भारत में रबी सीजन की बुवाई का काम पूरा हो चुका हैं। ऐसे में किसान रबी की फसल सरसों, चना, आलू, मटर और गेहूं की कटाई के बाद किसान ग्रीष्मकालीन मूंग की खेती करके कम समय में अच्छा लाभ व मुनाफा कमा सकते हैं। मूंग की खेती हमारे देश में सबसे अधिक लोकप्रिय दलहन की खेती में से एक मानी जाती है जिसमें किसानों को कम मेहनत में भी फसल का अच्छा उत्पादन प्राप्त होता है। आज कल उपलब्ध नई तकनीक जैसे की जीरो ड्रिल या हैप्पी सीडर की मदद से खेत की तैयारी करके परंपरागत तरीके से खेत को तैयार करने वाले लगने वाले समय को बचा सकते हैं। हैप्पी सीडर की मदद से बुवाई करके खेत की बगैर जुताई किए बिना बुवाई करके 15 से 20 दिन के समय की बचत की जा सकती हैं जिससे किसान की फसल जल्दी तैयार हो जाती है। ग्रीष्मकालीन मूंग की खेत में बुवाई करने से खेत की उर्वरक शक्ति बढ़ती है जिससे उत्पादन भी बढ़ता है। आज हम ट्रैक्टर गुरु की इस पोस्ट के माध्यम से आपके साथ मूंग की खेती से जुड़ी सभी जानकारियां साझा करेंगे।
मूंग की दाल में प्रोटीन बहुत अधिक मात्रा में होता है। मूंग की दाल में मैग्नीज, पोटैशियम, मैग्नीशियम, फॉलेट, कॉपर, जिंक और विटामिन जैसे अनेक पोषक तत्व पाए जाते हैं। इसकी दाल का सेवन करने से शरीर में सभी प्रकार के जरुरी पोषक तत्वों की कमी को पूरा किया जा सकता है। बता दें कि इसकी दाल का पानी पीकर आप कई स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से छुटकारा पा सकते हैं। यह दाल डेंगू जैसी खतरनाक बीमारी से भी शरीर का बचाव करती है।
भारत में इसकी खेती करने वाले प्रमुख राज्यों में उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, बिहार, केरल,महाराष्ट्र, कर्नाटक के अलावा उतरी पूर्वी भारत के पहाड़ी राज्य भी शामिल है। मूंग का सबसे अधिक उत्पादन करने वाले देशों में भारत, रूस, मध्य अमेरिका, इटली, फ्रांस और उत्तर अमेरिका और बेल्जियम आदि प्रमुख हैं।
मूंग की अधिक पैदावार देने वाली किस्मों में के.-851, पूसा 105, पी.डी.एम. 44, किस्म टार्म 1, एम.एल.-131, जवाहर मूंग 721, टी.जे.एम.-3, पी.एस.-16, एच.यू.एम.-1 आदि हैं इसके अलावा निजी कंपनियों की किस्मों में शक्तिवर्धक : विराट गोल्ड, एसव्हीएम 66,अभय, एसव्हीएम 98, एसव्हीएम 88, आदि प्रमुख रुप से शामिल हैं।
मूंग की खेती करते समय खेत को दो या तीन बार हल या जुताई करके खेत को अच्छी तरह तैयार करना चाहिए तथा उसके बाद पाटा चलाकर खेत को समतल कर लेना चाहिए। इसकी फसल का दीमक से बचाव के लिए क्लोरोपायरीफॉस चूर्ण 20 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से खेत की तैयारी करते समय मिट्टी में मिलाना चाहिए।
मूंग की उन्नत किस्म का बीज की बुवाई करने से अधिक पैदावार मिलती है। प्रति एकड़ 25 से 30 किलो बीज की बुवाई पर्याप्त होती हैं ताकि एक एकड़ में पौधों की संख्या 4 से 4.5 लाख तक की हो सके।
ग्रीष्म कालीन मूंग की बुवाई सीड ड्रिल मशीन या हैप्पी सीडर की मदद से करके आप अपना समय व लागत दोनों की बचत कर सकते हैं। सीडड्रिल या हैप्पी सीडर की सहायता से कतारों में बुवाई करें। कतारों के बीच की दूरी 30 से 45 सेटीमीटर की रखते हुए 3 से 5 सेटीमीटर गहराई पर बीज बोना चाहिए। वहीं एक पौधे से दूसरे पौधे के बीच दूरी 10 सेटीमीटर रखना उचित रहता है।
मूंग की खेती करते समय प्रति एकड़ 20 किलोग्राम नाइट्रोजन तथा 50 किलो ग्राम सुपर फास्फेट बीज को बोते समय खेत में डाले और प्रति एकड़ एक क्विंटल डायअमोनियम फास्फेट डी.ए.पी. खाद का उपयोग भी आप कर सकते हैं । पोटाश एवं गंधक की कमी वाले क्षेत्रों में 20 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से पोटाश एवं गंधक देना लाभकारी होता है।
मूंग की फसल में खरपतवार नियंत्रण के लिए समय-समय पर इसकी फसल की निराई-गुड़ाई करना आवश्यक होता है। जब पौधे की लंबाई 6 इंच की हो तो एक बार खेत में डोरा चलाकर निराई करें। आवश्यकतानुसार 1 से 2 निराई-गुड़ाई करना इसकी फसल में पर्याप्त होता है।
मूंग की जायद/ग्रीष्मकालीन फसल में 10 से 15 दिन के अंतराल पर 4 से 5 सिंचाइयां करना चाहिए। सिंचाई के लिये उन्नत तकनीकों जैसे ड्रिप सिस्टम या रेनगन का प्रयोग किया जा सकता है।
मूंग की फलियों का रंग हरे से भूरा होने लगे तब फलियों की तुड़ाई तथा एक साथ पकने वाली प्रजातियों में कटाई कर लेना चाहिये तथा बची फसल की मिट्टी में जुताई करने से हरी खाद की पूर्ति भी होती है। फलियों के अधिक पकने के बाद तुड़ाई करने पर फलियों के चटकने का डर रहता है जिससे इसका कम उत्पादन प्राप्त होता है।
मूंग की एक एकड़ खेत से 7 से 8 क्विंटल उपज प्राप्त हो जाती है। एक हेक्टयर क्षेत्र में मूंग की खेती करने के लिए 18 से 20 हजार रुपये तक का खर्च आ जाता है। मूंग का भाव बाजार में 80 से 120 रुपये प्रति किलो तक का होता हैं। जिससे किसान आसानी से हजारों रुपये का लाभ कमा सकते हैं।
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