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बेल की खेती : बेल उत्पादन की उन्नत तकनीक से करें खेती

बेल की खेती : बेल उत्पादन की उन्नत तकनीक से करें खेती
पोस्ट -12 मई 2022 शेयर पोस्ट

जानें, बेल की उन्नत प्रजातियां, बेल की खेती से संबंधित जानकारी

बेल, बिल्व या बेल पत्थर भारत में पैदा होने वाला एक औषधीय गुणों से भरपूर एक महत्वपूर्ण फल का पेड़ है। स्थानीय स्तर पर इसे बेलगिरी, बेलपत्र, बेलकाठ या कैथा के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा इसे शैलपत्र, सदाफल, पतिवात, बिल्व, लक्ष्मीपुत्र और शिवेष्ट के नाम से भी जानते है । अंग्रेजी भाषा में इसे वुड एप्पल कहते हैं। हिन्दू धर्म में इस पौधे को बहुत ही पवित्र माना जाता है। बेल के वृक्ष सारे भारत में, विशेषतः हिमालय की तराई में, सूखे पहाड़ी क्षेत्रों में 4,000 फीट की ऊँचाई तक पाये जाते हैं। यह एक पतझड़ वाला वृक्ष हैं, जिसकी ऊंचाई 6 से 8 मीटर होती है। बेल का फल पोषक तत्व और औषधीय गुणों से भरपूर होता है। 

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इसमें विटामिन ए, बी, सी, कार्बोहाइड्रेट और खनिज तत्व की पर्याप्त मात्रा पायी जाती है। बेल के जड़़, छाल, पत्ते शाखा और फल औषधि रूप में मानव जीवन के लिये उपयोगी हैं। बेल से तैयार दवाईयाँ दस्त, पेट दर्द, फ़ूड पोइसिनिंग, मरोड़ आदि के लिए प्रयोग की जाती हैं। इसका प्रयोग शुगर के इलाज, सूक्ष्म-जीवों से बचाने, त्वचा सड़ने के इलाज, दर्द कम करने के लिए, मास-पेशियों के दर्द, पाचन क्रिया आदि के लिए की जाने के कारण, इसको औषधीय पेड़ के रूप में जाना जाता हैं। इससे अनेक प्रकार के पदार्थ मुरब्बा, शरबत को बनाया जाता है। इसके फल में विभिन्न प्रकार के एल्कलाइड, सेपोनिन्स, फ्लेवोनाइड्स, फिनोल्स व कई तरह के फाइटोकेमिकल्स पाये जाते हैं। बेल के फल के गूदे में अत्यधिक ऊर्जा, प्रोटीन, फाइबर, विभिन्न प्रकार के विटामिन व खनिज और एक उदारवादी एंटीआक्सीडेंट पाया जाता है। आज हम ट्रैक्टरगुरु  की इस पोस्ट के जरिये बेलगिरी के सभी विवरणों और विशेषताओं की जानकारी को साझा करने जा रहे हैं।

भारत में बेल की खेती मुख्य रूप से कहां की जाती हैं?

मध्य व दक्षिण भारत में बेल जंगल के रूप में फैला पाया जाता है। इसके पेड़ प्राकृतिक रूप से भारत के अलावा दक्षिणी नेपाल, श्रीलंका, म्यांमार, पाकिस्तान, बांग्लादेश, वियतनाम, लाओस, कंबोडिया एवं थाईलैंड में उगते हैं। इसके अलाव इसकी खेती पूरे भारत में उत्तर पूर्वी राज्यों में मुख्य रूप से उगाया जा रहा है। इसके अलावा झारखण्ड राज्य के तकरीबन सभी जिलों में बेल की खेती अधिक मात्रा में की जा रही है। बेल की व्यापारिक खेती धनबाद, गिरिडीह, चतरा, कोडरमा, बोकारो, गढ़वा, देवघर, राँची, लातेहार और हजारीबाग में की जा सकती है।

बेल की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु एवं मिट्टी

बेल उपोष्णकटिबंधीय जलवायु का पौधा है, बेल इतना सहिष्णु पौधा होता है कि हर एक प्रकार की जलवायु में भली-भांति उग जाता है। इसकी खेती समुद्रतट से 1200 मीटर ऊंचाई तक 6 से 44 डिग्री सेन्टीग्रेट तापक्रम तक सफलतापूर्वक की जा सकती है। बेल का पौधे सामान्य तापमान में अच्छे से विकास करते है। बेल की अच्छी पैदावार के लिए उपजाऊ दोमट मिट्टी अधिक उपयुक्त होती है। इसकी खेती में भूमि उचित जल-निकासी वाली होनी चाहिए, क्योकि जलभराव में इसके पौधों में कई रोग लग जाते है। बंजर एवं उसर भूमि जिसका पी.एच. मान 5 से 8.5 तक हो, में बेल की खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है।

बेल की खेती के लिए बेल की उन्नत किस्में

पंत शिवानी: पेड़ ऊपर की तरफ बढ़ने वाले और अधिक फैलाव वाले है। फल अंडाकार लम्बे, औसत वजन 1.2-2.0 किलोग्राम छिलका मध्यम पतला, गूदा अधिक (70-75 प्रतिशत), रेशा कम, अच्छी मिठास वाला और स्वादिष्ट होता है। पेड़ों की औसत उपज 50-60 किलोग्राम वृक्ष तक पायी जाती है।

पंत अर्पणा: बौनी और विरल वाली किस्म है, शाखाएं नीचे की तरफ लटकती रहती है। पेड़ों पर कांटे कम पाये जाते हैं तथा फल जल्दी और उपज अच्छी होती है। फल गोलाकार और 0.6 से 0.8 किलोग्राम औसत भार के और पतले छिलके वाले होते है। फलों का गूदा मध्यम मीठा इसका एक पौधा एक वर्ष में 50 किलोग्राम उत्पादन दे देता है।

नरेन्द्र बेल 5: पौधे कम ऊँचाई वाले (3-5 मी.) और अधिक फैलाव लिये होते हैं। फल चपटे सिरे वाले मध्यम आकार के, मीठे स्वाद होते हैं। फलों का औसत वजन 1-1.5 किलो ग्राम तक होता है। गूदे में रेशे और बीज की मात्रा काफी कम पायी जाती है। पेड़ों से औसत उपज 70-80 किलोग्राम प्रति वृक्ष तक प्राप्त की जाती है।

पंत उर्वशी: पेड़ घने और लम्बे होते हैं। यह एक मध्यम समय में पकने वाली किस्म है। फलों का आकार अंडाकार तथा प्रति फल भार 1.6 किलोग्राम तक होता है। फलों में गूदे की मात्रा 68.5 प्रतिशत और रेशे की मात्रा कम पायी जाती है। एक पौधा 60 से 75 किलोग्राम की पैदावार दे देता है।

नरेन्द्र बेल-9: पौधों की ऊँचांई कम से मध्यम होती है. फलत 4-5 वर्ष बाद आरम्भ हो जाती है. फलों का आकार नाशपाती जैसा लम्बोतरा गोल (19.0 बाई 21.0 सेमी), औसत भार 1.5 से 2.0 किलोग्राम होता है। एक पौधा से उत्पादन 45-50 किलोग्राम।

सी.आई.एस.एच.बी. 1: इस किस्म के पौधे मध्यम ऊँचाई वाले कम फैलाव लिये होते हैं। फल, आकार में अंडाकार, लम्बाई 15-17 सेंमी.। फलों का औसत वजन (0.8-1.2) तक पाया जाता है। फलों में रेशे और बीज की मात्रा कम पायी जाती है और औसत उपज 50-60 किलोग्राम प्रति वृक्ष तक हो जाती है।

बेल के पौधों की रोपाई बीज तैयार कैसे करें?

बेल के बीज के रोपाई पौध के रूप में की जाती है। इसके पौधे मुख्य रूप से बीज द्वारा तैयार किये जाते हैं। बीजों से पौधों को तैयार करने के लिए बीजों की बुआई फलों से निकालने के तुरन्त बार 15-20 सेंमी. ऊँचाईवाली 1.10 मीटर की बनी बीज बैड में 1 से 2 सेंमी. की गहराई पर कर देनी चाहिए। बीजों की बुआई का उत्तम समय मई से जून होता है। व्यावसायिक स्तर पर बेल की खेती के लिए पौधों को चश्मा विधि से तैयार करना चाहिए। चश्मा की विभिन्न विधियों में पैबंदी चश्मा विधि जून-जुलाई में चढ़ाने से 80-90 प्रतिशत तक सफलता प्राप्त की जा सकती है और सांकुर शाखा की वृद्धि भी अच्छी होती है। कालिका को 1-2 वर्ष पुराने बेल के बीजू पौधे पर ध्रुवता को ध्यान में रखते हुए चढ़ाना चाहिए। जब कालिका ठीक प्रकार से फुटाव ले ले तो मूलवृंत को कालिका के ऊपर से काट देना चाहिए। पॉली और नेट हाउस की सहायता से कोमल शाखाओं का चयन करते है। इस विधि में क्लेफ्ट या वेज विधि से ग्राफ्टिंग करके 80-90 प्रतिशत तक सफलता प्राप्त की जा सकती है। इस विधि से सफलता प्राप्त करने के लिए पॉली हाउस में 28.2 डिग्री सेल्सियस तापमान, 70-75 प्रतिशत आर्द्रता और फुहारे का अंतराल रखना उचित है।

पौधों का रोपण एवं खाद

बेल के पौधों की रोपाई गड्ढों में की जाती है। इसलिए खेत में गड्ढों को तैयार करने के लिए सबसे पहले खेत की गहरी जुताई कर खेत की मिट्टी को भुरभुरी कर पाटा लगाकर खेत को समतल कर लिया जाता है। इसके बाद समतल खेत में 6 मीटर की दूरी रखते हुए डेढ़ फीट चौड़े और एक फीट गहरे गड्ढों को तैयार कर लिया जाता है। यह सभी गड्ढों को कतारों में तैयार करे। इन गड्ढों को तैयार करते समय उसमे रासायनिक और जैविक खाद को मिट्टी के साथ मिलाकर गड्ढों में भर दिया जाता है। इसके लिए 25 किलोग्राम जैविक खाद और 50 ग्राम पोटाश, 50 ग्राम नाइट्रोजन और 25 ग्राम फास्फोरस की मात्रा को ठीक तरह से मिट्टी में मिलाकर गड्ढों में भर दे। इसके बाद पूर्ण रूप से तैयार पौधे को वर्ष में 20 से 30 किलोग्राम जैविक खाद तथा 1 से 1.5 किलोग्राम रासायनिक खाद की मात्रा को दे । खाद की मात्रा देने के पश्चात खेत की सिंचाई कर दें। 

बेल के पौधों की सिंचाई प्रबंधन 

बेल के पौधों को अधिक सिंचाई की आवश्यकता होती है। इसकी पहली सिंचाई पौध रोपाई के तुरंत बाद कर दी जाती है । इसके अलावा गर्मियों के मौसम में इसके पौधों को 8 से 10 दिन के अंतराल में पानी देना होता है, तथा सर्दियों के मौसम में इसके पौधों को 15 से 20 दिन के अंतराल में पानी दे। इसके अलावा बेल के पौधों की सिंचाई के लिए बूंद-बूंद पद्धति का प्रबंधन भी कर सकते है। बूंद-बूंद सिंचाई पद्धति को उपयुक्त पाया गया है। 

बेल के पौधों में लगने वाले रोग एवं रोकथाम

बेल में नींबू प्रजाति के कीट एवं रोगों  का प्रकोप प्रायः देखा जाता है। 

बेल का कैंकर: इस रोग की रोकथाम के लिए स्ट्रेप्टोसाइक्लिन सल्फेट (200 पी.पी.एम.) को पानी में घोल कर 15 
दिनों के अंतराल पर छिड़काव करना चाहिए।

छोटे फलों का गिरना: इसके नियंत्रण के लिए जब फल छोटे हों, कार्बेन्डाजिम (0.1 प्रतिशत) का दो छिड़काव 15 दिनों के अंतराल पर करना चाहिए।

डाई बैक: इस रोग के नियंत्रण के लिए कॉपर ऑक्सीक्लोराइड (0.3 प्रतिशत) का दो छिड़काव सूखी टहनियों को छांट कर 15 दिनों के अंतराल पर करना चाहिए।

फलों का गिरना/आंतरिक विगलन: इस रोग के नियंत्रण के लिए 300 ग्राम बोरेक्स प्रति वृक्ष का प्रयोग करना चाहिए। साथ जब फल छोटे आकार के हों तो एक प्रतिशत बोरेक्स का दो बार छिड़काव 15 दिनों के अंतराल पर करना चाहिए।

पत्तियों पर काले धब्बे: इसके रोकथाम के लिए बैविस्टीन (0.1 प्रतिशत) या डाईफोलेटान (0.2 प्रतिशत) का छिड़काव करना चाहिए।

कीट: बेल को बहुत कम नुकसान पहुँचाते हैं। पर्ण सुरर्गी और पर्ण भक्षी झल्लीं थोड़ा नुकसान पहुंचाती है। यह पेड़ की पत्तियों को काटकर नुकसान पहुंचाती है। इन कीटों की रोकथाम के लिए 0.1 प्रतिशत) या थायोडॉन (0.1 प्रतिशत) का छिड़काव सप्ताह के अंतराल पर करना चाहिए।

पौधों से फलों की उपज, तुडाई और लाभ

बेल के पौधों से अप्रैल-मई में जब फलों का रंग गहरे हरे रंग से बदल कर पीला हरा होने लगे तो फल तोड़ने योग्य हो जाते हैं। फल तोड़ते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि फल जमीन पर न गिरने पायें। इससे फलों की त्वचा चटक जाती है, जिससे भंडारण के समय चटके हुए भाग से सडन चटके हुए भाग से सडन आरंभ हो जाती है। कलमी पौधों में 3-4 वर्षों में फल प्रारंभ हो जाती है, जबकि बीजू पेड़ 7-8 वर्ष में फल देते हैं। प्रति वृक्ष फलों की संख्या वृक्ष के आकार के साथ बढ़ती रहती है। 10-15 वर्ष के पूर्ण विकसित वृक्ष से 100-150 फल प्राप्त किये जा सकते हैं। बेल के एक पौधे से आरम्भ में तकरीबन 40 किलोग्राम का उत्पादन प्राप्त किये जा सकते है।

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