देश में सर्दी के मौसम की शुरुआत के साथ ही रबी सीजन का आगज भी हो चुका हैं। इस समय देश के हर क्षेत्र में किसान रबी सीजन फसलों की बुवाई की तैयारी में लगे हुए हैं। तथा देश के कई राज्यों में रबी फसलों की बुवाई का काम भी शुरू कर दिया गया है। ऐसे में रबी सीजन से इस बार बंपर फसल उत्पादन लेने के लिए सरकारें किसानों को उन्नत बीज, उर्वरक, खाद खरपतवारनाशी एवं कीटनाशी आदि उपलब्ध करवा रही है। इसके अलावा कृषि एवं मौसम वैज्ञानिकों द्वारा रबी सीजन में बोई जाने वाली फसलों के बेहतर उत्पादन के लिए उन्नत किस्मों के प्रमाणित बीजों एवं सर्दी के मौसम में फसलों के बचाव करने की तरीके के बारे में किसानों को सुझाव भी देते नजर आ रहे है। बता दें कि रबी सीजन में बोई जाने वाली फसलों में गेहूं एवं जौ प्रमुख खाद्यान्न फसल है। जिनमें गेहूं के बाद जौ दूसरी सबसे बड़ी खाद्यान्न फसल है। यह उत्तर भारत की एक महत्वपूर्ण रबी फसल है। अगर जौ की नई उन्नत किस्मों का चयन किया जाए, तो किसान ज्यादा उत्पादन के साथ-साथ ज्यादा मुनाफा भी कमा सकते है। किसान जौ की नई किस्मों का चयन समय और उत्पादन को ध्यान में रखकर कर सकते है। ऐसे हम आपकों ट्रैक्टरगुरू के इस लेख के माध्यम से जौ की टॉप 5 बेहतरीन किस्मों के बारे में बताने जा रहे है।
जौ का विश्व में चावल, गेहूँ एवं मक्का के बाद चौथा स्थान है। विश्व के कुल खाद्यान्न उत्पादन में 7 प्रतिशत योगदान जौ का है। जौ का इस्तेमाल आटे से लेकर, बेकरी उत्पाद, हेल्दी ड्रिंक्स और दवाईयां के साथ कई प्रकार के माल्ट एवं बीयर बनाने में किया जाता हैं। इसके अलावा यह दुधारू पशुओं के लिए भी बहुत उपयोगी है। इसे हरा चारा, सूखी भूसी, साइलेज और फीड के रूप में पशुओं को खिलाया जाता है। दुनियाभर में जौ की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। रूस, यूक्रेन, अमरीका, जर्मनी, कनाडा और भारत इसके प्रमुख उत्पादक देश हैं। भारत के हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, पंजाब एवं राजस्थान में अच्छे प्रबंधन द्वारा अच्छी गुणवत्ता वाले दानों के लिए इसकी खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। और यह उत्तर भारत के मैदानी भाग की एक महत्वपूर्ण रबी फसल है।
जौ को पोषक अनाज के साथ-साथ संस्कृति और धर्म से भी जुड़ा हुआ है। हर शुभ काम की शुरूआत जौ के साथ ही होती है। इसकी खेती रबी सीजन की जाती है। जौ कम संसाधनों में हर पककर तैयार हो जाती है। यदि किसान को कम लागत से अधिक आर्थिक लाभ लेना है, तो उनको गेहूं की जगह जौ की खेती अपनाना चाहिए। बेहतर उत्पादन के लिए किसान इसकी खेती फसल चक्र अपना सकते हैं। जिससे एक साल में तीन फसलें उगा सकें धान के बाद जौ की फसल लें और जौ के बाद मूंग की फसल लेना सबसे उपयुक्त होगा। या फिर कोई और फसल चक्र अपनाएं जिससे जौ के साथ एक वर्ष में तीन फसलें मिल सकें। ऐसा करने से किसान को लाभ तो होगा ही, साथ ही साथ भूमि की दशा में भी सुधार होगा। यही कारण है कि अब देश में गेहूं की जगह जौ की व्यावसायिक खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है।
भारत में जौ की खेती रबी सीजन में की जाती है। यह रबी सीजन में सबसे ज्यादा बोई जाने वाली फसल है। धान की कटाई के बाद किसान गेहूं की खेती की तैयारी शुरू कर देते हैं। भारत में आज भी किसान मंजुला, आजाद, जागृति (उत्तर प्रदेश), बी.एच. 75 (हरियाणा), पी.एल. 172 (पंजाब), सोनू एवं डोलमा (हिमाचल प्रदेश) में जौ की पुरानी किस्में उगा रहें हैं। जिनकी उत्पादकता काफी कम है। बेहतर उत्पादन के लिए किसान भाई डी डब्ल्यू आर बी 92, डी डब्ल्यू आर बी 160, आरडी-2907, करण-201, 231 व 264 और आरडी-2899 ये टॉप 5 जौ की बेहतरी उपज देनी वाली उन्नत किस्में है। किसान इन किस्मों का उपयोग व्यावसायिक खेती, माल्ट एवं बीयर तथा पशु चारे के उद्देश्य से अच्छे प्रबंधन द्वारा अच्छी गुणवत्ता वाले दानों के लिए इसकी खेती के लिए चयन कर सकते है।
किस्म आरडी-2899 - ये जौ ये गेहूं की नवीनतम किस्मों में से एक है। जौ यह किस्म मध्य भारत के लिए उपयोगी है। जल्दी पकने वाली यह किस्म 110 दिनों में ही पककर तैयार हो जाती है, जबकि आम किस्में 125 से 130 दिन में तैयार होती हैं। यह तापमानरोधी और पीली रोली रोधी है। इसमें उत्पादकता 55 से 60 क्विंटल प्रति हैक्टेयर होती है। इस किस्म का देश के विभिन्न कृषि अनुसंधान संस्थानों में परीक्षण किया गया है।
किस्म डी डब्ल्यू आर बी 160 - जौ की यह उन्नत किस्म माल्ट परिवार से ही ताल्लुख रखती है। इस किस्म को भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान करनाल द्वारा तैयार किया गया है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान करनाल (आईआईडब्ल्यूबीआर) की मानें तो जौ की ये किस्म बंपर उत्पादन देने में समक्ष है। इस किस्म को पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, राजस्थान (कोटा व उदयपुर संभाग को छोड़कर) और दिल्ली में की जाती है। इस किस्म की औसत उपज झमता 53.72 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है और संभावित उपज क्षमता 70.07 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। इसके साथ ही बुवाई के बाद 131 दिनों में यह कटाई के लिए तैयार हो जाती है।
किस्म आरडी-2907 - जौ की यह किस्म उत्तर भारत के लिए उपयोगी मानी गई है। उत्तर भारत में खासतौर से लवणीय और क्षारीय क्षेत्रों के किसानों के लिए यह वरदान साबित होगी। किस्मआरडी-2907 किस्म एक अच्छी उपज देनी वाली किस्म है और यह रबी सीजन में धान के खेत खाली होने के बाद इस किस्म को उगाने पर इसे अच्छी पैदावार मिलती हैं। जौ की यह पीली रोली रोधी है। यह 125 से 130 दिनों में पककर तैयार होती है। इसकी उत्पादकता 38 से 40 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक की होती है।
किस्म करण-201, 231 और 264 - भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने जौ की इस किस्म को विकसित किया हैं। जौ के बेहतर उत्पादन देनी वाली उन्नत किस्मों में से एक है। यह अच्छी उपज देनी वाली किस्म के लिए मानी जाती है। और यह व्यवसायिक खेती के लिए अच्छी मानी जाती है। यह मध्य प्रदेश के पूर्वी और बुंदेलखंड क्षेत्र, राजस्थान और हरियाणा के गुड़गांव और मोहिंदरगढ़ जिले में खेती के किसानों के लिए वरदान साबित हो रही है। करण 201, 231 और 264 की औसत उपज क्रमशः 38, 42.5 और 46 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।
किस्म डी डब्ल्यू आर बी 92 - जौ की ये किस्म भी माल्ट परिवार से ही ताल्लुखात रखती है। इस किस्म को माल्ट एवं बीयर बनाने के उद्देश्य से अच्छी गुणवत्ता वाले दानों के लिए उगाया जाता हैं। डी डब्ल्यू आर बी 92 किस्म की औसत उपज 49.81 किग्रा/हेक्टेयर है। यह किस्म 131 दिनों में तैयार हो जाती है। और इसके पौधे की औसत ऊंचाई 95 सेमी है। तथा इसकी उपज 53-55 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के आस-पास होती है। इस किस्म को मुख्य तौर पर उत्तर पश्चिमी मैदानी क्षेत्रों में उगाया जाता है।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) - भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान करनाल (IIWBR) की मानें तो जौ की ये टॉप पांच किस्में सबसे उन्नत है और इनसे बंपर उत्पादन भी होता है। तथा किसानों को इससे मुनाफा भी अधिक मिलता है।
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