हम सभी जानते हैं कि खरीफ सीजन फसलों की बुवाई लगभग हर क्षेत्र में पूरी हो चुकी है, तो कई क्षेत्रों में इस वर्ष मानसूनी बारिश के असामान्य रहने से खरीफ सीजन की फसलों में देरी हो रही है। धान सहित अन्य खरीफ सीजन फसलों की बुवाई समय पर हो सके, इसके लिए सरकार अपने स्तर पर कई प्रयास कर रही है। मानसूनी बारिश की असामान्यता को देखते हुए छत्तीसगढ़ सरकार ने राज्य में दलहनी फसलों की खेती करने वाले किसानों को प्रोत्साहन राशि देने का फैसला किया हैं। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने राज्य में किसानों को धान के स्थान पर दलहन फसलों को उगाने पर 9000 रुपये प्रति एकड़ की प्रोत्साहन राशि दी जाएगी। राज्य सरकार फसल विविधीकरण पर इसलिए फोकस कर रही है ताकि किसान परम्परागत खेती को छोड़ दूसरी फसलों को उगाएं। जिससे पानी कम लगे और किसानों की इनकम बढ़े। इसके अलावा सरकार का कहना है कि राज्य में दालों के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए किसानों से अरहर और उड़द की खरीदी के लिए अधिक पैसे दिए जा रहे हैं। राज्य सरकार दालों को 6600 रुपए प्रति क्विंटल से बढ़ाकर 8000 रुपए प्रति क्विंटल की दर से खरीद रही है। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा राज्य सरकार ने यह फैसला लगातार गिरते जलस्तर को ध्यान में रखते हुए किया हैं, तो आइए ट्रैक्टर गुरू की इस पोस्ट के माध्यम से इस खबर के बारे में जानते है।
प्रदेश के कृषि मंत्री रविन्द्र चौबे ने कहा है कि छत्तीसगढ़ में दलहन फसलों के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए दलहन उगाने वाले किसानों को विशेष प्रोत्साहन दिया जा रहा है जिसके तहत धान की जगह दलहन उत्पादन करने वाले किसानों को प्रति एकड़ नौ हजार रूपये का अनुदान दिया जा रहा है। उन्होंने कहा कि दलहन उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार द्वारा फसल विविधीकरण की योजनाएं लागू की जाएंगी। जिससे भूजल के गम्भीर दोहन को रोकने में भी मदद मिलेगी और मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार भी होगा। राज्य सरकार के प्रयासों से पिछले वर्षों में राज्य में दलहन के रकबे एवं उत्पादन बढ़ोतरी हुई है, जिसके परिणामस्वरूप राज्य में आज 11 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में दलहन फसलों की खेती की जा रही है। ऐसे में सरकार को उम्मीद है कि आगामी दो वर्षों में बढ़कर 15 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में दलहन फसलों की खेती होने की उम्मीद है।
प्रदेश के कृषि मंत्री रविन्द्र चौबे ने छत्तीसगढ़ के किसानों से ज्यादा से ज्यादा रकबे में दलहनी फसलें उगाने का आव्हान किया। उन्होंने कहा कि किसानों को धान की खेती छोड़ या कम करने के साथ दलहनी फसलों की खेती पर ज्यादा ध्यान देना होगा। क्योंकि धान की फसल के उत्पादन के लिए पानी की भारी मात्रा की आवश्यकता होती है। एक किलो चावल तैयार करने में करीब 3,000 लीटर पानी खर्च होता है। और पहले से ही प्रदेश गिरते भूजल स्तर एवं मानसून की असामान्यता से जूझ रहा हैं। जानकारी के लिए बता दे कि पिछले दिनों छत्तीसगढ़ के कृषि मंत्री रविन्द्र चौबे ने इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय द्वारा भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली के सहयोग से दो दिवसीय रबी दलहन कार्यशाला एवं वार्षिक समूह बैठक का शुभारंभ किया था। इस दौरान चौबे ने छत्तीसगढ़ के कृषि विकास में इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के योगदान की विशेष रूप से सराहना की।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के उप महानिदेशक डॉ. टी.आर. शर्मा ने इस अवसर पर कहा कि केन्द्र सरकार द्वारा भारत को दलहन उत्पादन के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने एवं इसका आयात कम करने के लिए विशेष प्रयास किये जा रहे हैं। साथ ही दलहनी फसलों के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए इसकी रोगरोधी एवं उन्नतशील किस्में उगने तथा यंत्रीकरण के उपयोग में वृद्धि करने पर जोर दिया।
उन्होंने कहा कि धान के कटोरे के रूप में प्रख्यात छत्तीसगढ़ आज दलहन उत्पादन के क्षेत्र में भी अपनी पहचान बना रहा है। जिसके परिणामस्वरूप देश में इस वर्ष 2 करोड़ 80 लाख मीट्रिक टन दलहन उत्पादन होने की संभावना है। गौरतलब है कि वर्ष 2016 में देश में 1 करोड़ 60 लाख मीट्रिक टन दलहन का उत्पादन होता था। उन्होंने कहा कि इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. गिरीश चंदेल की जानकारी के अनुसार छत्तीसगढ़ में आज लगभग 11 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में दलहनी फसलें ली जा रहीं है जिनमें अरहर, चना, मूंग, उड़द, मसूर, कुल्थी, तिवड़ा, राजमा एवं मटर प्रमुख हैं। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ में उगाई जाने वाली तिवड़ा की फसल खाद्य सुरक्षा उपलब्ध कराने के क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के सहायक महानिदेशक डॉ. संजीव गुप्ता ने कहा कि इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय द्वारा दलहनी फसलों की नवीन उन्नतशील किस्में विकसित किये जाने पर बधाई दी। उन्होंने कहा कि इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय द्वारा अबतक विभिन्न दलहनी फसलों की उन्नतशील एवं रोगरोधी कुल 25 किस्मों का विकास किया जा चुका है। इसमें अरहर की 3, कुल्थी की 6, लोबिया की 1, चना की 5, मटर की 4, मूंग की 2, उड़द की 1, तिवड़ा की 2 एवं मसूर की 1 किस्में प्रमुख हैं। डॉ. चंदेल ने कहा कि दलहनी फसलों में यंत्रीकरण को बढ़ावा देने हेतु विश्वविद्यालय द्वारा नए कृषि यंत्र विकसित किए जा रहे हैं।
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