इंटीग्रेटेड फॉर्मिंग सिस्टम : मौसम परिर्वतन और प्राकृतिक आपदाओं के चलते परम्परागत खेती में लगातार हो रहे नुकसान से बचने के लिए किसान अब खेती की नई-नई तकनीक अपनाने लगे हैं, जिससे उन्हें अच्छा मुनाफा भी मिल रहा है। ऐसे में किसानों की आय बढ़ाने के लिए सरकार द्वारा नई-नई व्यावसायिक फसलों की खेती और तकनीकों को बढ़ावा दिया जा रहा है। अधिक से अधिक किसान इस तरह की मिश्रित खेती तकनीक अपना कर अपनी आय को दोगुना कर सके इसके लिए सरकार द्वारा अच्छा खासा अनुदान भी दिया जाता है। इसी कड़ी में कृषि विश्वविद्यालयों के द्वारा खेती की नई-नई तकनीकों के विकास पर ज़ोर दिया जा रहा है, जिससे राज्य में किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए प्रोत्साहन दिया जा रहा है। ऐसे में किसानों की कमाई बढ़ाने के लिए राज्य सरकार ने एक बड़ी पहल की है, जिसके तहत राज्य के किसानों को एक ही खेत में मखाना, मछली पालन और सिंघाडा की खेती के लिए प्रशिक्षण (ट्रेनिंग) दिया जाएगा ताकि किसान एक साल में तीन बार कमाई कर सकें। आईए, इस लेख की मदद से राज्य सरकार द्वारा किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए की जा रही इस पहल के बारे में जानते हैं।
किसान एक खेत से पूरे साल कर सकते है आमदनी
कृषि विभाग के अनुसार, राज्य सरकार ने मखाना अनुसंधान केंद्र दरभंगा को एक ही खेत में मखाना-मछली-पानी फल सिंघाड़ा को फसल चक्र के रूप में अपनाने के लिए किसानों को प्रशिक्षित करने के निर्देश दिया है, ताकि किसानों को सालभर जल-जमाव वाले कृषि क्षेत्र पर मखाना, मछली, पानी फल सिंघाड़ा से साल भर आमदनी मिल सके। यदि राज्य के किसान इस फसल चक्र तकनीक से खेती करते हैं, तो वे इससे पूरे साल एक खेती में अधिक-अधिक से कमाई कर सकते हैं। बता दें कि राष्ट्रीय मखाना अनुसंधान केंद्र, दरभंगा द्वारा एक ऐसी फसल चक्र की तकनीक विकसित की गई है, जिसके तहत किसान एक खेत में एक साथ मखान-मछली-पानी फल सिंघाडा की खेती कर सकते हैं। मखाना अनुसंधान केंद्र दरभंगा द्वारा, पानी फल सिंघाड़ा के लिए दो किस्में स्वर्णा हरित व स्वर्णा लोहित विकसित की गई हैं।
राज्य कृषि विभाग की ओर से 2 करोड़ रुपए राशि के बजट प्रावधान
बीते दिन कृषि विभाग, बिहार सरकार के सचिव संजय अग्रवाल ने राष्ट्रीय मखाना अनुसंधान केंद्र का भ्रमण किया। साथ ही संस्थान द्वारा किए जा रहे कार्यों का अवलोकन किया। इस दौरान कृषि सचिव ने मखाना अनुसंधान केंद्र, दरभंगा में उपलब्ध प्रक्षेत्र का अधिकतम उपयोग जलीय अनुसंधान गतिविधियों के लिए करने के निर्देश दिया। इसके लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के सहयोग करने और राज्य कृषि विभाग की ओर से 2 करोड़ रुपए राशि के बजट प्रावधान करने के निर्देश दिए। कृषि विभाग के सचिव ने कहा कि मखाना को उनके संस्थान द्वारा विकसित स्वर्ण वैदेही, बिहार कृषि विश्वविद्यालय सबौर, भागलपुर द्वारा विकसित सबौर मखाना-1 तथा मखाना के पारंपरिक बीज से उत्पादन एवं तालाब में उत्पादित मखाना तथा खेत में उत्पादित मखाना के लाभ का तुलनात्मक अध्ययन करने का निर्देश दिया। उन्होंने कहा कि बिहार के किसानों को मखाना के उन्नत बीज की किस्म उपलब्ध कराने के लिए अनुसंधान केंद्र को गुणवत्ता युक्त बीज उत्पादन और नई किस्में विकसित करने की आवश्यकता हैं।
किसानों को हर महीने मिलेगी ट्रेनिंग
कृषि विभाग के सचिव ने मखाना अनुसंधान केंद्र को तालाब के साथ-साथ खेतों में मखाने की खेती को किस प्रकार और विकसित किया जा सके, इसके प्रचार प्रसार करने तथा किसानों को प्रशिक्षित करने के निर्देश दिए। इसके लिए सचिव ने मखाना अनुसंधान केंद्र को वार्षिक प्रशिक्षण कैलेंडर तैयार करने के निर्देश दिए है। उन्होंने कहा कि अनुसंधान केंद्र पर प्रशिक्षण की सुविधा होते हुए भी किसानों को प्रशिक्षण नहीं देने पर खेद है और अब से हर महीने किसानों को मखाने की खेती के लिए ट्रेनिंग मिलेगी। प्रशिक्षण देने के मखाना अनुसंधान केंद्र को निर्देश दिया है साथ ही आत्मा योजना के अंतर्गत संस्थान को सहयोग देने की बात भी कही गई है। उन्होंने कहा कि राज्य में अब काफी संख्या में किसान खेतों में एक फीट गड्डा या तालाब खोद कर मखाने की खेती कर रहे हैं, जिससे उन्हें अन्य फसलों से अधिक मुनाफा मिल रहा है। साथ ही इस तरह की खेती करने से जल संरक्षण को भी बढ़ावा मिलता है।
मखाना अनुसंधान केंद्र और कृषि महाविद्यालय द्वारा दी जाएगी ट्रेनिंग
कृषि सचिव ने अनुसंधान केंद्र को किसानों को मखाना-पानी फल सिंघाड़ा, मखाना प्रसंकरण, मखाना के उत्पाद तैयार करने व मखाना के विपणन आदि विषयों पर प्रशिक्षित करने के लिए एक वार्षिक कैलेंडर तैयार करने के निर्देश दिए है। इस कैलेंडर के मुताबिक, मखाना अनुसंधान केंद्र, दरभंगा और भोला शास्त्री कृषि महाविद्यालय पूर्णिया में किसानों को प्रशिक्षित (ट्रेनिंग) दिए जाने की बात कही। मखाना अनुसंधान केंद्र के प्रभारी ने जानकारी देते हुए कहा कि पिछले कई वर्षों से सिंचाई के लिए बेहतर सुविधा उपलब्ध नहीं है । पिछले कई वर्षों से बोरिंग नहीं होने के कारण खेती में समस्या उत्पन्न होती है। इसके कारण 20 एकड़ में से केवल 2 से 3 एकड़ क्षेत्र में ही खेती हो पा रही है। प्रभारी ने बताया कि बोरिंग हमेशा से खराब है, जिस पर कृषि सचिव ने खेद व्यक्त किया और राज्य सरकार की निधि से बोरिंग उपलब्ध कराने के निर्देश दिया।
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