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बासमति धान की दो नई किस्म विकसित : कम पानी में पैदा होगी ये किस्में

बासमति धान की दो नई किस्म विकसित : कम पानी में पैदा होगी ये किस्में
पोस्ट -20 जुलाई 2023 शेयर पोस्ट

नई बासमती धान किस्म : कम पानी वाले इलाकों में भी होगी बासमती धान की खेती, कृषि वैज्ञानिकों ने विकसित की धान की दो नई किस्म 

Paddy Crop New Variety :  पूसा के कृषि‍ वैज्ञानि‍कों ने धान की सीधी बिजाई के लिए बासमती धान (basmati rice) की दो नई अनोखी किस्मों को विकसित किया है। बासमती धान की इन दो किस्मों की खेती कम पानी और श्रम में किसान आसानी से कर सकेंगे। खास बात यह है कि इनमें  खरपतवार नाशी दवा के प्रयोग से कोई नुकसान नहीं होगा।   

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Basmati rice variety : अब धड़ल्ले से होगा बासमती धान का एक्सपोर्ट

भारत के बासमती चावल की धाक पूरी दुनिया में है। परंतु, बीते कुछ सालों में भारतीय बासमती चावल की गुणवत्ता और उत्पादन में गिरावट आई है। दरअसल, धान सबसे अधिक पानी की खपत करने वाली खरीफ फसलों में शामिल है। बीते 4-5 सालों में कई राज्यों में भू-जल संकट को देखते हुए सरकारें धान की खेती के स्थान पर अन्य वैकल्पिक फसलों की खेती के लिए किसानों को प्रोत्साहित भी कर रही है। पंजाब और हरियाणा जैसे प्रमुख धान उत्पादक राज्यों में धान की खेती छोड़ने एवं उनके स्थान पर अन्य फसलों की खेती करने पर किसानों को प्रोत्साहन के तौर पर सब्सिडी भी दी जा रही है। 

ऐसे में भारत में सबसे ज्यादा पैदा होने वाला बासमती धान का उत्पादन प्रभावित होता जा रहा है। लेकिन धान के सूबे वाले राज्यों में वैज्ञानिकों ने धान की खेती करने के लिए एक नई विधि से धान की सीधी बिजाई (DSR Direct Seeding of Rice) करने का रास्ता निकाल लिया है। इस विधि से धान की बुवाई करने में पानी और श्रम का खर्च बहुत कम होता है, बल्कि इसे अपनाने वाले किसानों को सरकारें अच्छी खासी सब्सिडी भी देती है। 

हालांकि इस प्रकार से धान की खेती करने में पानी का खर्च कम लगता है, लेकिन फसल में खरपतवार की समस्या ज्यादा होती है। इसके समाधान के लिए किसानों को काफी मोटी लागत खर्च करनी पड़ती है। इसके कारण आज भी अधिकांश किसान धान की सीधी बिजाई के स्थान पर रोपाई विधि से ही खेती करते हैं, जिसमें पानी और श्रम लागत दोनों ही सबसे अधिक होती है। लेकिन भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (पूसा) के कृषि वैज्ञानिकों ने इस बड़ी समस्या का जमीनी स्तर पर समाधान करते हुए हल खोज लिया है। कृषि वैज्ञानिकों ने कड़ी मेहनत से बासमती धान की दो ऐसी खास किस्मों को विकसित किया है, जिनकी खेती सीधी बिजाई विधि के माध्यम से किसान आसानी से कर सकेंगे। पूसा के वैज्ञानिकों का कहना है कि अब भारत का बासमती राइस एक्सपोर्ट घटने की बजाय धड़ल्ले से बढ़ेगा। 

पूसा बासमती- 1979 और पूसा बासमती-1985 किस्म की सीधी बिजाई से मिलेगा बंपर उत्पादन

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) के डायरेक्टर डॉ. अशोक कुमार सिंह ने निर्देशन में पूसा के कृषि वैज्ञानिकों ने पूसा बासमती-1979 और पूसा बासमती-1985 धान की दो ऐसे किस्में विकसित की है, जिन्हें खेतों में सीधी बिजाई विधि द्वारा बोया जा सकता है। ये दोनों किस्में हर्बि‍साइड टॉलरेंट (खरपतवार नाशक-सहिष्णु) बासमती धान की किस्में हैं। इन कि‍स्मों की धान फसल वाले खेत में खरपतवार नाशी दवा का इस्तेमाल करने से धान फसल को कोई नुकसान नहीं होगा, बल्कि धान ब‍िल्कुल स्वस्थ और ठीक रहेगा। परंतु खरपतवार पूरी तरह से नष्ट हो जाएगा। धान की खेती करने वाले किसानों की “ओके” रिपोर्ट आने के बाद धान की इन किस्मों को पूसा ने खेती के लिए रि‍लीज कर दिया है। किसान धान की सीधी बिजाई के लिए बासमती धान की इन अनोखी किस्मों का प्रयोग कर सकते हैं। 

खरपतवार नाशक-सहिष्णु गैर बासमती धान कि‍स्मों पर काम

आईएआरआई के निदेशक डॉ. सिं‍ह ने बताया कि पूसा के दूसरे शोध संस्थान भी गैर बासमती धान की कि‍स्मों में हर्बि‍साइड टॉलरेंट ((खरपतवार नाशक-सहिष्णु) जीन को स्थापित करने की कोशि‍श कर रहे हैं। एक किस्म रिलीज हुई है और बहुत जल्द ही एक और किस्म रिलीज होने वाली है। इससे धान की खेती में धान की सीधी बि‍जाई को बढ़ावा मि‍लेगा। किसानों को पारंपरिक रोपाई की तुलना में धान की सीधी बिजाई करने में पानी और श्रम लागत की काफी बचत होगी। 

धान की खेती रोपाई तकनीक से करने पर 1 किलो चावल पैदा करने में करीब 3000 लीटर पानी खर्च होता है। जिसके बावजूद भी पूरे देश में धान की खेती व्यापक पैमाने पर होती है और यह जरूरी भी है। विशेष तौर पर पंजाब, हरियाणाा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में उत्पादित हुआ धान पीडीएस में जाता है। इन क्षेत्रों के उत्पादित चावल पीडीएस की रीढ़ है, जो देश की खाद्य सुरक्षा के लिए दृष्टि से जरूरी है। अगर धान की खेती में इतना पानी खर्च होता रहा, तो हम धान की खेती  कितने दिनों तक कर पाएंगे। इन सभी समस्याओं का सुलझाने का एकमात्र रास्ता धान की सीधी बिजाई है।

इन किस्मों से तैयार की हर्बि‍साइड टॉलरेंट धान किस्म

डॉ. अशोक कुमार सिंह के मुताबिक, खरपतवार नाशक-सहिष्णु पूसा बासमती-1979 और पूसा बासमती-1985 को बासमती धान की सबसे लोकप्रिय किस्मों को सुधार करके विकसित किया गया है। इससे खुशबू और स्वाद में कोई फर्क नहीं पड़ेगा। उन्होंने बताया कि पूसा बासमती-1509 को सुधार कर हर्बि‍साइड टॉलरेंट धान पूसा 1985 को विकसित किया गया है। इस प्रकार पूसा बासमती-1121 में सुधार कर पूसा 1979 धान की किस्म को बनाया गया है। पूसा बासमती-1121, बासमती धान की सबसे लोकप्रिय किस्म है। इसे पूरे भारत में मुख्य रूप से बोया जाता है। इस लोकप्रिय किस्म का सबसे ज्यादा उत्पादन और एक्सपोर्ट होता है। बहरहाल, अब धान की सीधी बि‍जाई करने वाले कि‍सानों को खरपतवारों की समस्या से जूझना नहीं पड़ेगा। समस्या को जमीनी स्तर पर सुलझाने के लिए पूसा के वैज्ञानिकों द्वारा भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) “पूसा” कैंपस में लंबे समय तक परीक्षण किया गया था।   

धान की सीधी बिजाई पर किसान उठा सकते हैं सब्सिडी का लाभ 

पूसा के मशहूर राइस वैज्ञानिक डॉ. सिंह ने बताया कि पारंपरिक रोपाई विधि की तुलना में धान की सीधी बिजाई से खेती करने में करीब 30 से 35 प्रतिशत पानी का कम खर्च होता है। जिससे किसानों की रोपाई पर लगने वाली लागत में 3500 से 4000 रुपए प्रति एकड़ की बचत होती है। वहीं, इस प्रकार से बिजाई करने पर ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में 30 प्रतिशत तक कमी आती है, जिससे किसान कार्बन क्रेडि‍ट का भी लाभ उठा सकते हैं। वहीं, पंजाब और हरियाणा राज्य की सरकारें धान की इस विधि से बिजाई करने पर किसानों को 4000 रुपए प्रति‍ एकड़ अनुदान भी देती है। 

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