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चने की ये तीन किस्में देंगी ज्यादा पैदावार, जल्दी करें बुवाई

चने की ये तीन किस्में देंगी ज्यादा पैदावार, जल्दी करें बुवाई
पोस्ट -27 अक्टूबर 2023 शेयर पोस्ट

चने की खेती : सूखे में भी चने की ये किस्में देंगी भरपूर पैदावर, जानें खासियत

रबी की फसल : जलवायु परिवर्तन के कारण बीते कई वर्षा से किसानों को खेती में आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है। प्रतिकूल मौसम स्थिति से फसलों का उत्पादन और उत्पादकता कम होना किसानों के लिए सबसे बड़ी समस्या बनती जा रही है। प्रतिकूल मौसम का प्रभाव मानव, जीव-जंतु समेत पेड़-पौधों और कृषि पर होता है। ऐसे में मौसम अनिश्चितता की जोखिम को कम करने के लिए ये बेहद जरूर हो जाता है कि खेती जलवायु अनुकूल की जाए। कृषि विश्वविद्यालयों द्वारा फसलों का उत्पादन व उत्पादकता बढ़ाने और जलवायु परिवर्तन की जोखिमों को कम करने के लिए फसलों की नई-नई उन्नत किस्मों को विकसित किया जा रहा है। इसी बीच आईसीआरआईएसएटी की मदद से आईसीएआर के संस्थानों ने चने की तीन नई किस्में विकसित की है, जो सूखा सहनशील और रोग-प्रतिरोधी है। शोध संस्थानों द्वारा विकसित चने की ये तीनों किस्में सूखा की स्थिति में भी किसानों को अधिक पैदावार देने में समक्ष है। सूखाग्रस्त क्षेत्रों के किसानों के लिए चने की ये तीनों किस्में बहुत उपयोगी साबित हो रही है। किसान सूखा सहन करने वाली इन किस्मों की बुवाई कर जलवायु परिवर्तन में भी भरपूर पैदावार प्राप्त कर रहे हैं।

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गौरतलब है कि देश में रबी सीजन में चने की बुवाई का अनुकूल समय शुरू हो चुका है। ऐसे में चना की खेती करने वाले किसान सूखा से सहनशील चने की इन तीन किस्मों की बुवाई कर सकते हैं। आईए इस पोस्ट की मदद से जलवायु-लचीली व रोग-प्रतिरोधी चने की इन किस्मों की खासियत के बारे में जानते हैं।     

सूखा सहन करने वाले चने की तीन नई किस्में  

जलवायु परिवर्तन की जोखिम को कम कर सूखा परिस्थितियों में भी चने की खेती से अधिक पैदावार लेने के लिए आईसीएआर के संस्थानों ने आईसीआरआईएसएटी के सहयोग से पूसा 4005, आइपीसीएल 4-14 और समृद्धि नाम से चने की तीन नई किस्मों को विकसित किया है, जो सूखा सहनशील है। चने की ये तीनों किस्में बदलते जलवायु परिवर्तन के हिसाब से अधिक तापमान में वृद्धि करने और रोग-प्रतिरोधी क्षमता के साथ अधिक पैदावार देने के लिए विकसित की गई हैं। जलवायु-लचीली और रोग-प्रतिरोधी चने की इन तीन किस्मों को केंद्रीय किस्म विमोचन समिति द्वारा वर्ष 2021 में किसानों के लिए जारी किया था। 

कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार, देश के चना उत्पादक इलाकों में बदलते जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ते तापमान और सूखे से चने का उत्पादन सालाना 60 प्रतिशत तक घटा है। ऐसे में सूखा सहनशील चने की ये तीन नई किस्में पूसा 4005, समृद्धि और आइपीएसीएल 4-14 किसानों को बदलती जलवायु परिस्थितियों में भी चने की खेती से बेहतर पैदावार दिला सकती हैं।  बरसात आधारित सिंचाई क्षेत्र हो या सिंचाई क्षेत्र, दोनों ही क्षेत्रों में ये तीनों किस्में किसानों के लिए बहुत उपयोगी साबित हो सकती है और खेती में ज्यादा पैदावार दे सकती हैं।

क्र. सं.  फसल विशेषता किस्म का नाम राज्य/ केंद्र शासित प्रदेशों के लिए अधिसूचित
1. चना सूखा सहनशील / रोग-प्रतिरोधी आइपीएसीएल 4-14 हरियाणा, जम्मू और कश्मीर के मैदानी इलाकों, राजस्थान के कुछ हिस्सों और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लिए ।
2. चना सूखा सहनशील / रोग-प्रतिरोधी पूसा 4005 पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लिए।
3. चना सूखा सहनशील / रोग-प्रतिरोधी समृद्धि चना हरियाणा, राजस्थान के कुछ हिस्सों, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और जम्मू कश्मीर के मैदानी भागों के लिए।

पूसा 4005 चना किस्म : पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अधिसूचित

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान ने चने की पूसा 4005 (बीजीएम 4005) किस्म को पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों के लिए साल 2021 में खेती के लिए अधिसूचित किया था। चने की यह किस्म जलवायु परिवर्तन अनुकूल और रोग-प्रतिरोधी है। यह किस्में सूखे की परिस्थितियों में किसानों को लगभग 8 क्विंटल प्रति एकड़ की पैदावार देने की क्षमता रखती है। पूसा 4005 चना किस्म की फसल बुवाई के 130-135 दिन पश्चात कटाई के लिए तैयार हो जाती है। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान द्वारा चने की इस किस्म को जलवायु परिवर्तन परिस्थितियों व अन्य कारकों से पैदा हुई चुनौतियों के समाधान के लिए तैयार किया गया है। पूसा 4005 किस्म उकठा रोग (विल्ट), कॉलर रोट रोग, स्टंट रोगों के प्रति मध्यम रूप से रोग-प्रतिरोधी है। साथ ही ये किस्म शुष्क जड़ सड़न के प्रति मध्यम रूप से सहनशील है। 

आइपीसीएल 4-14 चने की किस्म, सिंचित और समय से बुवाई के लिए बेहतर

आइपीसीएल 4-14 चने की किस्म को भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान कानपुर द्वारा विकसित किया गया है। इस किस्म को भारतीय किसानों के लिए साल 2021 में केंद्रीय किस्म विमोचन समिति द्वारा खेती के लिए रिलीज किया गया था। इस किस्म की उत्पादक क्षमता प्रति एकड़ 78 क्विंटल है। चने की यह किस्म बुआई के 128-133 दिनों  के बाद उत्पादन देने के तैयार हो जाती है। भारत में चने की खेती को प्रभावित करने वाली जलवायु परिस्थितियों और अन्य कारकों से उत्पन्न चुनौतियों के समाधान करने के लिए आइपीसीएल 4-14 किस्म को इजाद किया गया है। गर्म और सूखे वातावरण की स्थिति में भी यह किस्म बेहतर उत्पादन देने में सक्षम है। इस किस्म को हरियाणा, पंजाब, जम्मू-कश्मीर के मैदानी इलाकों, राजस्थान के कुछ इलाकों और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लिए अधिसूचित किया गया है। सिंचित क्षेत्रों में समय से चने की खेती करने वाले किसान भाईयों के लिए चने की आइपीसीएल 4-14 किस्म बहुत उपयोगी है। यह किस्म विल्ट, कॉलर रोट, स्टंट रोग-प्रतिरोधी चना किस्म है। 

समृद्धि (आईपीसीएमबी 19-3) चना किस्म :  इन राज्यों में खेती के लिए बेहतर

भारतीय दलहन अनुसंधान केंद्र कानपुर द्वारा विकसित चना किस्म समृद्धि (आईपीसीएमबी 19-3) को  2021 में चना की खेती करने वाले किसानों के लिए जारी किया गया था। चने की यह किस्म सिंचित स्थिति में खेती के लिए उपयोगी है। इस किस्म में उकठा रोग का प्रकोप नहीं होता है। समय से चने की खेती करने वाले किसान भाई चने की इस किस्म की बुवाई कर इसकी खेती से प्रति एकड़ 8-9 क्विंटल की पैदावार हासिल कर सकते हैं। केंद्रीय किस्म विमोचन समिति द्वारा समृद्धि (आईपीसीएमबी 19-3) चना किस्म को मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात और उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में खेती के लिए रिलीज किया गया है। 

चने की खेती में रखें इन बातों का ख्याल

कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक, चने की खेती करने का उपयुक्त समय मध्य अक्टूबर से नवंबर महीने के अंत तक माना गया है। चने की बुवाई चिकनी दोमट या बारीक दोमट मिट्टी वाले खेतों में करनी चाहिए। चने के बीज की बुवाई सीड ड्रिल से 6-8 सेमी. गहराई और लाइन से लाइन की दूरी 30-45 सेमी रखते हुए होनी चाहिए। छोटे आकार के बीज के लिए 26 किग्रा और मध्यम आकार के चने की किस्म के बीज दर 30 किग्रा तथा बड़े आकार के चने किस्म के लिए 40 किग्रा बीज दर प्रति एकड़ की आवश्यकता खेती के लिए होती है। बीज बोने से पहले बीज का उपचार 2.5 ग्राम थीरम या 1 ग्राम बाविस्टिन प्रति किलोग्राम बीज की दर करना चाहिए। कीटों की रोकथाम के लिए क्लोरपाइरीफोस 1 मिलीलीटर प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करना न भूले। अधिक पैदावार के लिए राइजोबियम कल्चर 200 ग्राम प्रति 10 किग्रा बीज दर से उपचारित करें।

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