Potato New variety : देश में आलू की खेती (Potato farming) काफी बड़े पैमाने पर की जाती है। किसानों द्वारा आलू की खेती रबी मौसम अथवा शरदऋतु में की जाती है। आलू की उपज क्षमता समय के अनुसार अन्य सभी फसलों से कहीं ज्यादा है इसलिए इसको हमेशा से एक नकदी फसल के रूप में देखा जाता है। आलू भूमि के अंदर पैदा होने वाली एक कंद सब्जी फसल है, जिसकी खेती करना बहुत आसान है। हालांकि बीते कुछ वर्षो से आलू की कम होती पैदावार के कारण किसान इसकी खेती करना कम ही पसंद करते हैं। इसके पीछे मुख्य कारण बाजार कीमतों में उतार-चढ़ाव और जलवायु परिवर्तन से उत्पन होने वाली समस्या है। लेकिन कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक आलू की खेती से बेहतर पैदावार लेना कोई बहुत मुश्किल काम नहीं है। बस इसकी खेती के लिए उन्नत किस्म के बीजों का इस्तेमाल और खेती करने सही तरीके की जानकारी होना जरूरी है। इस बीच आलू प्रौद्योगिकी शामगढ़ में आलू मिट्टी या जमीन में नहीं बल्कि हवा में उगाया जा रहा है।
दरअसल संस्थान के कृषि वैज्ञानिकों ने हाई क्वालिटी के आलू बीज किसानों को उपलब्ध कराने के लिए एरोपोनिक तकनीक से आलू की एक नई किस्म कुफरी को ईजाद किया है। शामगढ़ करनाल के आलू प्रौद्योगिकी संस्थान के वैज्ञानिकों का कहना है कि आलू की ये नई प्रकार की किस्म आलू की खेती करने वाले किसानों के लिए वरदान साबित हो सकती है। एरोपोनिक विधि से उगने वाली आलू की यह किस्म न्यूट्रिशयन से भरपूर है और किसानों की आय को दोगुना करने के लिए उपयोगी होगी। बहुत जल्द ही आलू की इस नई कुफरी उदय किस्म को किसानों के लिए उपलब्ध कराया जाएगा।
उगाने के लिए मिट्टी और जमीन की नहीं है जरूरत
शामगढ़ करनाल के आलू प्रौद्योगिकी संस्थान में एरोपोनिक तकनीक से आलू की नई प्रकार की किस्मों को उगाया गया है। इस आलू की किस्म की खास बात ये है कि इसे उगाने के लिए मिट्टी और जमीन की जरूरत नहीं है। इस नई तकनीक से खेती करने के लिए किसान प्रौद्योगिकी संस्थान पहुंच रहे हैं। आलू की इस नई किस्म “कुफरी उदय” के बीज किसानों तक अभी नहीं पहुंचे हैं। क्योंकि अभी इस वैरायटी के आलू एरोपोनिक तकनीक से सिर्फ आलू प्रौद्योगिकी संस्थान शामगढ़ में उगाए जा रहे हैं। जल्द ही इसके बीज मिनी ट्यूबर्स में बदल जाएंगे, तब इस नई किस्म के बीजों को किसानों को खेती के लिए दिया जाएगा।
आलू की इस नई वैराइटी की खासियत
शामगढ़ के आलू प्रौद्योगिकी संस्थान के कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि कुफरी किस्म के आलू के लगभग 5-6 लाख मिनी ट्यूबर्स तैयार करने का लक्ष्य है। क्योंकि बाजार में इस नई वैरायटी की काफी ज्यादा मांग है। आलू की इस नई वैरायटी की खास बात ये है कि यह पिंक कलर की है और इसका उत्पादन काफी अधिक मात्रा में होता है। भविष्य में इस किस्म की बहुत ज्यादा मांग बढ़ेगी और किसानों को भी बाजारों में इसका काफी अच्छा दाम मिलेगा। वैज्ञानिकों का कहना है कि आलू की इस नई किस्म की उत्पादन क्षमता सामान्य आलू किस्म से 4-5 गुना ज्यादा है। इसकी खासियत यह है कि ये मात्र 60 से 65 दिनों में तैयार हो जाती है। आलू की कुफरी किस्म पुखराज वैरायटी के आलुओं को भी टक्कर दे सकती है। कम समय में अधिक पैदावार और ज्यादा मुनाफा कमाने के लिए आलू की कुफरी उदय किस्म किसानों के लिए बहुत फायदेमंद साबित होगी।
आलू की इस नई किस्म के बीज लेने आ रहे किसान
आलू प्रौद्योगिकी संस्थान के वैज्ञानिकों का कहना है कि आलू की इस नई किस्म के बीज लेने के लिए उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, राजस्थान और पंजाब जैसे दूसरे राज्यों से किसान आ रहे हैं। परंतु संस्थान की प्राथमिकता हरियाणा के किसान हैं। क्योंकि आलू की ये खास नई किस्म उन्हीं के लिए तैयार की गई है, जिससे राज्य के किसानों को हाई क्वालिटी के अच्छे आलू का बीज खेती के लिए मिल सके। एरोपोनिक तकनीक से नई वैराइटी के आलू का ट्रायल किया जा रहा है, जिनके बेहद अच्छे परिणाम सामने आ रहे हैं। इनमें कुफरी उदय व कुफरी पुष्कर आलू की किस्में फातियाबाद, सिरसा तथा हिसार के किसानों को बहुत पसंद भी आ रही है। वैज्ञानिकों ने बताया है कि प्रौद्योगिकी संस्थान में कुफरी चिप सोना-1 और कुफरी प्राई सोना जैसे आलू की किस्मों के मिनी ट्यूबर्स भी जनवरी-फरवरी तक उपलब्ध हो जाएंगे। इनका रंग काफी आकर्षक है और कम समय में ज्यादा पैदावार होती है। इसके अतिरिक्त, कुफरी मोहन, कुफरी संगम और कुफरी पुष्कर के बीज संस्थान में उपलब्ध है। किसान केंद्र जाकर या फिर ऑनलाइन भी इन बीजों को खरीदा जा सकता है।
एरोपोनिक तकनीक
आलू प्रौद्योगिकी संस्थान शामगढ़ के कृषि वैज्ञानिकों ने बताया कि एरोपोनिक तकनीक खेती की एक आधुनिक तकनीक है। इसमें मिट्टी या जमीन की आवश्यकता नहीं होती है। इस तकनीक में कोहरे और हवा वाले वातावरण में आलू की इस प्रकार की वैरायटी को उगाया जाता है। इस वैरायटी को उगाने के लिए सबसे पहले बड़े-बड़े थर्माकोल और प्लास्टिक के एरोपोनिक ग्रोबॉक्स के अंदर आलू के माइक्रो प्लांट को ट्रांसप्लांट करते हैं और प्रत्येक ग्रोबॉक्स में पौधों के ग्रोथ के लिए न्यूट्रिएंट सॉल्यूशन के जरिए दिया जाता है। इसमें कोकोपिट या मिट्टी का इस्तेमाल नहीं होता, हार्डनिंग करने के बाद ट्रांसप्लांट करते हैं। कुछ समय के बाद आलू के छोटे-छोटे टयूबर बनने शुरू हो जाते हैं।
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