स्टीविया की खेती से होगी लाखों की कमाई - जानें खेती से जुड़ी सारी जानकारी

पोस्ट -21 अक्टूबर 2022 शेयर पोस्ट

जानें स्टीविया की खेती से जुड़ी खास बातें

देश भर में मधुमेह रोगियों का बढ़ना भले ही चिंता का विषय हो लेकिन किसानों के लिए यह आय बढ़ाने का एक बेहतर मौका साबित हो सकता है। आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी और अनियमित खान-पान के कारण भारत में 25 से 45 वर्ष की आयु वर्ग के 15% व्यक्ति मधुमेह रोग से पीड़ित है। इस संख्या में दिन प्रतिदिन वृद्धि होती जा रही है। यह समस्या केवल भारत तक ही सीमित नहीं है बल्कि पूरे विश्व में है। मधुमेह रोगियों के उपचार के लिए मधुपत्र, मधुपर्णी, हनी प्लांट या मीठी तुलसी (स्टीविया) की पत्तियों की मांग दिन प्रतिदिन बढ़ रही है। इसका मतलब यह है कि किसान स्टीविया की खेती करके अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं।

स्टीविया की पत्तियों में फाइबर और प्रोटीन की मात्रा सबसे अधिक होती है। इसके अलावा इसकी पत्तियों में फास्फोरस और कैल्शियम के साथ-साथ अन्य खनिज तत्व भी पाए जाते है। स्टीविया रोबाउदिआना मूल का मध्य पेरूग्वे का पौधा है, जो अक्सर ही प्राकृतिक रूप से तालाब और नालों के किनारे अपने आप उग आते है। इसका पौधों में चीनी की तुलना में तक़रीबन 25 से 30 गुना ज्यादा मिठास पाई जाती है, तथा पौधों से निकलने वाले रस में चीनी से 300 गुना ज्यादा मिठास पाई जाती है। किसान भाईयों आज ट्रैक्टर गुरु की इस पोस्ट के माध्यम से हम स्टीविया की खेती से जुड़ी सभी महत्वपूर्ण जानकारी पर विस्तार से चर्चा करेंगे।

भारत में स्टीविया की खेती करने वाले प्रमुख राज्य

भारत में दो दशक पहले स्टीविया की खेती शुरू हुई थी। हमारे देश में स्टीविया की खेती मुख्य रुप से बेंगलूरु, पुणे, इंदौर व रायपुर और उत्तर प्रदेश व महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में की जाती है। स्टीविया की खेती मूल रूप से पराग्वे में की जाती है। भारत के अलावा इसकी खेती पराग्वे, जापान, ताइवान, अमेरिका, कोरिया आदि देशों में होती है।

स्टीविया के औषधीय गुण

  • स्टीविया की पत्तियों का उपयोग करने से त्वचा पर होने वाले डर्मेटाइटिस और एक्जीमा रोग को ठीक करने में मदद करता है। 

  • स्टीविया की पत्तियों का उपयोग करने से हमारे रक्त में शर्करा के लेवल को नियंत्रित रखने में मदद करता है। 

  • स्टीविया की पत्तियों का उपयोग करने से केविटी और मसूड़ों के सूजन की समस्या को ठीक करता है।

  • स्टीविया की पत्ती चीनी से भी अधिक मीठी होती हैं, लेकिन इसमें कैलोरी की मात्रा बहुत कम होती है। जिससे आप कैंडी, कुकीज़ और केक आदि में चीजों में स्टीविया का इस्तेमाल कर सकते है, और मधुमेह रोगी बिना घबराए इसे खा सकते है, क्योंकि यह मधुमेह को बढ़ने नहीं देता है।

  • स्टीविया में मौजूद ग्लाइकोसाइड्स हमारे हृदय के लिए बहुत ही अच्छा होता है, यह हमारे हृदय को दिल के दौरे, स्ट्रोक और एथेरोस्क्लेरोसिस से बचाता है।

स्टीविया की खेती करते समय ध्यान रखने योग्य बातें

स्टीविया की खेती करते समय कुछ बातों का ध्यान रखना आवश्यक होता हैं। वो बाते निम्नलिखित हैं-

स्टीविया की खेती : उपयुक्त मिट्टी व जलवायु

स्टीविया की खेती करने के लिए भुरभुरी, बलुई दोमट, समतल व अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी की जरूरत होती है। इसका पौधा समशीतोष्ण जलवायु में अच्छे से विकास करता है। जिन क्षेत्रों में 10 से 41 अंश वाली जलवायु होती है, वहां इसकी खेती सफलतापूर्वक कर सकते है। इसके अलावा तापमान को सामान्य बनाए रखने के लिए उचित व्यवस्था जरूर होनी चाहिए। स्टीविया की खेती करते समय एक बात का विशेष ध्यान रखे कि आप जिस जलवायु में इसकी खेती करने वाले है, उसी जलवायु के अनुसार ही किस्म का चयन करें। ताकि स्टीविया का अधिक उत्पादन प्राप्त किया जा सके।

स्टीविया की खेती : खेत की तैयारी और पौध रोपण

स्टीविया का पौधा एक बार लगाने पर आप 5 वर्ष तक पैदावार कर सकते हैं। इसी वजह से इसके पौधे लगाने से पहले खेत को अच्छी तरह से तैयार कर लेना आवश्यक होता है, ताकि फसल का उत्पादन अधिक हो। स्टीविया का पौधा लगाने के लिए सबसे पहले खेत की गहरी जुताई कर लें। उसके बाद प्रति एकड़ के हिसाब से 3 टन केंचुआ खाद या 6 टन कम्पोस्ट खाद का प्रयोग करें। इसके अलावा 120 किलोग्राम जैविक खाद भी खेत में मिला दें | खेत की भूमि को दीमक व मिट्टी जनित रोगों से बचाने के लिए प्रति हेक्टेयर खेत में जुताई करते समय 150 से 200 ग्राम नीम की खली को भी खेत में मिला दें। नीम की खली मिलाने से दीमक व अन्य रोगों की लगने की संभावना बहुत कम होती हैं। 

स्टीविया के पौधों की रोपाई करने के लिए खेत में मेड़ को तैयार कर लें। इन मेड़ों की ऊँचाई एक से डेढ़ फ़ीट और चौड़ाई दो फ़ीट की होनी चाहिए। स्टीविया के खेत में मेड़ों को तैयार करने के पश्चात् पौधों की रोपाई की प्रक्रिया की जाती है। स्टीविया के टिश्यु कल्चर विधि से तैयार पौधे की रोपाई मेड़ पर किया जाता है, इन पौधों के बीच की दूरी 6 से 9 इंच की होनी चाहिए, कतार से कतार के बीच की 40 सेंटीमीटर की होनी चाहिए। ताकि स्टीविया का पौधा मेड़ के दोनों और फैलाव कर सके। एक एकड़ के खेत में तक़रीबन 30,000 से 40,000 हज़ार पौधों का रोपण किया जा सकता है। स्टीविया के पौधों की रोपाई के लिए सितम्बर से नवंबर और फ़रवरी से अप्रैल का महीना सबसे उपयुक्त होता है।

स्टीविया की खेती : पौधे की सिंचाई कैसे करें

स्टीविया के पौधों को अच्छी तरह से विकास करने के लिए 4 से 5 सिंचाई की जरूरत होती है। इसके पौधों को धान की फसल की तरह ही पानी की जरूरत होती है, इसी कारण से पूरे वर्ष समय-समय पर स्टीविया के पौधों की सिंचाई करते रहे। पौधे की ड्रिप सिंचाई सिस्टम या मिनी स्प्रिंकलर सिस्टम की मदद से सिंचाई कर सकते हैं। स्टीविया की सिंचाई के लिए ड्रिप सिंचाई सिस्टम को सबसे अच्छा माना जाता है।

स्टीविया की खेती : खरपतवार नियंत्रण

स्टीविया की खेती में खरपतवार नियंत्रण करने के लिए खेत की निरंतर सफाई करना जरूरी होता है। खेत में खरपतवार होने की स्थिति में समय-समय पर निराई गुड़ाई करते रहें। खरपतवार नियंत्रण के लिए रासायनिक दवाओं का उपयोग बिल्कुल भी न करें। रासायनिक दवाओं का उपयोग करने से स्टीविया की फसल प्रभावित हो सकती हैं।

स्टीविया की खेती : खाद एवं उर्वरक प्रबंधन

स्टीविया की खेती में देसी खाद से ही काम चल जाता है। स्टीविया की खेती करने के लिए खेत तैयार करते समय 10 से 15 टन सड़ी हुई गोबर की खाद या 5 से 6 टन केंचुआ खाद तथा 60 किलोग्राम फास्फोरस एवं 60 किलोग्राम पोटास पौधे की रोपाई करते समय खेत में मिला देना चाहिए। खेत में नाइट्रोजन की कमी पूरा करने के लिए 120 किलोग्राम नाइट्रोजन को 3 बार बराबर मात्रा में खड़ी फसल में डालना चाहिए।

स्टीविया की खेती : पत्तियों की तुड़ाई

स्टीविया के पौधे लगाने के चार महीने बाद स्टीविया की फसल पहली कटाई के लिए तैयार हो जाती है। कटाई का कार्य पौधों में फूल आने के पहले ही कर लेना चाहिए क्योंकि फूल आ जाने के बाद पौधे में स्टिवियोसाइड की मात्रा घटने लगती है जिससे बाजार में इसका उचित मूल्य नहीं मिल पाता। इस प्रकार पहली कटाई के चार महीने बाद तथा आगे की कटाइयाँ प्रत्येक 3 महीने में कर सकते हैं। कटाई चाहे पहली हो अथवा दूसरी अथवा तीसरी, यह ध्यान रखा जाना आवश्यक है कि किसी भी स्थिति में कटाई का कार्य पौधे पर फूल आने के पहले अवश्य ही कर लेनी चाहिए। स्टीविया की फसल में करीब 3 से 4 बार पत्तियों की तुड़ाई की जा सकती है।

स्टीविया की खेती : पत्तियों को सुखाना व भंडारण

पत्तियों को तोड़ने के बाद उन्हें छाया में सुखाना चाहिए। 3 से 4 दिन तक इन्हें छाया में सूखा लेने पर पत्तियों से नमी खत्म हो जाती हैं। इसके बाद इसका भंडारण, बंद डिब्बों अथवा पालीथिन बैग में किया जाता है। स्टीविया की पत्तियों के पूरी तरह से सूख जाने पर पत्तियों को बिक्री के लिए तैयार किया जाता है। किसान स्टीविया के पत्ते बेचकर अच्छी कमाई कर सकते हैं व स्टीविया की पत्तियों का पाउडर बनाकर के भी बेचा जा सकता है तथा इसका एक्सट्रैक्ट भी निकाल कर बेचा जा सकता है

स्टीविया की खेती : उत्पादन व कमाई

बहुवर्षीय फसल होने के कारण स्टीविया का उत्पादन प्रत्येक कटाई के साथ निरंतर बढ़ती जाती है। उत्पादन की मात्रा कई कारणों से जैसे लगाई गई प्रजाति, फसल की वृद्धि, कटाई का समय आदि पर निर्भर करता है, परन्तु स्टीविया की चार कटाइयों में प्राय: 2 से 4 टन तक सूखे पत्तों का उत्पादन प्राप्त हो सकता है। स्टीविया की सूखी पत्तियों का उत्पादन 12 से 15 कुंतल प्रति हेक्टेयर तक होता है।

बाजार में स्टीविया के पत्तों की बिक्री दर 60 से 120 रुपये प्रति किलोग्राम तक होती है। वैसे यदि औसतन 2.5 टन पत्तों का उत्पादन हो तथा इनकी बिक्री दर 100 रुपये प्रति किलोग्राम तक की मानी जाए तो स्टीविया की खेती से प्राप्त फसल से किसान प्रतिवर्ष आराम से 2.5 लाख रूपये प्रति एकड़ तक की कमाई आसानी से कर सकते हैं। वहीं स्टीविया की पत्तियों का पाउडर बनाकर बेचा जाए तो एक एकड़ में करीब 5 से 6 लाख रुपये तक की कमाई आसानी से की जा सकती है।

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