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मटर की खेती: किसान इस विधि से मटर की खेती, कम लागत में मिलेगी अच्छी पैदावार

मटर की खेती: किसान इस विधि से मटर की खेती, कम लागत में मिलेगी अच्छी पैदावार
पोस्ट -29 अक्टूबर 2023 शेयर पोस्ट

मटर की खेती में लागत कम करने के लिए अपनाएं ये विधि, मिलेगी भरपूर पैदावार 

Pea Farming :  सर्दियों के मौसम के साथ देश में रबी फसलों की बुआई का सीजन शुरू हो चुका है। अधिकांश राज्यों के किसानों ने रबी फसलों की बुआई शुरू कर दी है, तो कई जगह किसान तैयारी करते दिखाई दे रहे हैं। ऐसे में कृषि वैज्ञानिकों की सलाह से फसलों की खेती की जाए, तो खेती में लगने वाली लागत को काफी हद तक कम किया जा सकता है और फसल की उत्पादकता को भी बढ़ाया जा सकता है। रबी सीजन की फसलों में मुख्य फसल गेहूं, सरसों, जौ, चना समेत सब्जियों की बुआई किसानों द्वारा की जाती है। इसी कड़ी में हम किसान भाईयों के लिए सब्जी और दहलन फसल मटर की खेती की जानकारी लेकर आए हैं। देश के कर्नाटक, मध्य प्रदेश, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, पंजाब, असम, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, बिहार और उड़ीसा राज्य में मटर की अगेती और पिछेती किस्मों की खेती किसानों द्वारा प्रमुखता से की जाती है। लेकिन किसान इसकी खेती पारंपरिक विधि से करते है, जिससे उन्हें औसत पैदावार ही मिलती है। अगर मटर की खेती किसान वैज्ञानिक विधि से करें, तो उन्हें कम लागत में खेती से अच्छी पैदावार प्राप्त हो सकती है। इस पोस्ट में हम किसान भाईयों को मटर की वैज्ञानिक खेती कैसे करें के बारे में जानकारी देने जा रहे हैं।
 
मटर की खेती किस प्रकार की भूमि में करें?
 
आईसीएआर संस्थान के कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक, किसानों को मटर की खेती से ज्यादा पैदावार लेने के लिए हमेशा रेतीली दोमट मिट्टी वाली भूमि का ही चयन करना चाहिए । मिट्टी उत्तम जल निकासी के साथ उपजाऊ होनी चाहिए।  भूमि का पीएच मान 6 से 7.5 के बीच होना चाहिए। अगर आप इसकी खेती दलहनी फसल के उद्देश्य से करते हैं, तो खेत में जल निकासी की अच्छी व्यवस्था करके रखनी चाहिए। वैसे मटर की खेती के लिए भुरभुरी दोमट, चिकनी और रेतीली दोमट मिट्टी को सबसे उत्तम बताया गया है।

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मटर की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु
 

मटर की खेती रबी सीजन में की जाती है। इसकी फसल के लिए नम व ठंडी जलवायु की आवश्यता होती है। इसके बीजों के अंकुरण के लिए औसत 20-22 डिग्री सेल्सियस और पौधों के विकास के लिए 10-18 डिग्री सेल्सियस तापमान को उपयुक्त माना गया है। जिन स्थानों पर वार्षिक वर्षा 60-80 सेंटीमीटर तक रहती है। वहां मटर की सफल खेती किसानों द्वारा आसानी से की जा सकती है।
 
मटर की बुआई करने के लिए खेत कैसे तैयार करें?
 

वैज्ञानिकों के मुताबिक, मटर की खेती से अच्छी पैदावार लेने के लिए मटर की समय से बुआई करना बेहद जरूरी होता है। अगर आप मटर की अगेती किस्म की बुआई करना चाहते हैं, तो इसके लिए अक्टूबर से नवंबर का महीना उपयुक्त है। वहीं पछेती किस्मों के लिए बीजों की बुआई नवंबर महीने के अंत तक किसान कर सकते हैं। फसल बुआई के लिए पहले खेत को कल्टीवेटर, एमबी प्लाऊ, डिस्क हैरो या देसी हल की मदद से 2 से 3 गहरी जुताई कर पुरानी फसल अवशेष को खेत की मिट्टी मिला दें। इसके बाद 15-20 टन पुरानी गोबर की खाद को प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में डालकर 2-3 जुताई करके मिला दें। इसके बाद रोटावेटर की मदद से खेत की मिट्‌टी को भुरभूरा बनाते हुए समतल कर लें। इसके बाद ड्रिल विधि की मदद से  मटर के बीजों की बुआई करें। इससे खेत में पंक्तियां तैयार हो जाती है। इन पंक्तियों की एक दूसरे से दूरी एक फीट की होती है और पंक्तियों में बीजों की दूरी 5-7 सेन्टीमीटर की होती है। बीज की गहराई 2.5-3 सेंटीमीटर की होती है।
 
फसल को रोग और कीटों से बचाने के लिए क्या करें?
 
कृषि विश्वविद्यालयों के मुताबिक मटर की फसल को प्रारंभिक मृदाजनित एवं बीज जनित रोगों से बचाने के लिए जैव कवकनाशी (बायोपेस्टीसाइड) ट्राईकोडर्मा विरडी 1 फीसदी W.P. या ट्राईकोडर्मा हारजिएनम 2 फीसदी W.P. की 2.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर 60-75 किलोग्राम पुरानी गोबर की खाद में मिलाकर हल्के पानी का छींटा देकर 10 से 15 दिनों तक छाया में रखें। बीजों की बुआई के पहले खेत की आखिरी  जुताई के समय मिट्‌टी में मिला देने चाहिए। बीजों के अच्छे अंकुरण के लिए बीजों को कवकनाशी थीरम 75 फीसदी और कार्बेंडाजिम 50 फीसदी (2:1) 3.0 या ट्राईकोडर्मा 4.0 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित कर बीजों की बुआई करना चाहिए।

मटर की खेती के लिए उन्नत किस्में कौन सी हैं?
 
देश में मटर की खेती को प्रभावित करने वाली जलवायु और अन्य कारकों से उत्पन्न चुनौतियों के समाधान करने के लिए केंद्रीय किस्म विमोचन समिति द्वारा कई उन्नत किस्मों को जारी किया गया है। इसमें पूसा प्रगति, जवाहर मटर 1, काशी उदय, लिंकन, आर्केल, काशी शक्ति, पंत मटर 155, एच.एफ.पी. 1428, एच.एफ.पी. 715, पंजाब 89, कोटा मटर 1, आईएफडी 12-8, आईएफडी 13-2, पंत मटर 250, अर्ली बैजर, आजाद मटर 1., काशी नंदिनी, आजाद मटर 3, जवाहर मटर, काशी अगेती किस्मों को खेती के लिए किसानों के लिए अधिसूचित किया गया है।  

मटर की फसल में खाद एवं उर्वरक की मात्रा कितनी डालें
 
कृषि विश्वविद्यालयों द्वारा मटर के उत्पादन व उत्पादकता बढ़ाने के लिए किसान मिट्टी जांच रिपोर्ट के मुताबिक ही खाद व उर्वरक का प्रयोग करें। सामान्य स्थितियों में मटर की खेती के लिए नत्रजन की मात्रा 20 -30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर और  छोटी और बोनी किस्मों के लिए 30-40 किलोग्राम नत्रजन प्रति हेक्टेयर, फास्फोरस व पोटाश  30 - 40 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर और गंधक 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से देना चाहिए। इसके अलावा, पोषक तत्वों की कमी होने पर 15-20 किलोग्राम जिंक सल्फेट और 1.0-1.5 किलोग्राम अमोनियम मौलिब्डेट प्रति हेक्टेयर का छिड़काव करना चाहिए।

मटर के लिए सिंचाई व्यवस्था 

मटर की फसल को दो सिंचाई की आवश्यकता होती है। इसकी पहली सिंचाई फूल के समय बीज बुआई के 40-45 दिनों में करनी चाहिए। वही, दूसरी सिंचाई फली बनने के समय, बुआई के 60 दिनों बाद करनी चाहिए । ध्यान रहे सिंचाई हमेशा हल्की ही करनी चाहिए।  

मटर की फसल में खरपतवार नियंत्रण 

मटर की फसल को खरपतवारों से बचाना बहुत आवश्यक होता है। फसल बुवाई के 35 से 40 दिनों के बाद पारंपरिक तरीके से निराई-गुड़ाई करके फसल को खरपतवार मुक्त करें। खरपतवारों के रासायनिक नियंत्रण के लिए 1 किग्रा. फ्लुक्लोरेलिन ( बेसालीन ) का 800 से 1000 ली. पानी में घोल बनाकर, फसल के अंकुरण से पहले, प्रति हेक्टेयर में छिड़काव करें। इसके अलावा, पैंडीमेथलीन 30 फीसदी ई.सी. की 3.30 लीटर या एलाक्लोर 50 फीसदी ई.सी. की 4 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से फ्लैट फैन नोजल से बुआई के 2-3 दिनों के अंदर छिड़काव करना चाहिए।
 

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