मूंगफली की खेती : भारत में दक्षिण-पश्चिम मानसून की एंट्री हो चुकी है और यह कर्नाटक, रायलसीमा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल के पश्चिमी-मध्य व उत्तर-पश्चिमी हिस्सों में पहुंच चुका है। साथ ही यह तेजी से देश के अन्य राज्यों की ओर भी बढ़ रहा है, तो वहीं, कई राज्यों में मानसून की पहली बारिश के साथ ही किसानों ने खरीफ मौसम में मूंगफली, कपास, धान और सब्जी फसलों की खेती की तैयारी भी शुरू कर दी है। खरीफ सीजन में उगाई जाने वाली मुख्य फसलों में मूंगफली भी एक है और इसकी खेती देश के कई राज्यों में किसानों द्वारा बहुतायत से की जाती है। मूंगफली की बुवाई जून महीने के प्रथम सप्ताह से द्वितीय सप्ताह तक की जाती है।
अगर आप भी किसान हैं और मूंगफली की खेती से बंपर उत्पादन कर शानदार कमाई करना चाहते हैं, तो इसकी खेती के लिए इन टॉप 5 किस्मों का चयन कर सकते हैं। यह 20 से 36 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक की बंपर पैदावार देने वाली मूंगफली की उन्नत किस्में है। इनकी खेती कर किसान करीब 4 माह में अच्छी कमाई प्राप्त कर सकते हैं। साथ ही ग्राह्य परीक्षण केंद्र तबीजी फार्म द्वारा मूंगफली का उत्पादन बढ़ाने एवं फसल को कीटों व रोगों से बचाव के लिए सलाह भी जारी की गई है। किसान इसके अनुसार मूंगफली की खेती (Peanut Cultivation) कर अधिक पैदावार हासिल कर सकते हैं। आइए, मूंगफली की अधिक पैदावार देने वाली इन टॉप 5 किस्मों के बारे में विस्तार से जानते हैं।
मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, राजस्थान, पंजाब, गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल राज्य में मूंगफली की खेती प्रमुख रूप से की जाती है। यह खरीफ और जायद दोनों सीजन में उगाई जाने वाली तिलहन फसल है। लेकिन देश के इन राज्यों में इसकी खेती विशेष रूप से खरीफ सीजन में मानसून के दौरान की जाती है। मूंगफली की खेती के लिए पहले खेतों में 3 से 4 बार जुताई कर मिट्टी का समतलीकरण किया जाता है। इसके बाद खेत में आवश्यकता अनुसार जैविक खाद (गोबर/वर्मीकंपोस्ट), रासायनिक उर्वरक तथा अन्य पोषक तत्वों का भी प्रयोग करना चाहिए ताकि इससे फसल से अच्छी पैदावार मिल सके। खेत तैयारी के बाद मूंगफली की बुवाई के लिए बीजों को फोरेट 10 जी या कार्बोफ्यूरान 3 जी से 20 से 25 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर की दर से उपचारित करना चाहिए, जिससे सफेद लट और दीमक का प्रकोप फसल में न हो पाए। इसकी खेती के लिए हमेशा उन्नत किस्मों और बीजों का उपयोग किसानों को करना चाहिए । मूंगफली की खेती के लिए गुच्छेदार प्रजातियों की बुवाई के लिए प्रति हेक्टेयर 60 से 70 किलोग्राम और फैलने तथा अर्द्ध फैलने वाली किस्मों के लिए 55 से 60 किलोग्राम बीज दर का इस्तेमाल करें।
किसान भाई अपने खेत की मिट्टी और क्षेत्र की जलवायु तथा पानी के मुताबिक मूंगफली की खेती के लिए नीचे दी जा रही इन टॉप 5 किस्मों का चयन कर खेतों में बुवाई कर सकते हैं। किस्मों का चयन करने से पहले अपने खेत की मिट्टी जांच अवश्य रूप से करा लेनी चाहिए। इससे पोषक तत्वों एवं खाद-उर्वरक के उचित प्रयोग करने में मदद मिलेगी।
मूंगफली की यह एक उन्नत किस्म है। यह खरीफ मौसम की मूंगफली किस्म (Peanut Varieties) है। आरजी-425 किस्म को राज दुर्गा नाम से भी जाना जाता है। बीजों की बुवाई के 120 से 125 दिनों के पश्चात फसल पककर कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इस किस्म की औसत पैदावार क्षमता 20 से 36 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की है। यह मध्यम रूप से फैलने वाली किस्म है और यह सूखे के प्रति सहनशील है तथा रंग सड़न रोग प्रतिरोधी है।
मूंगफली की टीजी 37 ए (TG-37A) किस्म की पकावन अवधि 122 से 125 दिनों की है। वर्ष 2004 में अधिसूचित यह किस्म कम फैलाव और छोटे आकार वाली प्रजाति है। इस किस्म के दाने में तेल की मात्र करीब 51 प्रतिशत तक पाई जाती है। टीजी 37 ए (TG-37A) किस्म की पैदावार क्षमता 18 से 20 क्विंटल हेक्टेयर की होती है। इस किस्म की खेती तेल उत्पादन उद्देश्य के लिए उपयुक्त मानी गई है।
जेएल 501 (JL 501) किस्म 120 से 125 दिन पश्चात पककर कटाई के लिए तैयार हो जाती है। मूंगफली की इस किस्म की पैदावार क्षमता 20 से 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। जेएल 501 के दाने में तेल की मात्रा 51 फीसदी तक पाई जाती है।
डीएच-86 किस्म की खेती खरीफ और जायद दोनों मौसम में की जा सकती है। इस किस्म की मूंगफली के बीज में 45 प्रतिशत तेल की मात्रा पाई जाती है और 26 प्रतिशत प्रोटीन की मात्रा होती है। यह बुवाई के 120 से 125 दिन के बाद खुदाई के लिए तैयार हो जाती है। मूंगफली की इस प्रजाति की औसतन पैदावार 15 से 20 क्विंवटल प्रति हेक्टेयर तक है।
मूंगफली की यह किस्म अधिक बारिश वाली जगहों के लिए अधिसूचित की गई है। एच.एन.जी.10 किस्म पकवार अवधि 125 से 130 दिन की है। इसकी औसत उत्पादन 20 से 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की है।
ग्राहृय परीक्षण केन्द्र तबीजी फार्म के उप निदेशक कृषि (शस्य) मनोज कुमार शर्मा के अनुसार, मूंगफली का उत्पादन एवं उत्पादकता बढाने के लिए उन्नत शष्य क्रियाओं के साथ-साथ फसल को कीटों व रोगों से बचाना भी अति आवश्यक है। फसल में दीमक, सफेद लट, गलकट, टिक्का (पत्ती धब्बा) व विषाणु गुच्छा आदि कई अन्य हानि कारक कीट व रोगों का प्रकोप होता हैं। इनमें से सफेद लट व गलकट (कॉलर रॉट) रोग के कारण फसल को सर्वाधिक हानि होती हैं। मूंगफली की फसल (Peanut crop) को कीटों व रोगों से बचाने के लिए विभागीय सिफारिशों के अनुसार बीजोपचार करें। तबीजी फार्म के कृषि अनुसंधान अधिकारी (पौध व्याधि) डॉ. जितेन्द्र शर्मा बताते है कि गलकट रोग से समुचित बचाव के लिए मृदा उपचार, बीजोपचार एवं रोग प्रतिरोधक किस्मों का उपयोग करना चाहिए। बुवाई से पहले 2.5 किलोग्राम ट्राइकोडर्मा 500 किलो गोबर में मिलाकर एक हेक्टेयर क्षेत्र में मिलाए।
Website - TractorGuru.in
Instagram - https://bit.ly/3wcqzqM
FaceBook - https://bit.ly/3KUyG0y