बाजरे की टॉप 5 उन्नत किस्में : कम लागत में मिलेगी अच्छी पैदावार

पोस्ट -15 जून 2024 शेयर पोस्ट

बाजरे की उन्नत किस्मों की विशेषताएं, उत्पादकता और पैदावार अवधि की पूरी जानकारी

खरीफ सीजन की प्रमुख फसल बाजरे की बुवाई का समय 15 जून से शुरू हो जाएगा। जिन किसानों के पास सिंचाई की सुविधा है वे किसान 15 जून के बाद बाजरे की बुवाई कर देते हैं। वहीं जो किसान बारिश पर आश्रित होते हैं वे पहली या दूसरी बारिश के बाद बाजरे की बुवाई करते हैं। इसमें कई बार बारिश की देरी के कारण बुवाई में विलंब हो जाता है। कृषि विशेषज्ञ बारिश पर आश्रित किसानों को सलाह देते हैं कि अगर संभव हो तो प्री मानसून की बारिश के बाद बाजरे की बुवाई कर देनी चाहिए। अगर मानसून की बारिश का दौर शुरू हो जाता है और लगातार बारिश होती है तो किसान के लिए बाजरे की बुवाई एक कठिन कार्य हो जाता है, क्योंकि उसे बारिश रुकने का इंतजार करना होता है। वहीं, अगर बुवाई के तुरंत बाद फिर बारिश हो जाती है तो उसकी मेहनत पर पानी फिर जाता है। यदि किसान ज्यादा बारिश के बाद खेत में बाजरे की बुवाई करता है तो उसे बेहतर उत्पादन नहीं मिलता है। कई बार तो फसल का अंकुरण तक नहीं होता है। ऐसे में सही समय पर बाजरे की बुवाई का बड़ा महत्व है। बाजरे की बुवाई का सबसे सही समय जुलाई का पहला पखवाड़ा माना जाता है। किसान भाई खरीफ सीजन 2024 में बाजरे की उन्नत किस्म की बुवाई से बेहतर पैदावार प्राप्त कर सकते हैं। आइए, ट्रैक्टर गुरु की इस पोस्ट में बाजरे की टॉप 5 उन्नत किस्म 2024 के बारे में विस्तार से जानते हैं।

भारत में बाजरे की खेती (Millet cultivation in India)

भारत में बाजरे की खेती सबसे ज्यादा राजस्थान में होती है। इसके अलावा उत्तरप्रदेश, हरियाणा, गुजरात, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडू, आंधप्रदेश, जम्मू-कश्मीर आदि राज्यों में इसकी खेती की जाती है। श्रीअन्न में शामिल बाजरा पोषक तत्वों से भरपूर एक मोटा अनाज है जिसकी खेती को सरकार प्रोत्साहित कर रही है। बाजरे की खेती कम पानी, कम लागत में की जा सकती है। जिन इलाकों में खरीफ सीजन के दौरान धान, मक्का आदि फसले नहीं उगाई जा सकती, वहां बाजरे की खेती की जाती है। बाजरे की खेती में कम पानी की आवश्यकता होती है और यह फसल अधिक तापमान को भी सहन करने की क्षमता रखती है। इसकी खेती का सही समय जुलाई से सितंबर का महीना है। दक्षिण भारतीय क्षेत्रों में बाजरे की बुवाई रबी सीजन के लिए अक्टूबर से नवंबर महीने में की जाती है। 

बाजरे की टॉप 5 उन्नत किस्म (Top 5 improved varieties of millet)

बाजरे की खेती के लिए राज्यों के अनुसार विभिन्न किस्में उपलब्ध है। यहां आपको बाजरे की टॉप 5 किस्मों के बारे में जानकारी दी जा रही है जो इस प्रकार है :

  • बाजरा किस्म पूसा कंपोजिट 701​
  • ​बाजरा किस्म एमपीएमएच -17​
  • बाजरा किस्म एचएचबी 67-2
  • बाजरा किस्म आरएचबी- 177​
  • बाजरा किस्म एचएचबी 299

बाजरा किस्म पूसा कंपोजिट 701​ (Millet variety Pusa Composite 701​)

बाजरे की यह किस्म 80 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इस किस्म से औसतन उपज 23.5 क्विंटल से 41.2 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक प्राप्त होती है। यह किस्म मृदु-रोमिल, असिता रोग के प्रति प्रतिरोधी है। सीमित सिंचाई में अच्छा उत्पादन देने वाली बाजरे की यह किस्म राजस्थान, गुजरात, हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और दिल्ली के लिए अनुकूल है। इसे 2016 में रिलीज किया गया था।

बाजरा किस्म एमपीएमएच -17 (Millet Variety MPMH -17)

बाजरे की यह किस्म पश्चिमी राजस्थान के सूखाग्रस्त क्षेत्रों में अधिक उत्पादन देने के लिए अनुकूल है। इस किस्म का सिट्टा बालोंयुक्त तथा दाना पीला-भूरा गोलाकार होता है, जो खाने में स्वादिष्ट होता है। बाजरे की यह किस्म 80 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इस किस्म से 26 से 28 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक की उपज प्राप्त की जा सकती है। इस किस्म में राजस्थान के देशी बाजरी के सभी गुण विद्यमान हैं।

बाजरा किस्म एचएच बी 67-2 (Millet Variety HH B 67-2)

बाजरे की यह किस्म 62-65 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। यह किस्म अगेती एवं पिछेती बुआई के लिए सबसे अधिक उपयुक्त है। किसान इसकी बुआई 4 किलो प्रति हेक्टेयर की बीज दर से कर सकते हैं। इस किस्म से 22 से 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से उपज प्राप्त की जा सकती है।

बाजरा किस्म आरए चबी- 177 (Millet Variety RA Chbi - 177)  

कृषि अनुसंधान केंद्र दुर्गापुरा, जयपुर ने इस संकर किस्म को विकसित किया है। अच्छे फुटान वाली इस किस्म की ऊंचाई 150-160 सेमी तथा सिट्टों की लंबाई 21-23 सेमी है। जोगिया रोगरोधी तथा 74 दिन में शीघ्र पकने वाली इस किस्म के अनाज की पैदावार 16 से 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तथा सूखे चारे की पैदावार 42-43 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। इसका सिट्टा बालोंयुक्त, बेलनाकार दानों से कसा हुआ, दाना हल्का भूरा गोलाकार होता है। यह सूखा सहन करने वाली किस्म है और शुष्क जलवायु वाले क्षेत्रों के लिए अत्यधिक उपयोगी है।

बाजरा किस्म एचएचबी 299 (Millet variety HHB 299)

हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय (एचएयू) द्वारा विकसित बाजरे की यह किस्म एक बायोफोर्टीफाइड किस्म है और मात्र 80 दिन में पककर तैयार हो जाती है। एचएचबी 299 एक अधिक लौह युक्त (73 पीपीएम) संकर बाजरा किस्म हैं। इसके दानों व सूखे चारे की औसत उपज क्रमश: 15.8 क्विंटल व 40-42 क्विंटल प्रति एकड़ है। अगर इस किस्म की खेती अच्छे रखरखाव के साथ् की जाए तो 19.6 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की पैदावार मिल सकती है।

बाजरे की अन्य उन्नत किस्में (Other improved varieties of millet)

उपरोक्त टॉप 5 बाजरा किस्मों के अलावा कई अन्य किस्में भी किसानों के बीच खूब लोकप्रिय है। इनमें पी.एच.बी. 13, 14, 15, एचबी 146, पूसा संकर बाजरा 1201, 1202, प्रोएग्रो 9001, 9450, ICTP 8203, हाइब्रिड 7, हाइब्रिड 12, ICMH 1201 आदि प्रमुख है। बाजरा की संकर प्रजातियों की उन्नत किस्मों में पूसा 23, पूसा 415, पूसा 605, पूसा 322, एचएचबी 50, एचएचबी 67, एचएचडी 68, एचएचबी 117, एचएचबी इंप्रूव्ड एवं संकुल प्रजातियां पूसा कंपोजिट 701, पूसा कंपोजिट 1201, आईसीटीपी 8202, राज बाजरा चारी 2 व राज 171 आदि प्रमुख हैं।

राजस्थान के लिए प्रमुख बाजरा किस्म : राजस्थान के लिए MPMH-17, HHB 67-2, RHB 177, HHB-299, RHB-234, 233, RHB 223, RHB-228 प्रमुख किस्में हैं।

मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, हरियाण, पंजाब, दिल्ली, गुजरात और राजस्थान के लिए प्रमुख बाजारा किस्म : के.वी.एच. 108 (एम.एच. 1737)​, ​जी.वी.एच. 905 (एम.एच. 1055)​, ​86 एम 89 (एम एच 1747)​, ​एम.पी.एम.एच 17 (एम.एच.1663)​, ​कवेरी सुपर वोस (एम.एच.1553)​, ​86 एम. 86 (एम. एच. 1684)​, ​86 एम. 86 (एम. एच. 1617)​, ​आर.एच.बी. 173 (एम.एच. 1446)​, ​एच.एच.बी. 223 (एम.एच. 1468)​, ​एम.वी.एच. 130।

सलाह : किसानों को सलाह दी जाती है कि अपने क्षेत्र में बाजरे की बुवाई करने से पहले स्थानीय कृषि विशेषज्ञ से जानकारी अवश्य प्राप्त करें।

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