ट्रैक्टर समाचार सरकारी योजना समाचार कृषि समाचार कृषि मशीनरी समाचार मौसम समाचार कृषि व्यापार समाचार सामाजिक समाचार सक्सेस स्टोरी समाचार

जीरो बजट खेती : शून्य बजट फार्मिग से किसानों की बढ़ेगी आय, जानें क्या है शून्य बजट फार्मिग

जीरो बजट खेती : शून्य बजट फार्मिग से किसानों की बढ़ेगी आय, जानें क्या है शून्य बजट फार्मिग
पोस्ट -18 अगस्त 2022 शेयर पोस्ट

प्राकृतिक खेती से बनी रहेगी भूमि की उपजाऊ शक्ति और बढ़ेगी पैदावार, किसानों को कम लागत में होगा बढ़िया मुनाफा

पिछले कई वर्षों से खेती-किसानी में रासायनिक खाद और कीटनाशक के उपयोग से जमीन की उर्वरक क्षमता कम हो रही है और भूमि बंजर हो रही है। रासायनिक खाद और कीटनाशक के उपयोग से तैयार खाद्य पदार्थ मनुष्य और जानवरों की सेहत पर बुरा असर डाल रहे हैं। रासायनिक खाद और कीटनाशक के उपयोग से मिट्टी की उर्वरक क्षमता काफी कम हो गई। जिससे मिट्टी के पोषक तत्वों का संतुलन बिगड़ गया है। मिट्टी की घटती उर्वरक क्षमता को देखते हुए जैविक खाद का उपयोग जरूरी हो गया है। इसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नेचुरल फार्मिंग को बढ़ावा देने के लिए परंपरागत कृषि विकास योजना चलाई है। प्रधानमंत्री मोदी की नेचुरल फार्मिंग योजना को सफल बनाने के लिए देश में कई राज्य सरकारें अपने-अपने स्तर पर प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए नई-नई पहल कर रही  है। ऐसी ही एक पहल का नाम शून्य बजट फार्मिग है। शून्य बजट फार्मिंग का मतलब प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देना है। इस फार्मिंग का मूल उद्देश्य खानपान को बदलना है। प्राकृतिक खेती ही इसका एकमात्र रास्ता है, जिससे भूमि के स्वास्थ्य को बदला जा सकता है। ऐसे में जीरो बजट खेती के अंतर्गत फसलों के उत्पादन में रसायनिक खादों के बजाय प्राकृतिक खाद का उपयोग किया जाता है। ऐसा करने से किसानों की लागत ना के बराबर हो जाती है। तो आइए ट्रैक्टर गुरू की इस पोस्ट के माध्यम से प्राकृतिक खेती (जीरो बजट) के बारे में जानते हैं। 

New Holland Tractor

प्राकृतिक खेती क्या है (जीरो बजट फार्मिग) 

पूर्व कृषि वैज्ञानिक सुभाष पालेकर को जीरो बजट फार्मिंग की इस शानदार तकनीक का जनक कहा जाता है। प्राकृतिक खेती, खेती की वह विधि है, जिसमें रासायनिकों का इस्तेमाल नहीं होता है। इसमें बाहरी लागत की मदद के बिना परंपरागत खेती को बढ़ावा दिया जाता है। प्राकृतिक खेती का मुख्य आधार देसी गाय है। प्राकृतिक खेती (जीरो बजट फार्मिग) कृषि की प्राचीन पद्धति है। यह भूमि के प्राकृतिक स्वरूप को बनाए रखती है। इस प्रकार की खेती में जो तत्व प्रकृति में पाए जाते है, उन्हीं को खेती में कीटनाशक के रूप में काम में लिया जाता है।

छोटे किसानों के लिए फायदेमंद

ऐसा माना जाता है कि यह छोटे किसानों के लिए ज्यादा उपयोगी साबित होगी क्योंकि यह उनकी मौजूदा खेती में लगने वाली लागत पर निर्भरता कम करती है। इस प्रकार की खेती में ऋतुओं में हेरफेर करने के कृत्रिम तरीकों का भी उपयोग नहीं किया जाता है और स्थान के वनस्पतियों और जीवों को प्रभावित किए बिना प्राकृतिक चक्रों का पालन किया जाता है।

प्राकृतिक खादों का उपयोग

जीरो बजट खेती के अंतर्गत फसलों के उत्पादन में रासायनिक खादों के बजाय प्राकृतिक खाद का उपयोग किया जाता है। इसमें कीटनाशकों के रूप में गोबर की खाद, कम्पोस्ट, जीवाणु खाद, फसल अवशेष और प्रकृति में उपलब्ध खनिज जैसे- रॉक फास्फेट, जिप्सम आदि द्वारा पौधों को पोषक तत्व दिए जाते हैं। प्राकृतिक खेती में प्रकृति में उपलब्ध जीवाणुओं, मित्र कीट और जैविक कीटनाशक द्वारा फसल को हानिकारक जीवाणुओं से बचाया जाता है। 

देशी गाय का गोबर प्राकृतिक खेती के लिए महत्वपूर्ण

देशी नस्ल की दूधारू गायों के 1 ग्राम गोबर में 300 करोड़ से भी ज्यादा जीवाणुओं का निर्माण होता है। ये जीवाणु खेत की उर्वरक क्षमता बढ़ाने में सहायक होते हैं। एक एकड़ खेत में प्राकृतिक खेती के लिए खाद यानी जीवामृत को देसी गाय के एक दिन के गोमूत्र और गोबर से ही तैयार हो सकता है। एक गाय से 30 एकड़ जमीन में प्राकृतिक खेती की जा सकती है। किसान यह जीवामृत खुद तैयार कर सकते हैं। जीवामृत खेत की उर्वरा शक्ति को बढ़ाता है। जीवामृत से उत्पन्न होने वाले जीवाणु किसान के सबसे बड़े मित्र हैं। केंचुओं की सक्रियता भूमि में गहरे तक जल रिसाव को बढ़ाती है, इससे जल संचयन क्षमता बढ़ती है। इतना ही नहीं, मल्चिंग से खरपतवार की समस्या का भी समाधान हो जाता है। इसके अलावा कार्बन उत्सर्जन को रोकने और भूमि की जैविक कार्बन क्षमता बढ़ाने में भी ये मददगार है।

जीवामृत निर्माण की विधि

जमीन की उर्वरा शक्ति बढ़ाने और जहरीले तत्वों से मानव जाति को बचाने के लिए गो-आधारित प्राकृतिक खेती ही सबसे प्रभावी समाधान है। गो-आधारित प्राकृतिक खेती के लिए खाद और कीटनाशक देसी गाय के गोबर और मूत्र से बनते हैं। इसके लिए गोबर, गोमूत्र, गुड़ और दो दले बीजों का आटा या बेसन और मुट्ठी भर मिट्ठी 200 लीटर पानी में इन सभी सामाग्रियों को प्लास्टिक के एक ड्रम में डाल कर लकड़ी के एक डंडे से घोला जाता है और इस घोल को सड़ने के लिए दो से तीन दिन तक छाया में रख दिया जाता है। इस दौरान इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता है कि घोल में लकड़ी का संचालन सुई की दिशा में किया जाए ताकि जीवाणुओं को ऑक्सीजन मिल पाए। वहीं इसके सड़ने से अमोनिया, कार्बनडाई आक्साइड, मीथेन जैसी हानिकारक गैसों का निर्माण होता है, इसलिए इसे ढकना अनिवार्य है।

इसलिए भी प्राकृतिक खेती है अन्य से बेहतर

प्राकृतिक खेती (जीरो बजट फार्मिंग) कृषि की प्राचीन पद्धति है। और यह विज्ञान अध्यात्म पर आधारित है। इस पद्धति में रासानियक खाद, गोबर खाद, जैविक खाद, केंचुआ खाद और जहरीले कीटनाशक, रासायनिक खरपतवार नाशक डालने की आवश्यकता नहीं है। देशी गाय की सहायता से इस खेती को कर सकते हैं। रिसर्च के अनुसार इस पद्धति से फसलों का उत्पादन अन्य विधियों की अपेक्षा ज्यादा होता है। रासायनिक खेती के उत्पाद उपभोग करने वाले ग्राहकों को बीमार करते हैं। जीरो बजट खेती से पैदा की गई सब्जियां और फल बाजार में धड़ल्ले से बिकेंगे और अच्छी कीमत भी मिलेगी। यह अच्छे स्वास्थ्य के साथ-साथ मुनाफे की भी गारंटी देती है। यही कारण है कि आजकल जीरो बजट खेती का चलन बहुत बढ़ गया है।

किसानों को प्रोत्साहित कर रही है सरकार 

भारत सरकार प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिये किसानों को प्रोत्साहित कर रही है। इसके लिए सरकार प्रोत्साहन, प्रचार और जागरूकता के साथ-साथ सब्सिडी योजना भी चला रही है। क्योंकि भारत सरकार हर साल किसानों को बड़ी मात्रा में उर्वरकों पर सब्सिडी देता है। वर्तमान में उर्वरकों पर सब्सिडी 75 हजार करोड़ रुपए है। इस आर्थिक बोझ से बचने के लिए भारत सरकार परंपरागत कृषि विकास योजना के तहत प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दे रही है। भारत सरकार के इस प्रयास को सफल बनाने के लिए देश के अलग-अलग राज्य अपने-अपने स्तर पर प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दे रहे हैं। इसमें गुजरात, हरियाणा, आंध्रप्रेदश, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, बिहार, केरल, उत्तराखण्ड आदि प्रदेश प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दे रहे हैं। इन राज्यों में जो किसान अपनी स्वेच्छा से प्राकृतिक खेती अपनाएंगे तो उन्हें देसी गाय खरीदने पर सब्सिडी का फायदा होगा। 

ट्रैक्टरगुरु आपको अपडेट रखने के लिए हर माह कुबोटा ट्रैक्टर  व सोलिस ट्रैक्टर कंपनियों सहित अन्य ट्रैक्टर कंपनियों की मासिक सेल्स रिपोर्ट प्रकाशित करता है। ट्रैक्टर्स सेल्स रिपोर्ट में ट्रैक्टर की थोक व खुदरा बिक्री की राज्यवार, जिलेवार, एचपी के अनुसार जानकारी दी जाती है। साथ ही ट्रैक्टरगुरु आपको सेल्स रिपोर्ट की मासिक सदस्यता भी प्रदान करता है। अगर आप मासिक सदस्यता प्राप्त करना चाहते हैं तो हमसे संपर्क करें।

Website - TractorGuru.in
Instagram - https://bit.ly/3wcqzqM
FaceBook - https://bit.ly/3KUyG0y

Call Back Button

क्विक लिंक

लोकप्रिय ट्रैक्टर ब्रांड

सर्वाधिक खोजे गए ट्रैक्टर