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लहसुन की जैविक खेती किसानों को बनाएगी अमीर, जानिए खेती का सही तरीका

लहसुन की जैविक खेती किसानों को बनाएगी अमीर, जानिए खेती का सही तरीका
पोस्ट -16 अगस्त 2023 शेयर पोस्ट

लहसुन फसल : जैविक तरीके से करें लहसुन की खेती, 6 महीने में मिलेगा बंपर मुनाफा 

Garlic Organic Farming : लहसुन एक कंद वर्गीय मसाला नकदी फसल है। भारतीय लोग इसके कंद का इस्तेमाल कई तरह के व्यंजन में स्वाद बढ़ाने के लिए करते हैं। लहसुन में एलसिन नामक तत्व पाया जाता है, जिसके कारण इसमें एक खास तरह की गंध आती है और इसके स्वाद में तीखापन भी होता है। इसमें उपस्थित गंध व तीखापन के कारण इस कंद वर्गीय मसाले का उपयोग आचार, चटनी और सब्जी आदि को बनाने में करते हैं। भारतीय लोग लहसुन की गांठ में मौजूद कंदों का इस्तेमाल औषधीय के रूप में भी करते हैं। क्योंकि इसमें कई औषधीय गुण पाए जाते हैं। जिसके कारण इसका इस्तेमाल पेट की बीमारियों, नपुंसकता, ब्लड प्रेशर व कैंसर आदि जैसे घातक बीमारियों से छुटकारा दिलाने में प्रयोग किया जाता है।  

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लहसुन की खेती देश के हर क्षेत्र में मसाले के रूप में की जाती है। इसमें उपस्थित औषधीय गुणों के कारण इसकी मांग देश के बाजारों के साथ विदेशों में भी खूब रहती है। किसानों के लिए लहसुन आमतौर पर एक फायदेमंद खेती साबित होती है। लहसुन की खेती से किसान अक्सर अच्छा मुनाफा कमाते हैं। वहीं, अगर किसान लहसुन की जैविक खेती सामान्य तकनीक के स्थान पर आधुनिक तरीके करें, तो इसकी खेती से किसान 5 से 6 महीनों में लाखों रुपए की बंपर कमाई कर सकते हैं। क्योंकि आज के वक्त देश के बाजारों में रसायन मुक्त मसाले व सब्जियों की बहुत ज्यादा डिमांड है। लोग ऑर्गेनिक तरीके (organic methods) से उत्पादित फल, सब्जी एवं मसाला फसलों का मुंह मांगा दाम भी देने को तैयार है। आईये इस पोस्ट की मदद से जानें कि जैविक तरीके से लहसुन की खेती कैसे की जाती है और लहसुन की जैविक खेती से किसानों को कितना उत्पादन मिलेगा। 

जैविक तरीके से लहुसन की खेती कैसे करें?

देश के कई इलाकों में आज गेहूं, धान, मक्का जैसी पारंपरिक अनाज फसलों के साथ फल, मसाला तथा सब्जियों का उत्पादन जैविक तरीके से किया जा रहा है। इनकी खेती में रासायनिक उर्वरक और खाद की जगह प्राकृतिक रूप से तैयार खाद और कीटनाशकों का इस्तेमाल किसानों द्वारा किया जाता है। ऑर्गेनिक तरीके से की जा रही इस प्रकार की खेती में लागत कम और पैदावार बंपर होती है। ऐसे में लहसुन की जैविक खेती करने के लिए किसानों को पहले खेत में जैविक खाद तैयार होता है। जिस खेत में किसान लहसुन लगाना चाहते हैं उसमें अप्रैल-जून के महीने में हरी खाद के लिए ढेंचा की बुवाई कर सकते हैं। हरी खाद के लिए खेत में बोई गई ढेंचा फसल को समय-समय पर मिट्टी पलटने वाले हल या रोटावेटर की मदद से मिट्टी को पलटते रहें। इससे मिट्टी में मौजूद सूक्ष्म जीवाणुओं संख्या में बढ़ोतरी होगी। जिससे मिट्टी के भौतिक गुणों में सुधार होगा और भूमि को अधिक नमी सोखने की क्षमता प्राप्त होगी। इससे फसलों की गुणवत्ता और पैदावार में वृद्धि होगी।

जैविक तरीके से खेत तैयार कैसे करें?

देश के अधिकतर क्षेत्रों में लहसुन फसल की बुवाई जुलाई महीने में किसानों द्वारा की जाती है। अगर आप लहसुन की जैविक फसल लगाना चाहते है, तो इसके लिए आप बुवाई से पहले खेत को जैविक रूप से तैयार करने के लिए खेत की 2 से 3 गहरी जुताई करके 10 से 15 दिनों के लिए खुला छोड़ दें। इसके बाद पलेवा करके 2 से 3 दिन बाद खेत में पशुओं के मल-मूत्र से तैयार गोबर की जैविक खाद या कूडा-कड़कट और फसल अवशेष, केंचुआ द्वारा तैयार ‘वर्मी कम्पोस्ट’ खाद डालकर रोटावेटर की मदद से मिट्टी में मिलाकर मिट्टी को अच्छी तरह से भुरभुरी बना लें। इसके बाद तैयार खेत में दो कतारों के बीच में 15 से.मी. की दूरी रखते हुए मेढ़ तैयार कर लें। मेढ़ की लंबाई भूमि के ढाल के अनुसार ही रखें। 

इस तरह करें लहसुन की बुवाई 

तैयार मेढ़ पर लहसुन के बीजों की बुवाई करते हुए लहसुन के बीज के रूप में गुणवत्तायुक्त अच्छे स्वस्थ और बड़े कंद का ही प्रयोग करें। एक हेक्टेयर क्षेत्र में लहसुन की बुवाई करने के लिए 4-5 क्विंटल लहसुन के कंदों की जरूरत किसानों को पड़ेगी। कंदों की बुवाई करने से पहले कंदों को मैकोजेब़कार्बेंडिजम दवा की 3 ग्राम मात्रा का मिश्रण बनाकर उपचारित कर लेना चाहिए। लहसुन के कंद की बुवाई  4-5 से.मी. की गइराई में करें। कंद की बुवाई करते समय दो कलियों के बीच में 6 से 8 से.मी. की पर्याप्त दूरी अवश्य रखे। लहसुन के कलियों की बुवाई किसान कूडो, छिड़काव या डिबलिंग तरीके से कर सकते हैं।  

जैविक उत्पादन के लिए खाद का इस्तेमाल कितना करें?

लहसुन की जैविक खेती से अच्छी पैदावार लेने के लिए किसानों को खेती में पशुओं के मल-मूत्र से तैयार पुरानी गोबर की खाद/कम्पोस्ट को 250 से 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से क्यारियों में डालना चाहिए। इसके लिए घर पर तैयार नीम की पत्तियों, फसल अवशेषों से तैयार जैविक खाद का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। वहीं, जैविक रूप से जीवामृत का घोल बायोगैस प्लांट में तैयार कम्पोस्ट खाद या मशरूर कंपोस्ट यूनिट से तैयार कंपोस्ट खाद का इस्तेमाल किसान लहसुन की बुवाई के 10 से 15 दिन बाद निराई-गुड़ाई के दौरान कर सकते हैं। 

लहसुन की जैविक खेती से उत्पादन

जैविक तरीके से की गई लहसुन की खेती में फसल 5 से 6 महीने में पककर तैयार हो जाती है। लहसुन की फसल के पौधों की पत्तियां जब पीली पड़कर सूखने लगे तब लहसुन के गांठों की खुदाई कर लेनी चाहिए। खोदी गई गांठों को 4 से 5 दिनों तक छाया में अच्छे से सूखाने के लिए रखें। इसके बाद 2-3 सेंटीमीटर की दूरी छोड़ते हुए पत्तियों को गांठों से अलग कर सूखे हुई गांठों को 70 प्रतिशत की आर्द्रता पर 6 से 8 महीनों तक भंडारित करके रख सकते हैं। लहसुन की पैदावार इसके किस्म और खेती तरीके पर निर्भर करती है। इसकी सामान्य तरीके से खेती करने पर इसकी फसल से औसतन उपज 200 से 250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर हो सकती है। जैविक तरीके से उत्पादित लहसुन का बाजारों में भाव काफी अच्छा मिलता है, जिस वजह से किसान भाई लहसुन की जैविक फसल कर इससे बंपर कमाई कर सकते हैं।

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