काबुली चने की नई किस्म (new variety of chickpea) : बीते कुछ सालों में भारत कृषि उत्पादों का प्रमुख निर्यातक देश बनकर पूरी दुनिया में अपना लोहा मनवा रहा है। खाद्यान्न आपूर्ति में भारत अपनी जरूरतों के साथ-साथ दुनिया की जरूरतों को भी पूरा कर रहा है। केंद्र और राज्य सरकारों से लेकर देश के कृषि वैज्ञानिक भी अब कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए किसानों को प्रेरित कर रहे हैं। केंद्र एवं राज्य सरकारें कई सब्सिडी योजनाएं चला रही है। पिछले कुछ सालों से मानसूनी बारिश की असामान्यता को देखते केंद्र एवं राज्य सरकारें दलहनी फसलों की खेती करने के लिए किसानों को प्रोत्साहित कर रही है। दलहन उत्पादन में किसानों को अधिक आत्मनिर्भर और सशक्त बनाने के लिए देश के कृषि वैज्ञानिकों द्वारा नई-नई तकनीक और किस्मों को इजाद किया जा रहा है। ताकि इन तकनीक और किस्मों से कम लागत और कम पानी पर किसान बंपर पैदावार ले सके। इस बीच किसानों के लिए अच्छी खबर है। अनुसंधान सेंटर, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR), भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) ने ’पूसा जेजी 16’ नामक काबुली चने की नई किस्म विकसित की है, जो सूखा और कम पानी वाले क्षेत्रों में बंपर पैदावार देने में सक्षम है। यानि इस किस्म की खेती उन सूखे इलाकों में की जा सकती है जहां पानी का स्तर काफी नीचे है और सिंचाई के लिए पर्याप्त जल नहीं मिलता है। कृषि वैज्ञानिक का दावा है कि काबुली चने की यह किस्म सूखाग्रस्त क्षेत्रों में वरदान साबित होगी और कम पानी और कम खर्च में किसानों की आमदनी बढ़ाएंगी। आइए ट्रैक्टरगुरु के इस लेख के माध्यम से काबुली चने की इस नई किस्म पूसा जेजी 16 के बारे में जानते है।
चना उत्पादन में देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए आईसीएआर-आईएआरआई के वैज्ञानिकों ने ’पूसा जेजी 16’ नामक काबुली चना की नई किस्म विकसित की है। काबुली चने की इस नई किस्म की खास बात यह है कि इसे सिंचाई की कम जरूरत होती है। इस किस्म की खेती सूखाग्रस्त क्षेत्रों में आसानी से की जा सकती है। ’पूसा जेजी 16’ से कम पानी वाले इलाकों में बढि़या पैदावार ले सकते है। काबुली चने की ’पूसा जेजी 16’ किस्म मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, दक्षिणी राजस्थान, महाराष्ट्र और गुजरात में जैसे सूखग्रस्त क्षेत्रों में उगाई जा सकती है। इन क्षेत्रों में सूखे की वजह से 50 से 100 फीसदी उपज खराब हो जाती है। एक्सपर्ट्स बताते हैं कि काबुली चना की पूसा जेजी-16 सूखा जैसी परिस्थितियों का सामने करते हुए अच्छी उपज देगी और मध्य भारत में चना का उत्पादन बढ़ाने में किसानों के लिए वरदान साबित होगी।
सरकारी रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन (ICAR) और भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) ने जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर, राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय, ग्वालियर और आईसीआरआईएसएटी, पाटनचेरु, हैदाराबाद ने सूखा सहिष्णु किस्मों का विकास एवं उच्च पैदावार देने वाली काबुली चने की किस्म पूसा जेजी 16’ विकसित की है। काबुली चने की नई किस्म ’पूसा जेजी 16’ को विकसित करने के लिए ’जीनोमिक असिस्टेड ब्रीडिंग’ तकनीकों का उपयोग किया गया है। बता दें कि कृषि वैज्ञानिकों ने ICC 4958 से सूखा-प्रतिरोधी जीन को मूल किस्म JG 16 में ट्रांसफर करना संभव बना लिया है।
बताया जा रहा है कि काबुली चना अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान कार्यक्रम ने राष्ट्रीय स्तर पर काबुली चने की किस्म पूसा जेजी 16’ का परीक्षण किया गया, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि यह सूखे का सामना कर सके। जानकारों के मुताबिक, इस किस्म को सूखे का सामना करने वाली किस्म होने की घोषणा कृषि मंत्रालय ने की। इस घोषणा से आईसीएआर-आईएआरआई के प्रमुख ए.के. सिंह खुश हैं। उन्होंने कहा कि यह किस्म देश के मध्य क्षेत्र में किसानों के लिए एक बड़ी मददगार होगी, जहां सूखा आम है। काबुली चने की इस नई प्रजाति पूसा जेजी 16 की खेती से मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, दक्षिणी राजस्थान, महाराष्ट्र और गुजरात में चने की उत्पादकता बढ़ जाएगी। काबुली चने यह किस्म फ्यूजेरियम विल्ट और स्टंट रोगों के लिए प्रतिरोधी भी है। अच्छी बात ये है कि यह किस्म अपने मूल जेजी 16 किस्म से अधिक पैदावार दे सकती है। यहां तक कम पानी वाले इलाकों या सूखा प्रभावित क्षेत्र में भी यह किस्म (1.3 टन/हेक्टेयर से 2 टन/ हेक्टेयर) उपज दे सकती है। एक्सपर्ट्स बताते है कि पूसा जेजी 16 काबुली चने की नई प्रजाति 110 दिन से भी कम समय में पककर तैयार हो जाती है। इन क्षेत्रों में किसान इस किस्म से कम खर्च में ही बंपर पैदावार ले सकते हैं।
जानकारों के मुताबिक, दुनिया में चना उत्पादन में भारत सबसे बड़ा देश है और देश में चने के क्षेत्रफल और उत्पादन में मध्य प्रदेश का प्रथम स्थान है। चने के अंतर्गत कुल क्षेत्रफल के 85 प्रतिशत हिस्से में देशी चना तथा 15 प्रतिशत भाग में काबुली चने की खेती होती है। आमतौर पर चने की खेती में चना की कटाई-गहाई में काफी समय लग जाता है। क्योंकि इसके पौधे छोटे होते है। चने की फसल की हार्वेस्टर से कटाई नहीं हो पाती थी। लेकिन कुछ दिन पहले ही कृषि वैज्ञानिकों ने जवाहर चना-24 किस्म इजाद की, जिसके लंबे पौधों की कटाई हार्वेस्टर मशीन से भी कर सकते हैं। चने की जवाहर चना 24 किस्म बड़े पैमाने पर चना उगाने वाले किसानों के लिए लाभकारी साबित होगी, क्योंकि आमतौर पर इस किस्म के पौधे लंबे होते हैं। जवाहर चना-24 किस्म पकने के बाद हार्वेस्टर मशीन से कटाई करके समय और श्रम दोनों बचा सकते हैं। साथ ही फसल की बर्बादी को भी कम कर सकते है।
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