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Gram Crop : चने को खतरनाक रोग और कीटों से बचाने के लिए तुरंत करें ये उपाय

Gram Crop : चने को खतरनाक रोग और कीटों से बचाने के लिए तुरंत करें ये उपाय
पोस्ट -10 दिसम्बर 2024 शेयर पोस्ट

Gram Crop : चने की समय पर बुवाई और सही तरीकों से फसल की देखभाल कर काले धब्बे रोग और कीटों से करें बचाव

चने की खेती करने वाले किसान सावधान हो जाए, क्योंकि दिसंबर का महीना चने की खेती के लिए काफी महत्वपूर्ण समय होता है। इस समय फसल में उचित प्रबंधन और तकनीकी सावधानियों के साथ आप रोग-कीट के प्रकोप से फसल का बचाव कर सकते हैं और अच्छी पैदावार हासिल कर सकते हैं। देश में चने की खेती रबी मौसम में की जाती है। अभी ज्यादातर जगहों में दलहन फसल में प्रमुख फसल चने की बुवाई चल रही है। 

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कृषि विज्ञान केंद्र के विशेषज्ञों के मुताबिक, चना की बुवाई 15 दिसंबर तक कर देनी चाहिए। फसल की बुवाई में देर होने पर पैदावार काफी हद तक प्रभावित होती है और ठंड के मौसम में चना की फसल में उकठा रोग (फ्यूजेरियम वील्ट) यानी चना फली भेटर कीट के कारण बड़े पैमाने पर नुकसान की आशंका रहती है। हालांकि, समय पर बुवाई और सही तरीकों से फसल की देखभाल कर इस रोग की रोकथाम की जा सकती है और फसल को नष्ट होने से बचाया जा सकता है। आइए, चने में होने वाले इस खतरनाक उकठा रोग (काले धब्बे) से फसल की देखभाल करें और इसकी रोकथाम के उपाय के बारे में जानें। 

फली भेदक कीटों का हमला होने की संभावना (Possibility of attack by pod borer insects)

कृषि एक्सपर्ट्स के अनुसार, अगर चना की बुवाई में देरी हो या बिना उपचार के बीजों का उपयोग किया जाता है, तो इससे फसल में कीट और रोगों का प्रकोप बढ़ सकता है। साथ ही पैदावार घटने का खतरा भी रहता है। खासतौर पर दिसंबर के मध्य के बाद बुवाई करने पर फली भेदक कीटों का हमला होने की संभावना अधिक रहती है। हर साल काफी बड़ी संख्या में ऐसे किसान होते हैं, जो बिना उपचार के बीजों की बुवाई कर देते हैं, जिससे चना फसल में उकठा रोग का खतरा बढ़ जाता है, अगर इसका समय पर उपचार नहीं किया जाए तो यह प्रकोप पूरी फसल को चौपट कर सकता है। 

चना में दिखे ऐसे लक्षण तो हो जाएं सावधान (Be careful if you see such symptoms in gram)

कृषि एक्सपर्ट्स बताते हैं कि चना की फसल के लिए उकठा रोग सबसे गंभीर रोगों में से एक है। यह रोग पूरी फसल को नष्ट कर सकता है। यह रोग फ्यूजेरियम ऑक्सीस्पोरम प्रजाति साइसेरी नामक फफूंद के कारण होता है, जो मिट्टी और बीजों से होता है। इस रोग का प्रकोप पौधे के किसी भी विकास चरण में देखा जा सकता है। शुरुआत में उकठा रोग खेत के छोटे हिस्सों में नजर आता है, लेकिन धीरे-धीरे यह पूरे खेत में फैल जाता है। इस रोग से प्रभावित पौधे की पत्तियां सूखकर मुरझा जाती है, इसके बाद में पूरा पौधा सूख जाता है। रोगग्रस्त पौधे की जड़ के पास चीरा लगाने पर काले रंग की संरचना दिखाई देती है। एक्सपर्ट्स के मुताबिक, इस रोग का प्रकोप फसल में फली लगने से पहले अधिक गंभीर होता है। 

रोग की रोकथाम के उपाय (Disease prevention measures)

फसल में उकठा रोग की रोकथाम के लिए समय पर उपाय करना बेहद जरूरी है। फसल में उकठा रोग के शुरुआती लक्षण दिखें, तो फसल की जड़ों में कार्बेन्डाजिम 50 डब्ल्यू.पी. 0.2 प्रतिशत घोल का समय पर छिड़काव करना चाहिए। बुवाई से पहले बीजों का उपचार करना अनिवार्य है। रोग के रोकथाम के लिए फसल की समय पर निगरानी और कवकनाशकों का सही तरीके से इस्तेमाल करना चाहिए। 

किसान सही तरीकों से फसल की करें देखभाल (Farmers should take proper care of their crops)

विशेषज्ञों के अनुसार, चने की खेती करने वाले किसानों को फसल चक्र और जैविक विधियों का भी सहारा लेना चाहिए, जिससे मिट्टी की गुणवत्ता बनी रहे और रोग फैलने की संभावना कम हो। जिस खेत में उकठा रोग का प्रकोप पहले हो चुका हो, उस खेत में कुछ सालों तक चने की खेती नहीं करनी चाहिए। कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि चने की खेती के लिए उकठा रोगरोधी चना किस्मों जैसे पूसा-372, जेजी 11, जेजी 12, जेजी 16, जेजी 63, जेजी 74, जेजी 130, जेजी 32, आरएसजी 888, आरएसजी 896, डीसीपी-92-3, हरियाणा चना-1, जीएनजी 663 व काबुली प्रजातियां जैस-पूसा चमत्कार, जवाहर काबुली चना-1, विजय, फूले जी-95311, जेजीके 1, जेजीके 2, जेजीके 3 की बुवाई करनी चाहिए। समय पर जानकारी और सही रोकथाम उपाय से ना केवल पैदावार बढ़ाई जा सकती है, बल्कि फसल से बेहतर गुणवत्ता वाली पैदावार भी हासिल की जा सकती है। 

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