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ककोड़ा की खेती : कम लागत में ज्यादा मुनाफा, जानें कैसे करें ककोड़ा की खेती

ककोड़ा की खेती : कम लागत में ज्यादा मुनाफा, जानें कैसे करें ककोड़ा की खेती
पोस्ट -28 दिसम्बर 2022 शेयर पोस्ट

ककोड़ा की खेती (Spiny Gourd) : जानें ककोड़े खेती का तरीका, उन्नत किस्में और बुवाई विधि

किसान धीरे-धीरे पारंपरिक फसलों की खेती के स्थान पर नई-नई तरह की मुनाफा देने वाली फसलों की और फोकस कर रहे है। क्योंकि देश में हर क्षेत्र में विभिन्न प्रकार की जलवायु एवं मिट्टी के अनुसार कई मुनाफा देने वाली फसलें मौजूद है। हमारे देश के जंगलों में कुछ ऐसी जंगली फसलों की प्रजातियां भी पाई जाती है। जिनकी खेती यदि किसान तकनीकी सूझबूझ और सही तरीके से करे, तो कम लागत में कई सालों तक अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है। ऐसी ही एक जंगली फसल की प्रजाति ककोड़ा है। इसे ’खेखसा’ के नाम से भी जाना जाता है। ककोड़ा या खेखला एक बहुवर्षीय कद्दूवर्गीय जंगली सब्जी फसल है। जिसकी खेती देश के कुछ ही हिस्सों में होती है। ककोड़ा (खेखला) जंगलों में स्वयं उगते है। इन्हें विशेष देख-भाल की आवश्यकता नहीं होती है। जंगलों के आस-पास के क्षेत्रों में लोग इस जंगली फसल को सब्जी के रूप में बहुतायत से उपयोग करते हैं। ककोड़ा की सब्जी का स्वाद तो अच्छा होता ही है, लेकिन यह सेहत के लिहाज से भी बहुतायत उपयोगी है। इसलिए बाजार में भी ककोड़ा की काफी डिमांड रहती है। और ककोड़ा के बीज को एक बार बोने के बाद इसके मादा पौधे से लगभग 10 वर्षों तक फल प्राप्त होते रहते हैं। ऐसे में किसान ककोड़ा की खेती से कम लागत में ज्यादा मुनाफा पा सकते है। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर किसान इसकी खेती में सही तरीके से हाथ अजमाएं, तो हर साल लाखों रुपए की कमाई कर सकते है। ट्रैक्टरगुरु के इस लेख में हम आपको मुनाफेमंद ककोड़ा (खेखला) की खेती के बारे में जानाकरी देने जा रहे है। अगर आप भी ककोड़ा की खेती करना चाहते हैं, तो यह जानकारी आपके लिए काफी लाभकारी साबित हो सकती है।

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लाभकारी, ककोड़ा की खेती (Kakoda ki Kheti ) कैसे करें?

ककोड़ा की सब्जी है। यह करेले से मिलता-जुलता होती है। इसके फल छोटे होते है, जिन पर छोटे-छोटे कांटेदार रेशे पाए जाते है। यह विशेषकर जंगली क्षेत्रों में देखे जा सकते है। जंगलों में यह अधिकतर पहाड़ी जमीन में पैदा होता है। यह बरसात के मौसम में अपने आप जंगलों-झडि़यों में उग आती है और फैल जाती है। इसके ’नर’ और ’मादा’ बेल अलग-अलग होते हैं। इसका वानस्पतिक नाम ’मोमोर्डिका डियोका’ है। ककोड़ा की सब्जी गर्म मसालों या लहसुन के साथ बनाकर खाने से वात पैदा नहीं होता है। इसके फलों का इस्तेमाल अचार बनाने के लिए किया जाता है। ककोड़ा कफ, खांसी, अरूचि, वात, पित्तनाशक और हृदय में होन वाले दर्द से राहत दिलाता है। इसकी जड़ों का उपयोग बवासीर में रक्त बहाव रोकने के लिए, पेशाब की शिकायत व बुखार होने पर बहुत लाभकारी होता है। ककोड़ा का कन्द चीनी या शहद के साथ 1 से 5 ग्राम की मात्रा में औषधि की तरह प्रयोग किया जाता है। इसके अतिरिक्त कई बीमारियों के लिए भी यह लाभदायक होता हैं। सामान्य तौर पर ककोड़ा की खेती भारत के कुछ क्षेत्रों में की जा सकती है। वर्तमान समय में यूपी के कई हिस्सों में किसान इसकी खेती से अच्छा मुनाफा हासिल कर रहे है।

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ककोड़ा की खेती से पैदावार और बाजार भाव

ककोड़ा भले ही जंगली सब्जी है। लेकिन इसका बाजार भाव 90 से 150 रुपए प्रति किलो तक होता है। इसे खरीदना किसी आम आदमी के बस के बात नहीं। जैसे ही बारिश का सीजन शुरू होता है, बाजार में ककोड़ा मिलना शुरू हो जाता है। इसकी खेती में लागत नाममात्र के बराबर होती है, जबकि एक बार की बुवाई के बाद लगभग 8 से 10 वर्षों तक इससे पैदावार मिलती रहती है। किसान इसकी बुवाई कर हर साल मोटी आमदनी का अतिरिक्त साधान बना सकते है। ककाड़ो की खेती से हर साल 4 क्विंटल प्रति एकड़ की पैदावार हासिल की जा सकती है। यह पैदावार समय के साथ-साथ हर साल बढ़ती है।

ककोड़ा की बुवाई का उचित समय

यदि आप इसकी खेती व्यापारिक स्तर पर करना चाहते है, तो इसकी खेती के लिए मौसम का विशेष ध्यान रखना होगा। ककोड़ा की बुवाई जनवारी से फरवरी महीने में की जा सकती है। और बारिश के सीजन में जुलाई महीने के अंत तक इसकी बुवाई की जा सकती है। इसकी खेती से अच्छा उत्पादन गर्मी में प्राप्त किया जा सकता है। ककोड़ा की बुवाई साल में दो बार की जा सकती है।    

ककोड़ा के बीज कहा से प्राप्त करें?

ककोड़ा न तो किसी खेत में होता है और न ही बाजार में बीज मिलता है। बारिश के सीजन में ककोड़ा की बेल अपने आप जंगलों और खेतों में किनारे दिखने लगती है। एग्रीकल्चर डिपार्टमेंट भी ककोड़ा के बीज नहीं रखता। इसके बीज केवल जंगल से मिलते है। एग्रीकल्चर डिपार्टमेंट इसके बीजों की सप्लाई सीधे जंगल से करते हैं। क्योंकि जंगल में ही ककोड़ा की पैदावार होती है। सीजन खत्म होते ही पके ककोड़े के बीज गिर जाते हैं और जैसे ही बारिश का सीजन शुरू होता है, तो पहली बारिश में ककोड़े की बेल जंगल में दिखने लगती है। यदि आपको ककोड़ा की खेती करनी है, तो जंगल से बीज लाने होगे। 

ककोड़ा की उन्नत किस्में

ककोड़ा की उन्नत किस्में में इंदिरा कंकोड़-1, अम्बिका-12-1, अम्बिका-12-2, अम्बिका-12-3 शामिल हैं। यह किस्म कीट और कीड़ों से खुद ही बचाव में सक्षम है। इन प्रजातियों में कम से कम 70 से 80 प्रतिशत तक अंकुरण क्षमता होती है। ऐसी फेमस प्रजातियां के बीज की 5 से 10 किलो प्रति हेक्टेयर आवश्यकता पड़ती है।

ककोड़ा की खेती के उपयुक्त भूमि

ककोड़ा की खेती किसी भी तरह की जीवांश युक्त उपजाऊ मिट्टी में की जा सकती हैं। लेकिन इसकी खेती के लिए पर्याप्त जीवांश एवं उचित जल निकास युक्त रेतीली भूमि को उपयुक्त माना है। पर्याप्त जानकारी के अनुसार इसकी खेती में भूमि का पी.एच मान 7 होना चाहिए। नर्म और गर्म जलवायु को इसकी खेती के लिए उपयुक्त माना जाता हैं। इसे गर्मी और बरसात दोनों मौसम में उगा सकते हैं। इसके पौधे बारिश के मौसम में अच्छे से विकास करते है। ककोड़ा की खेती उन स्थानों पर सफलतापूर्वक होती है, जहां औसत वर्षा 1500-2500 मिली. होती है और तापमान 20-30 डिग्री सेन्टीग्रेड है। इससे अधिक तापमान इसके लिए हानिकारक होता हैं।

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ककोड़ा की बुवाई के लिए खेत की तैयारी एव बुवाई विधि

ककोड़ा की अच्छी पैदावार के लिए इसके खेत की तैयारी करने से पहले खेत को 20 से 25 टन प्रति हेक्टेयर गोबर की खाद या वर्मीकम्पोसट खाद डालकर मिट्टी पलटने वाले हल से 2 से 3 बार गहरी जुताई करनी चाहिए। इसके बाद अंतिम जुताई के समय खेत में 65 किलो यूरिया, 375 किग्रा. एसएसपी तथा 67 किग्रा. एमओपी प्रति हेक्टेयर देना चाहिए। ककोड़ा की बुवाई क्यारी या गड्ढों में की जाती है। इसके लिए तैयार खेत मे क्यारियों या गड्ढों को पहले से तैयार करना होता है। गड्ढों से गड्ढों की दूरी 2 x 2 मीटर रखनी चाहिए। प्रत्येक गड्ढे में 2 से 3 बीज की बुवाई करना चाहिए। इस तरह 4 X 4 मीटर के प्लाट में कुल 9 गड्ढे बनते हैं, जिसमें बीच वाले गड्ढे में नर पौधा रखते हैं। और बाकी 8 गड्ढों में मादा पौधों को रखते हैं।

सिंचाई खरपतवार नियंत्रण : ककोड़ा की बुवाई बारिश के मौसम में की गई है, तो इसे अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती हैं। यदि बारिश समय पर नहीं होती हैं, तो हल्की सिंचाई कर लेनी चाहिए। और बारिश होने पर जरूरत के हिसाब से ही सिंचाई कर सकते है। खरपतवार नियंत्रण के लिए समय समय पर प्राकृतिक विधि से निराई-गुड़ाई करें। एंव खेत में ज्यादा खरपतवार है, तो रासायनिक विधि का प्रयोग करें।

कीट व व्याधियों का प्रबन्धन : ककोड़ा एक जंगली फसल है इस कारण इसकी खेती में कीट व व्याधियों के प्रबन्धन की बहुत कम आवश्यकता पड़ती है। लेकिन फिर भी इसकी खेती में कीट व व्याधियों का प्रकोप दिखाई दे, तो इमिडाक्लोप्रिड या क्विनालफॉस 25 ई.सी. की 3 मिली मात्रा प्रति लीटर पानी मिलाकर फसल पर छिड़काव कर सकते है।

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