से तिल की खरीदी की थी, जो कि तिल के न्यूनतम समर्थन मूल्य से अधिक रही। वर्ष 2023-24 में तिल का समर्थन मूल्य 8635 रुपए प्रति क्विंटल था।
कृषि विभाग के सचिव ने बताया कि पिछले साल 2023 में गरमा मौसम में तिल की खेती की सफलता को देखते हुए कृषि विभाग द्वारा एन.एफ.एस.एम योजना और राज्य योजना के अंतर्गत किसानों को अनुदान पर बीज उपलब्ध कराया गया है। गरमा सीजन, वर्ष 2024 में लगभग 1300 हेक्टेयर क्षेत्र में तिल का खेती का लक्ष्य रखा गया है। इनमें राज्य के गया जिला के गुरारू, शेरघाटी, परैया, टेकारी, मोहनपुर एवं टनकुप्पा समेत सभी प्रखण्डों में तिल की खेती की जा रही है। उन्होंने कहा कि मगध प्रमंडल के जिलों में गरमा मौसम में तिल की खेती का प्रत्यक्षण किया जा रहा है, इससे तिल उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा। आने वाले समय में गया जिले के तिलकुट के लिए तिल की आपूर्ति राज्य से ही संभव हो सकेगी।
कृषि विभाग के अनुसार, तिल की खेती भी महत्वपू्र्ण खरीफ फसलों में से एक है। इसकी खेती के लिए किसी खास उपजाऊ भूमि की जरूरत नहीं होती। रेतीली-दोमट मिट्टी वाली भूमि में तिल की बुवाई कर सकते हैं। देश के महाराष्ट्र, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, गुजरात, तमिलनाडू, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश व तेलांगाना में तिल की खेती सह फसल के रूप में होती है। इसके अलावा, उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड में तिल की खेती मुख्य फसल के रूप में की जाती है। वर्ष में तिल की खेती तीन बार होती है, लेकिन खरीफ मौसम के दौरान इसकी खेती करने से किसान काफी बेहतर मुनाफा कमा सकते हैं। आमतौर पर जुलाई के महीने में तिल की खेती की बुवाई की जाती है। इसकी खेती के लिए अच्छी किस्म के बीजों का उपयोग करना चाहिए। बीजों की बुवाई से पहले बीजोपचार जरूर कर लेना चाहिए। तिल की बुवाई कतारों में करें और कतारों से कतारों तथा पौधे से पौधे की बीच 30 X 10 की दूरी रखते हुए करनी चाहिए। इससे फसल में खरपतवार नियंत्रण के लिए निराई-गुड़ाई करने में आसानी रहेगी।
तिल की बुवाई के लिए खेतों को तैयार करते समय आखिरी जुताई के वक्त भूमि में 90 से 100 क्विंटल गोबर कंपोस्ट खाद को मिला दें। इसके साथ ही 30 किलोग्राम नत्रजन, 15 किग्रा. फास्फोरस और 25 किग्रा. गंधक को प्रति हेक्टेयर की दर से खेतों में डालें। नत्रजन की आधी मात्रा का उपयोग बुवाई के वक्त और आधी मात्रा का प्रयोग फसल की निराई-गुड़ाई के समय खेत में करें। खरीफ मौसम में तिल की फसल को अधिक सिंचाई की जरूरत नहीं होती। इस समय बारिश का सीजन रहता है और बारिश के पानी से ही फसल की सिंचाई पूर्ति हो जाती है। लेकिन कम बारिश की स्थिति में खेतों में आवश्यकतानुसार सिंचाई कर देनी चाहिए। वहीं, जब फसल आधी पककर तैयार हो जाए तो आखिरी सिंचाई लगा दे। तिल की फसल को कीड़ों और रोगों से बचाने के लिए नीम से बने जैविक कीटनाशक का इस्तेमाल करना चाहिए। जब तिल के पौधों की पत्तियां पीली होकर गिरने लगें, तब ही तिल की कटाई करनी चाहिए। फसल कटाई जड़ों से ऊपर-ऊपर करनी चाहिए।
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