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ग्रीष्मकालीन मूंग की खेती: गरमा मूंग की खेती कैसे करें जानें पूरी जानकारी

ग्रीष्मकालीन मूंग की खेती: गरमा मूंग की खेती कैसे करें जानें पूरी जानकारी
पोस्ट -25 मार्च 2023 शेयर पोस्ट

मूंग की खेती : ग्रीष्मकालीन मूंग से बढ़िया पैदावार के लिए अपनाएं खेती का ये तरीका

मूंग दलहनी फसलों में एक प्रमुख है। यह शक्ति-वर्द्धक दाल फसल है। इसमें पोषक तत्व और प्रोटीन की मात्रा भरपूर होती है। मूंग दाल में 25 प्रतिशत प्रोटीन, 60 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट, 13 प्रतिशत फैट (वसा) तथा अल्प मात्रा में विटामिन सी पाया जाता है। मूंग बुखार/ज्वर और कब्ज के लिए काफी लाभकारी होती है। मूंग खेती मुख्य रूप से राजस्थान में की जाती है। राजस्थान की जलवायु मूंग की खेती के लिए उपयुक्त है। इसके अलावा, मूंग की खेती मध्य प्रदेश, गुजरात हरियाणा और उत्तर प्रदेश में भी की जाती है। मूंग की खेती कम लागत एवं समय में खरीफ, रबी और जायद तीनों सीजन में आसानी से की जा सकती हैं। अभी रबी की फसल की कटाई के बाद किसानों खेत खाली हो जाएंगे। अगली फसलों की बुवाई जून-जुलाई में की जाएंगी। इस बीच खेतों को खाली छोड़ने से अच्छा है कि खेतों में किसान भाई गरमा सीजन में मूंग की बुवाई कर लें। ग्रीष्मकालीन मूंग की फसल उच्च तापमान को सहन कर सकती है और यह जल्दी पकने वाली फसल है। खास बात यह है कि मूंग जमीन में नाइट्रोजन की मात्रा को बढ़ाती है, जिससे अगली  फसलों से बढ़िया उत्पादन प्राप्त होता है। ऐसे में किसान भाई खेत खाली छोड़ने के स्थान पर मूंग की खेती कर अच्छा लाभ कमा सकते हैं। आईये, इस पोस्ट के माध्यम से गरमा मूंग की खेती का पूरा गणित जानते हैं। 

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भूमि की उर्वराशक्ति में वृद्धि 

मूंग फसल का सबसे बड़ा लाभ यह होता है कि इसकी फसल भूमि की उर्वराशक्ति में वृद्धि करती है, क्योंकि इसके पौधे स्वयं भूमि में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ाते हैं। खास बात यह है कि मूंग की फसल से उत्पादन प्राप्त करने के बाद इसके अवशेषों के प्रबंधन की कोई खास दिक्कत नहीं होती है। किसानों भाई इसके फसल अवशेषों को खेत में मिट्टी पलटने वाले हल, हैरो या डिस्क हैरो की मदद से पलटकर मिट्टी में दबा देते है।, जिससे यह खेत में हरी खाद का काम करती है। हरी खाद भूमि की उर्वराशक्ति में वृद्धि करने में काफी मददगार  होती है। 

गरमा मूंग की खेती में लागत और होने वाली कमाई

मूंग 50 से 60 दिनों में तैयार होने वाली जायद सीजन की फसल है। यह बिजाई के बाद करीब 60 से 70 दिनों में कटाई के लिए पूर्ण रूप से तैयार हो जाती है। अगर मूंग की खेती उन्नत किस्म और कृषि विशेषज्ञों की सलाह से की जाये तो इसकी खेती से 10 से 15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। सामान्य विधि से इसकी खेती से औसतन 7 से 8 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की पैदावार प्राप्त होती है। इसकी खेती अगर किसान एक हेक्टयर के क्षेत्र में करता है, तो खेती में तकरीबन 18 से 20 हजार रुपए का खर्च आता है। बाजार में मूंग का थोक भाव करीब 6 हजार से 9 हजार रुपए प्रति क्विंटल के आस-पास किसानों को मिल जाता है। इस हिसाब से लागत खर्च को निकालकर किसान भाई मूंग की खेती से मात्र 50 से 60 दिनों में 40 से 65 हजार तक की कमाई कर सकते हैं।

मूंग की खेती के लिए उपयुक्त वातावरण 

मूंग की फसल को किसी खास तरह के वातावरण की आवश्यकता नहीं होती है। यह उच्च ताप को आसानी से सहन कर सकती है। इसकी खेती के लिए न्यूनतम 25 डिग्री और अधिकतम 35 से 40 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है। मूंग की खेती खरीफ, रबी एवं जायद तीनों मौसम में किसान भाई कर सकते हैं। जिन क्षेत्रों में 60 से 75 सेमी वार्षिक वर्षा होती है, उन क्षेत्रों में मूंग की खेती किसी वरदान से कम नहीं है।  वहां के लिए उपयुक्त होती है। 

उपयुक्त भूमि और समय

मूंग की खेती के लिए अच्छी जल निकासी वाली दोमट, मटियार भूमि को उपयुक्त माना गया है। इसकी खेती के लिए भूमि का पीएच मान 7 से 8 के मध्य होना चाहिए।  मूंग की फसल की बुवाई जुलाई महीने के पहले हफ्ते से महीने के अंत करना उपयुक्त माना गया है। यदि किसान भाई ग्रीष्मकालीन मूंग की खेती करना चाहते हैं, तो इसकी बुवाई मार्च के पहले हफ्ते से अप्रैल के दूसरे हफ्ते तक कर लेनी चाहिए। 

मूंग की फसल की बिजाई का तरीका

मूंग की फसल की बिजाई करने से पहले खेत को अच्छे से तैयार करना चाहिए। खेत तैयार करने के लिए हैरो या मिट्टी पलटने वाले रिजर हल एवं डिस्क हैरो से पहली जुताई करनी चाहिए। दीमक के नियंत्रण के लिए खेत में क्यूनालफास 1.5 प्रतिशत चूर्ण 25 किलोग्राम प्रति एकड़ के हिसाब से डालकर कल्टीवेटर या रोटावेटर की मदद से एक जुताई करें। मूंग के बीजों को खेत में बोने से पहले 3 ग्राम थायरम फफूंदनाशक दवा से प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करें। इसके अलावा, 600 ग्राम राइजोबियम कल्चर को एक लीटर पानी में 250 ग्राम गुड़ के साथ गर्म कर ठंडा होने पर मूंग के बीजों को उपचारित करना चाहिए। इसके बाद उपचारित मूंग के बीजों को 25 से 30 सेमी कतार से कतार एवं 5 से 7 सेमी पौधे से पौधे की दूरी रखते हुए बिजाई करें। 

मूंग की फसल में लगने वाले रोग एवं रोग प्रबंधन

मूंग की फसल मुख्य रूप से फफूंदजनित रोगों में चूर्णी कवक, मैक्रोफोमिना झुलसन, सरकोस्पोरा पर्ण दाग तथा एन्थ्रेक्नोज आदि से प्रभावित होती है। इसके अलावा मूंग की फसल में पिस्सू भृंग, फली भेदक कीट तथा पत्ती मोड़क जैसे कीट का प्रकोप मुख्य रूप से होता है। फफूंदजनित रोगों के रोग प्रबंधन के लिए फसल बुवाई के 25 से 30 दिनों पश्चात फसल पर कार्बेन्डाजिम दवा की 500 ग्राम की मात्रा 500 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। इसके अलावा, फसल में भेदक कीटों में पिस्सू भृंग, फली भेदक कीट तथा पत्ती मोड़क आदि के नियंत्रण के लिये प्रोफेनोफॉस की 1 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर छिड़काव करें। इसके स्थान पर क्लोरेन्ट्रानिलिट्रोल की 500 मिली या स्पाइनोसैड की 125 ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव कर सकते हैं। वहीं, सफेद मक्खी के प्रबंधन के लि डाइमिथिएट की 400 मिली या इमिडाक्लोप्रिड की 150 मिली प्रति हेक्टेयर मात्रा 350 से 400 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव कर सकते हैं।  

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