देश में खरीफ फसल की कटाई का काम चल रहा है। इसके साथ ही कई राज्यों में किसानों ने रबी फसलों के लिए खेतों को तैयार करने का काम भी शुरू कर दिया है। रबी सीजन में देश के ज्यादातर किसान मुख्य रूप से गेहूं की बुवाई करते हैं। क्योंकि गेहूं की खेती रबी सीजन की मुख्य खाद्यान फसल है। इसके निर्यात से किसान और सरकार दोनों को आर्थिक फायदा होता है। भारत के हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश और राजस्थान राज्य से गेहूं का सर्वाधिक उत्पादन होता है। इन राज्यों में गेहूं की खेती मुख्य रूप से व्यापरिक उद्देश्य के लिए किसानों द्वारा की जाती है। इसलिए इसकी खेती से बेहतर पैदावार लेने के लिए यह बेहद जरूरी हो जाता है कि किसान खेती के लिए गेहूं की उन्नत किस्मों का ही प्रयोग करें। साथ ही गेहूं की बुवाई समय से आधुनिक तौर तरीके से ही करें। आज हमारे देश के कृषि वैज्ञानिकों ने गेहूं की कई ऐसी उन्नत प्रजातियों को विकसित किया है, जिनकी बुवाई कर किसान गेहूं का बेहतर उत्पादन विदेशी मानक गुणवत्ता के अनुसार कर सकते हैं। आज हम गेहूं की खेती करने वाले किसान भाईयों के लिए गेहूं की कुछ ऐसी किस्मों की जानकारी लेकर आए हैं, जिसकी बुवाई कर किसान गेहूं के खेतों से अच्छे और बेहतर गुणवत्ता के साथ प्रति हेक्टेयर 90-97 क्विंटल तक उत्पादन ले सकते हैं। आइए, गेहूं की इन टॉप 5 उन्नत किस्मों के बारे में जानते हैं।
अधिक पैदावार देने वाली गेहूं की इन टॉप 5 उन्नत प्रजातियों को विभिन्न परीक्षणों के बाद पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, दिल्ली और राजस्थान में किसानों के लिए जारी किया गया है। साथ ही गेहूं की ये प्रजातियां प्रमुख रोगों के लिए प्रतिरोधी हैं।
क्र. सं | फसल | गेहूं की किस्म का नाम | उपज क्षमता (प्रति हेक्टयेर) | अधिसूचित राज्य |
1 | गेहूं | करण वंदना (DBW 187) | 96.6 क्विंटल | पश्चिमी उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, पंजाब, दिल्ली और जम्मू। |
2 | गेहूं | करण नरेंद्र (DBW 222) | 82.1 क्विंटल | पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, पंजाब, दिल्ली और जम्मू, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड। |
3 | गेहूं | करण वैष्णवी (DBW 333) | 82.2-97 क्विंटल | पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान (कोटा और उदयपुर डिवीजन को छोड़कर) और पश्चिमी उत्तर प्रदेश (झांसी डिवीजन को छोड़कर), जम्मू-कश्मीर (जम्मू और कठुआ जिले), हिमाचल प्रदेश (ऊना जिला और पांवटा घाटी) और उत्तराखंड (तराई क्षेत्र) के कुछ हिस्से |
4 | गेहूं | करण ऐश्वर्या (DBW 296) | 83.3 क्विंटल | उत्तर-पश्चिमी मैदानी क्षेत्र (NWPZ) में पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान (कोटा और उदयपुर डिवीजनों को छोड़कर), पश्चिमी उत्तर प्रदेश (झांसी डिवीजन को छोड़कर), जम्मू और कश्मीर के कुछ हिस्सों, हिमाचल प्रदेश के कुछ हिस्सों और उत्तराखंड (तराई क्षेत्र) |
5 | गेहूं | करण शिवानी (DBW 327) | 87.7 क्विंटल | उत्तर पश्चिमी मैदानी क्षेत्र में पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान (कोटा और उदयपुर डिवीजनों को छोड़कर), पश्चिमी उत्तर (झांसी डिवीजन को छोड़कर), उत्तराखंड (तराई क्षेत्र), जम्मू और कश्मीर (जम्मू और कठुआ जिला) के कुछ हिस्सों, हिमाचल प्रदेश के कुछ हिस्सों के लिए |
कम सिंचाई, अच्छी सिंचाई, अगेती बुवाई, समय से बुवाई और पछेती बुवाई के लिए गेहूं की प्रमुख किस्में
क्र. सं. | कम सिंचाई क्षेत्र के लिए किस्म का नाम | अच्छी सिंचाई क्षेत्र के लिए किस्म का नाम | अगेती बुवाई के लिए किस्म का नाम | पछेती बुवाई के लिए किस्म का नाम |
1 | HDR 77 | त्रिवेणी ब्रांड | HD 2967 | नरेन्द्र गेहूं 1014 |
2 | इंद्रा k 8962 | DL 784-3 | UP 2338 | नरेन्द्र गेहूं 2036 |
3 | गेामती k 9465 | वैशाली | HD2687 | K 9423 |
4 | मंदाकिनी k 9251 | सोनाली HP-1633 | देसी गेहूं C-306 | सोनाली H P 1633 |
5 | मगहर k 8027 | HD 2643 | WH 1105 | UP2425 |
गेहूं की खेती कैसे करें?
खेत की तैयारी : खेत तैयार करने के लिए सबसे पहले मिट्टी पलटने वाले हल, डिस्क हैरो या कल्टीवेटर से खेत की 2 से 3 गहरी जुताई कर पुरानी फसल अवशेष को मिट्टी में मिला दें। इसके बाद टिलर और लेवलर की मदद से खेत को समतल बनाएं। इसके बाद खेत में 20 से 25 किलोग्राम यूरिया और 250 से 300 क्विंटल पुरानी गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर में डालकर जुताई कर दें। इसके बाद रोटावेटर की मदद से मिट्टी की भूरभूरा बना कर खेत तैयार कर लें।
बीज उपचार : बीजों की बुवाई करने से पहले गेहूं के बीज को विटावैक्स @ 2.0 ग्राम / किग्रा बीज, इमिडाक्लोप्रिड या क्लोरपाइरीफॉस @ 5 मिली / किग्रा की दर से उपचारित करना चाहिए।
बुवाई का समय : गेहूं की अगेती खेती में बीजों की बुवाई का उचित समय 25 अक्टूबर से 10 नवंबर माना गया है। बीज की बुवाई पंक्ति से पंक्ति की दूरी 20 सेमी रखते हुए करनी चाहिए। इतनी दूरी रखने पर 100-120 किलोग्राम प्रति हेक्टयर बीज की आवश्यकता होगी।
उर्वरक मात्रा : गेहूं की जल्दी बुवाई करने पर 150 कि०ग्रा० नत्रजन, 60 कि०ग्रा० फास्फोरस, तथा 40 कि०ग्रा० पोटाश प्रति हैक्टर और देर से बुवाई करने पर 90 कि०ग्रा० नत्रजन, 60 कि०ग्रा० फास्फोरस, तथा 40 कि०ग्रा० पोटाश प्रति हेक्टेयर उर्वरक की मात्रा का प्रयोग करें। इसमें नत्रजन की आधी मात्र बीज बुवाई के समय और आधी पहले सिंचाई में लगभग 30-35 दिन बाद प्रयोग करें।
खरपतवार नियंत्रण : खरपतवारों के नियंत्रण के लिए मेटसल्फ्यूरॉन @ 1.6 ग्राम प्रति एकड़ का छिड़काव बुवाई के 30 -35 दिनों के बाद 200 लीटर पानी प्रति एकड़ करें। वहीं, घासों के फेनोक्साप्रोप 40 ग्राम या सल्फोसल्फ्यूरॉन @ 10 ग्राम या क्लोडिनाफॉप @ 24 ग्राम / एकड़ का छिड़काव बुवाई के 35 दिनों के बाद करना चाहिए।
रोग और कीट नियंत्रण : स्ट्राइप और लीफ रस्ट तथा अन्य रोगों के लिए 0.1% (1 मिली / लीटर) पर प्रोपीकोनाज़ोल / ट्रायडेमेफ़ोन / टेबुकनाज़ोल का छिड़काव 15 दिनों के अंतराल पर रोग का लक्षण दिखाई देने पर करना चाहिए।
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