Improved Varieties of Millet : गेहूं की फसल कटाई के बाद किसानों के खेत लगभग दो महीने तक खाली रहते हैं। वहीं, सिंचित क्षेत्र के किसान गेहूं की कटाई के बाद अपने खाली खेतों में अतिरिक्त आमदनी के लिए जायद सीजन फसल की खेती करते हैं। ऐसे में जिन किसानों के पास सिंचाई के पर्याप्त साधन उपलब्ध है वे सभी गर्मी के मौसम में ग्रीष्मकालीन बाजरे की खेती कर सकते हैं।
कृषि विश्वविद्यालयों के कृषि वैज्ञानिकों द्वारा ग्रीष्मकालीन (जायद सीजन) के लिए अधिक पैदावार देने वाली बाजरे की कुछ टॉप उन्नत किस्में विकसित की गई है, जिसकी किसान खेतों में इस समय बुवाई कर सकते हैं। बाजरे की खेती (millet farming) के लिए खेत में अच्छे जल निकास की व्यवस्था होनी चाहिए क्योंकि इसकी फसल अधिक जलभराव सहन नहीं कर सकती है। बाजरे की फसल उच्च तापक्रम और अम्लीयता को आसानी से सहन कर वृद्धि कर सकती है। इसके परागकण 46 डिग्री सेल्सियस तक के तापमान पर भी जीवित रह सकते हैं। सिंचित क्षेत्र के किसान जायद सीजन में बाजरे की खेती के लिए फसल की बोनी अप्रैल महीने के अंतिम पखवाड़े तक कर सकते हैं। आइए, वैज्ञानिकों द्वारा विकसित बाजरे (Millet) की उन्नत किस्मों और इसकी खेती कैसे करें आदि के बारे में जानते हैं।
बाजरे का पोषक अनाज फसलों में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। इसमें अन्य अनाज फसलों की तुलना में कहीं अधिक पोषक तत्व मौजूद होते हैं, इसमें मैग्नीशियम, पोटेशियम, लोहा, कैल्शियम और जस्ता जैसे पोषक तत्व शामिल है। बाजरे को विटामिन और फाइबर का अच्छा स्रोत माना जाता है, जिसके कारण वैश्विक बाजारों में इसके उत्पादन की मांग अधिक है। इसलिए भारत में ’’श्री अन्न योजना” के अंतर्गत ccc को बढ़ावा दिया जा रहा है। वहीं, कृषि विश्वविद्यालयों के कृषि वैज्ञानिकों द्वारा इसके उत्पादन को बढ़ाने के लिए आर-9251, टीजी-37, आर-8808, जी.एच.बी.-526, पी.बी. 180 किस्म को विकसित किया गया है। वहीं संकुल किस्मों में पूसा कंपोजिट- 383, आईसीटीपी 8203, राज. 171 व आई.सी.एम.वी. 221, जी.एच.बी 558, जी.एच.बी 86, एम- 52, डी.एच- 86, आईसीजीएस-44, आईसीजीएस-1 किस्मों को विकसित किया गया है। किसान ग्रीष्मकालीन बाजरे की खेती (Millet Cultivation) के लिए बजारे की इन उन्नत किस्मों की बुवाई शुरू कर सकते हैं।
बाजरा एक मोटे अनाज वाली मिलेट्स फसल है, जिसकी खेती सिंचित और असिंचित क्षेत्रों में आसानी से की जा सकती है। किसान इसकी खेती उन अम्लीयता युक्त क्षेत्रों में भी कर सकते हैं जहां गेहूं अथावा मक्का जैसी पारंपरिक फसल को नहीं उगाया जा सकता है। जायद सीजन में बाजरे की खेती के लिए दोमट या बलुई दोमट मिट्टी अच्छी रहती है। भली-भांति समतल व जीवांश वाली बलुई भूमि में बाजरा की खेती करने पर अधिक मात्रा में उत्पादन प्राप्त होता है। इसकी खेती के लिए भूमि में जल निकासी व्यवस्था अच्छी होनी चाहिए और भूमि का पीएच मान 5 से 7 के बीच अधिक उत्पादन के लिए उपयुक्त है।
बाजरे की खेती में इसके बीजों की बुवाई उचित दूरी पर ही करना आवश्यक होता है। बाजरे की खेती में बीज की मात्रा इसके किस्म, क्षेत्र आकार, अंकुरण प्रतिशत, बुवाई की विधि और बुआई के समय भूमि में उपस्थित नमी की मात्रा पर निर्भर करती है। आमतौर पर समय से बाजरे की खेती (Millet Cultivation) के लिए 4 से 5 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है। बाजरे की बुवाई के समय पंक्तियों में 45-50 सेमी. की दूरी और पौधे से पौधे की दूरी 15 से 20 सेमी. रखनी चाहिए। इसके बीजों को 2 सेमी से ज्यादा की गहराई में नहीं बोना चाहिए। बता दें कि बाजरा किसानों को दोहरा लाभ देने वाली फसल है। इसकी खेती से मानव आहार के लिए अनाज के साथ पशुओं के लिए कडबी (चारा) भी उपलब्ध हो जाता है।
बाजरे की खेती (Millet Cultivation) में इसके बीजों की बुआई करने से पहले कार्बण्डाजिम (बॉविस्टीन) 2 ग्राम अथवा एप्रोन 35 एस डी 6 ग्राम कवकनाशक दवाई प्रति किलो ग्राम बीज की दर से बीजों को उपचारित कर लेना चाहिए। इससे फसल पर लगने वाले रोगों को काफी हद तक कम किया जा सकता है और बीज अंकुरण प्रतिशत अच्छा होता है। आमतौर पर देश में बाजरे की खेती वर्षा ऋतु (मानसून) यानी खरीफ मौसम में की जाती है, लेकिन सिंचाई साधन अच्छे होने पर इसकी बुवाई वर्षा से पहले भी कर सकते हैं। अधिक बारिश वाले इलाकों में इसकी खेती से बचना चाहिए। बाजरा की फसल के लिए विशेष सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। तीन से चार सिंचाई में इसकी फसल तैयार हो जाती है। वहीं हरे चारे के लिए बाजरे की खेती 4 से 5 दिन के अंतराल में सिंचाई की आवश्यता होती है।
अगर किसान अपने खाली खेतों में अतिरिक्त कमाई के लिए ग्रीष्मकालीन बाजरे की खेती कर रहे हैं, तो उन्हें इसकी खेती को तैयार करते समय भूमि में 15 से 20 टन प्रति एकड़ की दर से पुरानी गोबर की खाद देनी चाहिए। वहीं, खेत की मिट्टी परीक्षण के अनुसार, फसल में रसायनिक खाद-उर्वरक का प्रयोग करने की सिफारिश की जाती है। ग्रीष्मकालीन बाजरे की खेती (Millet Cultivation) से अधिक उत्पादन के लिए किसान भाई 80 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40 किग्रा. फास्फोरस, 40 किग्रा. पोटाश और संकुल किस्मों में 60 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40 किलोग्राम फास्फोरस एवं 40 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से खाद-उर्वरक का प्रयोग करना चाहिए। बाजरे की खेती (Millet Cultivation) से पैदावार दो महीने में प्राप्त की जा सकती है। इसकी फसल बुवाई से 125 दिनों के बाद कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी उन्नत किस्मों से बाजरे की खेती करने पर इसके एक एकड़ खेती से औसत पैदावार 15 से 20 क्विंटल तक हो सकती है।
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