MNREGA Scheme : ग्रामीण विकास मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा चलाई जा रही “महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना” यानी मनरेगा में न केवल लोगों को गारंटी रोजगार उपलब्ध कराया जा रहा है, बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले नागरिकों को पशुओं एवं मुर्गियों के लिए शेड (घर) बनाने के लिए वित्तीय सहायता भी प्रदान की जा रही है, इससे पशु पालकों और मुर्गी पालकों को व्यवसाय आगे बढ़ाने में काफी मदद भी मिल रही है। इस बीच छत्तीसगढ़ के जांजगीर चांपा जिले के पामगढ़ जनपद की ग्राम पंचायत मेऊ की रहने वाली श्यामबाई ने मनरेगा योजना के तहत मुर्गी पालन के लिए शेड बनाकर अपने व्यवसाय को आगे बढ़ाया है। श्यामबाई मुर्गी पालन से प्रति माह अच्छा मुनाफा कमा रही है और अब वे आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर और परिवार के भरण-पोषण करने में सक्षम हो पाई है। साथ अन्य लोगों को भी अपने कार्य से प्रेरित कर रही है। श्यामबाई को मनरेगा योजना के तहत मुर्गी के लिए शेड (घर) बनाने के लिए 92 हजार रुपए की धनराशि वित्तीय सहायता के रूप में मिली।
ग्राम पंचायत मेऊ निवासी श्यामबाई टंडन अपनी जमीन पर खेती करके अपना एवं अपने परिवार का भरण-पोषण कर रही है। श्यामबाई बताती है कि वर्ष 2004 में उनके पति भारत टंडन की मृत्यु हो जाने बाद परिवार की पूरी जिम्मेदारी उनके ऊपर आ गई। उनके पति के रहते ही उन्होंने लड़कियों की जिम्मेदारी शादी करके पूरी कर दी थी, लेकिन उनके ऊपर अपनी स्वयं की जिम्मेदारी जरूर थी। उन्होंने हौसला नहीं छोड़ा और मजबूती के साथ वह अपने पैरों पर खड़ी हुई। श्यामबाई टंडन के पास केवल 92 डिसमिल पुश्तैनी जमीन है, जिस पर खेती करके अपना एवं अपने परिवार का भरण पोषण कर रही थी। वर्षा आधारित खेती होने से पर्याप्त मात्रा में उपज नहीं होने के कारण पारिवारिक जरुरतों को पूरा करने में बड़ी दिक्कत आती थी और पालन-पोषण के लिए समय-समय पर मजदूरी भी करनी पड़ती थी। ऐसे में श्यामबाई ने जीविकोपार्जन के लिए परिवार के साथ खेती के अलावा, मुर्गीपालन का कार्य शुरू किया, लेकिन कच्चा घर होने के कारण मुर्गियां मर जाती थी, या फिर मुर्गियों के देखभाल में थोड़ी सी चूक होने पर उन्हें बिल्लियां खा जाती थी। जिससे उन्हें मुर्गी पालन व्यवसाय में अधिक लाभ नहीं मिल रहा था।
मुर्गी पालन में इन सब समस्या से जूझ रहीं श्यामबाई के परिवार को पता चला कि महात्मा गांधी नरेगा योजना के माध्यम से मुर्गी पालन के लिए शेड बनाकर दिया जाता है, फिर उन्होंने ग्राम रोजगार सहायक के माध्यम से आवेदन तैयार कर ग्राम सभा में प्रस्ताव दिया। ग्राम सभा से प्रस्ताव को मंजूरी मिलते ही तकनीकी सहायक राकेश लहरे ने तकनीकी प्रस्ताव तैयार करते हुए जनपद से जिला पंचायत भेजा। मनरेगा से 92 हजार रुपये की स्वीकृति शेड निर्माण के लिए मिली। जिला पंचायत से प्रशासकीय स्वीकृति मिलने के उपरांत बिना देर किए ही काम शुरू किया गया। जैसे-जैसे मुर्गी शेड बनता गया वैसे-वैसे श्यामबाई का हौसला बढ़ता गया। पालन के लिए शेड बनने के बाद उन्हें मुर्गी पालन में आ रही दिक्कतों से छुटकारा मिला है।
मनरेगा योजना के तहत मुर्गी पालन के लिए जिस दिन उनका शेड बनाकर तैयार हुआ, उन्होंने सोनाली मुर्गियों का पालन इस शेड में शुरू किया। श्यामबाई सोनाली मुर्गी पालन से हर महीने 7-8 हजार रुपए की आमदनी अर्जित करने लगी है। उनके इस कार्य में उनका पूरा परिवार हाथ बढ़ाता है। मनरेगा से उनके आवास से लगी भूमि में मुर्गीपालन के लिए बनाए गए शेड से उन्हें अपने मुर्गी पालन व्यवसाय को आगे बढ़ाने में मदद मिली है। खेती-किसानी के साथ मुर्गीपालन से मिलने वाल आय से वह अपनी पढ़ाई पूरी कर रहे है और गांव में ही रहते हुए उन्हें रोजगार भी मिला है।
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