improved grape variety : अंगूर की खेती करना किसान भाइयों के लिए फायदे का सौदा साबित हो रहा है। अगर आप भी इसकी खेती करना चाहते हैं और अच्छा मुनाफा कमाना चाहते हैं, तो अंगूर की खेती इसकी उन्नत किस्मों के साथ करनी चाहिए। भारत के उष्णकटिबंधीय जलवायु वाले क्षेत्र जैसे पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तरप्रदेश तथा दिल्ली व राजस्थान के कुछ भागों में रसीले अंगूर की विभिन्न किस्मों की खेती की जा रही है, जिससे जून माह में भी अंगूर मिलते हैं। इसकी खेती उष्ण शीतोष्ण, सभी प्रकार की जलवायु में आसानी से की जा सकती है। अंगूर एक बेहतरीन व्यावसायिक बागवानी फसल है। अगर आप उत्तर भारत से हैं और इसकी खेती से जुड़ना चाहते हैं, तो आप रसीले अंगूर की "पुसा नवरंग किस्म" काे चुन सकते हैं। इस खास अंगूर वैरायटी से किसान खूब मुनाफा कमाएंगे, क्योंकि पूसा नवरंग वैरायटी का अद्वितीय रस प्रोफ़ाइल इसे क्षेत्र के लिए फ्लेम सीडलेस के बाद दूसरी सबसे उपयुक्त किस्म बनाती है।
भारत के महाराष्ट्र में सबसे अधिक क्षेत्र में अंगूर की खेती होती है और उत्पादन की दृष्टि से यह देश में अग्रणी है। देश का लगभग 70 प्रतिशत उत्पादन महाराष्ट्र के नासिक जिले में होता है। भारत में अलग-अलग रंग के अंगूर की खेती की जाती है, लेकिन बाजार में काले अंगूर की डिमांड हमेशा बनी रहती है और इसका उत्पादन सामान्य अंगूर से अधिक महंगा भी बिकता है, जिससे इसकी खेती कर किसान अधिक पैसा कमा सकते हैं। दुनियाभर में काले अंगूर की कई किस्म उपलब्ध हैं, लेकिन व्यवसायिक दृष्टि से कुछ ही वैराइटी महत्वपूर्ण मानी जाती हैं। ऐसे में अंगूर के अधिक उत्पादन के लिए किसान सही समय पर खेती और अच्छी किस्मों का चयन करें। इसकी कुछ ऐसी वैरायटी हैं, जिनमें कीट और रोग नहीं लगते हैं।
केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान के पूर्व निदेशक सीएस राजन के अनुसार, अगर उत्तर प्रदेश में खाने के टेबिल के लिए अंगूर की सबसे अच्छी प्रजाति 'फ्लेम सीडलेस' है तो रस से भरपूर होने के कारण पूसा नवरंग भी जूस, जैम और जेली के लिए खुद में बेमिसाल है। पूसा नवरंग में जूस उत्पादन की उल्लेखनीय क्षमता है। अंगूर यह प्रजाति उत्तर प्रदेश खासकर जिन क्षेत्रों की कृषि जलवायु क्षेत्र लखनऊ के समान है उन क्षेत्रों में उत्पादन के लिए अनुकूल है।
केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान के वैज्ञानिक डॉ. राम कुमार बताते हैं कि अंगूर की खेती में पूसा नवरंग की सफलता जूस बनाने के लिए विशेष रूप से उल्लेखनीय है, क्योंकि इसका स्वाद और उपज इसे पारंपरिक फसलों के लिए एक उत्कृष्ट विकल्प बनाता है। स्थानीय परिस्थितियों में इसकी अनुकूलता के कारण यह प्रजाति किसानों के लिए एक मूल्यवान विकल्प है। अंगूर और इसके प्रसंस्कृत उत्पादों के लिए पूसा नवरंग वैरायटी का चयन बागवानों की आय बढ़ाने के लिए एक बेहतरीन विकल्प होगा।
केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान के वैज्ञानिकों ने वर्षों तक अंगूर की कई प्रजातियों पर शोध के बाद पाया कि अंगूर की ये दोनों प्रजातियां “फ्लेम सीडलेस” और “पूसा नवरंग” की उत्तर भारत में अच्छी खासी व्यावसायिक संभावनाएं हैं। अंगूर की इन दोनों प्रजातियों की पहचान कर वैज्ञानिकों ने उत्तर प्रदेश और उत्तर भारत में अंगूर की व्यावायिक खेती के लिए नए दरवाजे खोले हैं।
संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक सुशील कुमार शुक्ला के मुताबिक, अंगूर की ये दोनों प्रजातियां न केवल स्थानीय परिस्थितियों के लिए उपयुक्त हैं, बल्कि बाजार की मांगों को भी पूरा करती हैं। ये दोनों किस्में उत्तर भारत के किसानों के लिए योगी सरकार की मंशा के अनुसार फसल विविधिकरण का एक मूल्यवान विकल्प प्रस्तुत करती हैं। इसके साथ किसान छाया में होने वाली सब्जियों और मसालों की खेती कर इनके उत्पादन से अपनी आय बढ़ा सकते हैं। प्रदेश के किसानों की आय बढ़े और वे खुशहाल हों, यह योगी सरकार की सिर्फ मंशा ही नहीं संकल्प भी है।
Website - TractorGuru.in
Instagram - https://bit.ly/3wcqzqM
FaceBook - https://bit.ly/3KUyG0y