MSP for raw jute 2024-25 : केंद्र की मोदी सरकार देश के किसानों की खुशहाली के लिए निरंतर बड़े कदम उठा रही है। ऐसे में किसान आंदोलन के बीच केंद्र सरकार ने किसानों के हित में एक बड़ा फैसला लिया है। केंद्र सरकार ने किसान हितकारी निर्णय लेने की अपनी प्रतिबद्धता को दोहराते हुए किसानों को बड़ी खुशखबरी दी है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (Cabinet Committee on Economic Affairs) ने 2024-25 सीजन के लिए कच्चे जूट (raw jute) के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) को अपनी मंजूरी दे दी है। सरकार ने 2024-25 सीजन के लिए कच्चे जूट (Raw Jute) के समर्थन मूल्य (एमएसपी) में 285 रुपये प्रति क्विंटल की वृद्धि की है। मोदी सरकार ने इससे पहले फरवरी 2024 में गन्ने के उचित और लाभकारी मूल्य (एफआरपी) में वृद्धि पर अपनी मंजूरी दी थी।
केंद्र सरकार ने 2024-25 फसल सीजन के लिए कच्चे जूट के न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी में पिछले फसल वर्ष की तुलना में प्रति क्विंटल 285 रुपए की वृद्धि की है। सरकार के मुताबिक, अब कच्चे जूट का एमएसपी 5,335 रुपए प्रति क्विंटल हो गया है। इससे उत्पादन की अखिल भारतीय भारित औसत लागत पर 64.8 प्रतिशत का रिटर्न सुनिश्चित होगा। पिछले दस वर्षों में सरकार ने 122 प्रतिशत की वृद्धि करते हुए वर्ष 2014-15 में कच्चे जूट के लिए एमएसपी 2,400 रुपए प्रति क्विंटल से बढ़ाकर 2024-25 में कच्चे जूट का एमएसपी 5335 रुपए प्रति क्विंटल कर दिया है। सरकार के इस फैसले से लगभग 40 लाख जूट किसानों को फायदा होगा।
कच्चे जूट (टीडीएन-3, पहले के टीडी-5 श्रेणी के बराबर) का एमएसपी (MSP) 2024-25 सीजन के लिए 5,335 रुपए प्रति क्विंटल घोषित किया गया है। 2024-25 फसल सीजन के लिए कच्चे जूट का घोषित एमएसपी सरकार द्वारा बजट 2018-19 में घोषित उत्पादन की अखिल भारतीय भारित औसत लागत के कम से कम 1.5 गुना के स्तर पर एमएसपी निर्धारित करने के सिद्धांत के अनुरूप है। यह निर्णय कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (CACP) की सिफारिशों पर आधारित है। चालू सीजन 2023-24 में केंद्र सरकार ने 524.32 करोड़ की लागत से 6.24 लाख गांठ से अधिक कच्चे जूट की रिकार्ड मात्रा में खरीद की है। इससे लगभग 1.65 लाख किसानों को लाभ हुआ है। सरकार के अनुसार एक गांठ में 180 किलो कच्चा जूट होता है।
बता दें कि कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (CACP) भारत सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय का एक संलग्न कार्यालय है। इसमें एक अध्यक्ष, सदस्य सचिव, एक सदस्य (सरकारी) और दो सदस्य (गैर-सरकारी) शामिल होते हैं। गैर-सरकारी सदस्य कृषक समुदाय के प्रतिनिधि हैं और आमतौर पर कृषक समुदाय के साथ एक सक्रिय संबंध रखते हैं। सीएसीपी (CACP) यानी कमीशन फॉर एग्रीकल्चर कॉस्ट एंड प्राइजेस की सिफारिश पर सरकार फसल सीजन से पहले एमएसपी तय करती है। CACP प्रति वर्ष मूल्य नीति रिपोर्ट में सभी भुगतान की गई लागतें शामिल होती हैं जैसे कि किराए के मानव श्रम, बैल श्रम / मशीन श्रम, भूमि में पट्टे के लिए भुगतान किया गया किराया, बीज, उर्वरक, खाद, सिंचाई शुल्क जैसे सामग्री इनपुट के उपयोग पर किए गए खर्च, उपकरणों एवं कृषि संबंधी भवनों पर मूल्यह्रास, कार्यशील पूंजी पर ब्याज, पंप सेट आदि के संचालन के लिए डीजल/बिजली, विविध खर्च और पारिवारिक श्रम का आरोपित मूल्य शामिल होते हैं। CACP द्वारा सरकार को पांच समूहों (खरीफ की फसलें, रबी फसल, गन्ना, कच्चा जूट और कोपरा) के लिए अलग-अलग रिपोर्ट प्रस्तुत करता है।
जूट व्यावसायिक रूप से एक नकदी फसल है, जिसकी खेती से किसानों और अन्य कामगारों को नकदी पैसा मिलता है। भारत में इसकी खेती बंगाल, असम, उड़ीसा, बिहार और उत्तर प्रदेश के तराई हिस्सों में व्यापक पैमाने पर की जाती है। हालांकि, देश के पूर्वी राज्यों बंगाल एवं असम में जूट की खेती सबसे ज्यादा होती है। जूट मिलों में लगभग पांच लाख से अधिक कामगार काम करते हैं। जूट की खेती व्यावसायिक रूप में नकदी फसल के लिए की जाती है | जूट का पौधा द्विबीजपत्री, रेशेदार होता है, इसका पौधा लगभग 5 से 10 फीट ऊंचा होता है, इसका तना पतला और बेलनाकार होता है। जूट को पटसन के नाम से भी जाना जाता है। जूट के रेशे से टाट, बोरे, दरी, रस्सियां, तम्बू, तिरपाल, कागज और कोटि के कपड़ो इत्यादि जैसी कई चीजें बनाई जाती है।
इसकी खेती के लिए आद्र और गर्म जलवायु वाले क्षेत्रों को उपयुक्त माना गया है। जूट की खेती के लिए हल्की बलुई दोमट मिट्टी वाली भूमि की आवश्यकता होती है, जिसका पीएच मान सामान्य होना चाहिए। इसके खेती के लिए जे.आर.सी. – 321, यू.पी.सी. – 94, जे.आर.सी – 212, एन.डी.सी. किस्म को उपयुक्त माना गया है। इन किस्मों से 120 से 140 दिन पश्चात् 10 से 15 टन प्रति हेक्टेयर का उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।
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