Paddy Crop : धान की फसल पर लगने वाले सैनिक कीट से बचाव के उपाय

पोस्ट -27 सितम्बर 2024 शेयर पोस्ट

Paddy Crop : धान की फसल में सैनिक कीट का प्रकोप, कृषि विभाग ने इससे बचाव के सुझाए उपाय

Fall Armyworm : खरीफ मौसम में बोई गई धान की फसल में बालियां बन गई है। बालियां निकलने के लगभग एक माह बाद फसल पककर कटाई के लिए तैयार हो जाती है। लेकिन अभी धान की बाली में दाने दुग्धावस्था में है और इस दौरान उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार समेत कई अन्य धान उत्पादक राज्यों में धान की फसल में सैनिक कीट या फॉल आर्मीवर्म (Fall armyworm) का खतरा बढ़ गया है, जिससे उत्पादकों की चिंता बढ़ गई है। क्योंकि, इनकी सूंडियां शाम के समय पौधा पर झूंड में हमला करती है और बालियों को कुतर डालती है, जिससे बाली कटक कर नीचे गिर जाती है। इससे फसल को काफी नुकसान पहुंचाता है। धान में लगने वाले सैनिक कीट से परेशान किसानों को फसल बचाने के लिए कृषि विभाग उत्तर प्रदेश ने कुछ उपाय बताए हैं। इन सुझाए गए उपायों से किसान धान में लगने वाले सैनिक कीट के प्रभाव से फसलों को सुरक्षित कर सकते हैं। आइए, जानते हैं कि कृषि विभाग ने क्या उपाय किसानों को बताए है।  

ऐसे प्रभावित होता है उत्पादन (This is how production is affected)

उत्तर भारत समेत देश के कई हिस्सों में किसान खरीफ मौसम में धान की अलग-अलग किस्मों की खेती लगाते हैं। अभी तक किसान खैरा और फुदका रोग के प्रभाव से धान की फसल बचाने की कोशिशों में जुटे हुए थे, लेकिन अब धान पर सैनिक रोग कीट का प्रभाव देखा गया है। कृषि विशेषज्ञों ने धान पर लगने वाले सैनिक कीट का फसल पर बहुत घातक प्रभाव बताया है। यदि समय से इस कीट का उपचार या  रोकथाम नहीं की जाती है, तो यह फसल को पूरी तरह चौपट कर देता, जिससे उत्पादन तेजी से प्रभावित हो जाता है। 

सैनिक कीट का प्रभाव और उससे बचने के उपाय (Effect of soldier insect and ways to avoid it)

उत्तर प्रदेश कृषि विभाग के प्रसार शिक्षा एवं प्रशिक्षण ब्यूरो की ओर से धान में लगने वाले सैनिक कीट या फॉल आर्मी वर्म (Fall armyworm) का प्रभाव और इससे बचने के उपाय बताए गए हैं। किसान इन उपाय के माध्यम से इस सुंडियों के प्रकोप से फसल का बचाव कर सकते हैं। कृषि विभाग के मुताबिक सैनिक कीट की सुंडियां भूरे रंग की होती हैं, जो दिन के समय किल्लो के मध्य या जमीन की दरारों में छिपी रहती हैं। यह सुंडियां शाम को निकलती हैं और पौधों पर चढ़ जाती हैं तथा बालियों को छोटे छोटे टुकड़ों में काट कर गिरा देती हैं। इसके अलावा, सैनिक सुंडियां खेत में पौधों को इस प्रकार खाती है, जैसे कि लगता है पशु एक ओर से फसल को चर गया हो।  

कीट पर नियंत्रण के उपाय (Pest control measures)

कृषि विभाग के अनुसार, किसानों को उपाय सुझाया गया है कि जब बाली तैयार होने की अवस्था में होती है। उस समय 4 से 5 सुंडी प्रति वर्ग मीटर में फैली हो तो किसान इस कीट के नियंत्रण के लिए मैलाथियान 5 प्रतिशत चूर्ण  20 से 25 किलोग्राम धूल में मिलाकर प्रति हेक्टेयर छिड़काव करें। इसके अलावा, फेन्थोएट का 2 प्रतिशत चूर्ण 25-30 कि.ग्रा. या एसीफेट 75 एसपी 1.0 ग्राम प्रति लीटर पानी या डीडीवीपी 76 ई.सी. 1.5 मि.ली. प्रति लीटर पानी या क्लोरोपायरीफॉस 20 ई.सी. 2.5 मि.ली. प्रति लीटर पानी या मिथाइल पैराथियान 2 प्रतिशत चूर्ण  25 से 30 कि.ग्रा. धूल में मिलाकर प्रति हैक्टर की दर से छिड़काव करें।

फेरोमोन ट्रैप और ब्लैक लाइट ट्रैप का इस्तेमाल (Use of pheromone trap and black light trap)

किसान खेत में फेरोमोन ट्रैप और ब्लैक लाइट ट्रैप का इस्तेमाल भी कर सकते हैं, जिससे सैनिक कीट सुंडियों का प्रकोप कम होता है और किसानों को सुंडियों से राहत मिल जाएगी। कृषि विभाग के अनुसार, अब बालियों में चावल के दाने बनने की अवस्था हैं, ऐसे समय में सैनिक कीट का प्रकोप घातक साबित हो सकता है। इसलिए किसान अपने खेतों में लगातार नजर बनाए रखें। इस वक्त अगर सही समय पर कीटनाशकों का उपयोग किया जाए तो फिर धान में लगने वाले सैनिक कीट के प्रभाव से होने वाले नुकसान से फसल को बचाया जा सकता है।  

गंधीबग कीट या फुदका कीट से फसल बचाने के उपाय (Measures to protect crops from stink bug or hopper insect)

धान में भूरा फुदका कीट या गंधीबग कीट (brown planthopper) से फसल का बचाव करना जरूरी है। इस कीट का फसल पर आक्रमण होने से खेत में दुर्गन्ध आती है। गंधीबग कीट दूधिया अवस्था में दानों से रस चूसकर उन्हें खोखला कर देते हैं, जिससे उन पौधे पर काले धब्बे बन जाते हैं व प्रभावित पौधों की बालियों में चावल नहीं बनते हैं और पौधे काले होकर सूखने लगते हैं। गंधीबग के नियंत्रण के लिए किसान कार्बोफ्यूरान 3 सीजी 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर या फिर क्लोरपाइरीफास 20 प्रतिशत ईसी 1.50 लीटर प्रति हेक्टेयर को 500 - 600 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। इसके अलावा, एसीफेट 75 एसपी 1.5 ग्राम प्रति लीटर पानी या डीडीवीपी 76 ई.सी. 1.5 मि.ली. प्रति लीटर या मिथाइल पैराथियान धूल 25-30 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर की दर से पानी में मिलाकर छिड़काव करें। 

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