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केले के कचरे से बनाए इको फ्रेंडली कॉफ्ट, जानें, केले के कचरे से बनाए जाने वाले उत्पाद

केले के कचरे से बनाए इको फ्रेंडली कॉफ्ट, जानें, केले के कचरे से बनाए जाने वाले उत्पाद
पोस्ट -31 जनवरी 2023 शेयर पोस्ट

मध्य प्रदेश के बुरहानपुर जिले में केले के तने से रेशे बनाकर कपड़ा व कागज निर्माण में जुटे किसान

केले की खेती करने वाले किसान केले के फल के अलावा इसके कचरे से भी अच्छी खासी कमाई कर सकते हैं। आप सोच रहे होंगे कि केले के पेड़ के कचरे से भला क्या कमाई की जा सकती है, लेकिन यह सच है। मध्य प्रदेश के बुरहानपुर जिले में कुछ ऐसा ही हो रहा है। बुरहानपुर में लगभग 16,000 एकड़ भूमि पर केले का उत्पादन किया जाता है। पहले यहां के किसान नई फसल की बुवाई करने से पहले अपने खेतों से केले के तने और पत्तियों को हटा देते थे। लेकिन बुरहानपुर के निवासी एमबीए ग्रेजुएट मेहुल श्रॉफ ने इस परंपरा को बदलकर केले के तने से कई उत्पाद बनाकर कमाई का नया जरिया इजाद किया है। वह केले के पेड़ के बचे हुए तने से रेशे बनाकर, इन्हें कपड़ा व कागज में तब्दील कर लाखों रुपये की कमाई कर रहे हैं। किसान भाइयों आज हम ट्रैक्टर गुरु की इस पोस्ट के माध्यम से आपके साथ केले के कचरे से लाखों रुपए कमाने से जुड़ी सभी जानकारियां साझा करेंगे।

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केले के कचरे से रेशा बनाकर कमा रहे लाखों रुपये

मेहुल श्रॉफ जो कि एमबीए ग्रेजुएट हैं और मध्यप्रदेश के बुरहानपुर के ही रहने वाले हैं। मेहुल श्रॉफ केले के पत्तों की बर्बादी काफी समय से देख रहे थे। उन्होंने बताया कि "जब वे छोटे थे तब से ही उन्होंने अपने क्षेत्र में किसानों को केले की फसल के बाद उसके कचरे को फेंकते हुए देखता था। किसानों की तरह मैं भी केले के कचरे की विशाल क्षमता से अनजान था। ऐसे में केला किसानों का समर्थन करने और केले के छिलकों के जरिए से खुद का एक व्यवसाय शुरु करने की प्रेरणा मुझे मिली।
मेहुल श्रॉफ बताया कि उन्होंने केले के कचरे से रेशा बनाने का व्यवसाय 2018 में शुरु किया और केले के तने को फाइबर के रेशे में बदलकर उसका उपयोग कागज, कपड़ा और सजावटी सामान तथा घर की अन्य उपयोगी वस्तुओं को बनाने के लिए किया। इस व्यापार के माध्यम से वह हर महीने 3 से 5 टन केले के रेशे बेचकर सालाना करीब 30 लाख रुपये की कमाई आसानी से करते हैं।

शुरू किया अपना व्यवसाय 

मेहुल बताते हैं कि “एमबीए करने के बाद, मैंने कई बड़े-बड़े व्यापारियों से मुलाकात की और उनसे जाना कि अपना खुद का स्टार्टअप शुरू करने के लिए, कौनसी बातों का ध्यान रखना पड़ता है। इसके बाद, बिजनेस का चुनाव करने के लिए मैंने अपने क्षेत्र पर ही ध्यान दिया। क्योंकि, मैं अपने क्षेत्र और लोगों के लिए कुछ करना चाहता था। मैंने एमबीए में अपनी रिसर्च के दौरान इको फ्रेंडली व्यवसाय के बारे में भी काफी पढ़ा था। बुरहानपुर में बड़े पैमाने पर किसान केले की खेती करते हैं। मैंने बचपन से ही देखा था कि हमारे क्षेत्र में किसान केले की कटाई के बाद, खेतों को खाली करके दोबारा फसल लगाते हैं। पहली फसल से बचे केले के तने, उनके लिए कचरे के सामान होते हैं, जिन्हें वे लैंडफिल में पहुंचा देते हैं। इसलिए, मैंने इन बेकार केले के तनों का सही उपयोग करने के बारे में सोचा।” 

उन्होंने आगे बताया कि वह अपने बिजनेस के लिए किसी रिसर्च में जुटे थे, तब उन्हें जिला प्रशासन और नवसारी कृषि विश्वविद्यालय की तरफ से आयोजित की गई एक वर्कशॉप में भाग लेने का मौका मिला। इस वर्कशॉप में बताया गया कि केले के पेड़ के बचे हुए तने से रेशे बनाकर, इन्हें कपड़ा, कागज और हेंडीक्राफ्ट इंडस्ट्री में आसानी से काम में लिया जा सकता है। यहीं से मेहुल को अपने व्यवसाय का आइडिया मिला और उन्होंने तय कर लिया कि वह इसी क्षेत्र में आगे बढ़ेंगे। वह कहते हैं कि लेकिन जब मैंने इस व्यवसाय के बारे में रिसर्च की, तो पता चला कि इसमें पहले से बहुत लोग असफल भी हुए हैं। इसलिए, मैंने इसकी शुरुआत करने से पहले अलग-अलग जगह से पूरी जानकारी इकट्ठा की। जैसे- इस व्यापार के लिए कौन सी मशीनें चाहिए, रेशे से कौन-कौन से उत्पाद बना सकते हैं और इन उत्पादों को कहां बेचा जा सकता है आदि। 

इसके अलावा, वह अपने क्षेत्र व जिले के किसानों से भी जाकर मिले और उनसे अपने इस आइडिया पर बात की। उन्हें बहुत से किसानों से सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली और साल 2018 में, मेहुल ने अपने व्यवसाय “श्रॉफ इंडस्ट्रीज” की शुरुआत की। उन्होंने केले के कचरे से रेशा बनाने के लिए पहली प्रोसेसिंग यूनिट बुरहानपुर में ही लगाया है। साथ ही, अपने इस व्यवसाय से किसानों की मदद की, महिलाओं को रोजगार और पर्यावरण के अनुकूल उत्पाद बनाकर, प्रकृति की सुरक्षा में अपना योगदान दे रहे हैं।

केले के कचरे से बनने वाले उत्पाद

केले के रेशे से सजावटी सामान,बत्ती, झाड़ू, टोकरी, पर्स, सैनिटरी नैपकिन जैसे उत्पाद बनाते हैं। केले के रेशे का प्रयोग करके इको-फ्रेंडली सैनिटरी नैपकिन भी बनाएं जा सकते हैं। ये सैनिटरी नैपकिन बायोडिग्रेडेबल होते हैं, जो 2 से 3 महीने में डीकंपोज हो जाता है।

केले के रेशों का बाजार

मेहुल के अनुसार, केले के रेशों के लिए बाजार तलाशना उनके लिए सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक था। “इन रेशों के बाजार में बेचने के दौरान भी केले के रेशों की क्षमता के बारे में कपड़ा क्षेत्र के लोगों को राजी करना उनके लिए थोड़ा चुनौतीपूर्ण था। लोग कुछ भी नया करने के लिए इच्छुक नहीं थे। इसलिए मैंने अपना लाभ कम करके उनके सामने रेशे की पेशकश की। इसने पूरे बुरहानपुर की ग्रामीण महिलाओं को विभिन्न हस्तशिल्प क्षेत्रों में रोजगार देना शुरु कर दिया है। उन्होंने बताया कि वर्तमान में इस हस्तशिल्प के व्यवसाय में ग्रामीण क्षेत्रों की 50 से अधिक महिलाओं को रोजगार मिला है। इसके अलावा प्रसंस्करण इकाई में भी 10 लोग काम कर रहे हैं। इन हस्तशिल्पों में दीवार घड़ियां, योग मैट, टोकरी, पूजा मैट, रस्सी, बैग, प्लांटर्स, टोकरी और अन्य सामान बनते हैं। बाजार में इन उत्पादों की कीमत 100 रुपये से लेकर 2,000 रुपये तक की होती है।

किसानों की बढ़ रही आमदनी

बुरहानपुर जिले किसानों को भी केले के तनों से अब अच्छी आमदनी होने लगी है। केले के कचरे को फेंकने की बजाय वह अब इसे सही मात्रा में बेच पा रहे हैं। मेहुल कहते हैं कि वह क्षेत्र के 50 से 100 किसानों से नियमित रूप से केले का तना खरीदते हैं। ऐसे में किसान तनों को काटने और खेत को साफ करने के लिए अनावश्यक श्रम के खर्च से बचत करके काफी मुनाफा कमा लेते हैं।

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